संगीत रहित जीवन एक यांत्रिक जीवन है, ऐसा जीवन नीरस औ्र आनंद से रहित व परमानंद से विमुख है।
कला व संगीत एक आनंदमयी आस्था, गहन परिश्रम व तप है जिसकी श्रैष्ठता साबित करने के लिए वाहवाही की नहीं बल्कि एकांत में बैठकर कठोर तपस्या करने की जरुरत होती है।
संगीत केवल गाना बजाना और नाचना ही नहीं है, बल्कि जीवन के हर एक रंग, राग द्वेश, सुख दुख और सभी मानवीय व प्राकृतिक भावों की एक ऐसी अभिव्यक्ति है कि जब लोग उसका श्रवण करते हैं तो भूल ही जाते हैं कि आप कोई नाटक या फिल्म देख रहे हैं। बल्कि स्वयं उसका हिस्सा बन जाते हैं और अपने आपको बस उसी में समर्पित कर देते हैं।
संगीत मानवीय नहीं ईश्वरीय है। फिर भी कुछ लोग इसके साथ ना सिर्फ मोलभाव करते हैं बल्कि वे समझते हैं ये स्कूली पढ़ाई जैसा ही है कि फीस दे दी तो शिक्षक को खरीद लिया।
लेकिन आप शिक्षक को खरीद भी लें तो भी शिक्षा नहीं खरीदी जा सकेगी। अनंत पैसे से भी नहीं। महाभारत इसका उदाहरण है। गुरु द्रोणाचार्य नोकर तो दुर्योधन के पिता के थे परन्तु अर्जुन के प्रति उनके प्रेम को कोई नहीं खरीद सका। दरअसल शिक्षा व कला मात्र एक पाठ्यक्रम ही नहीं है अपितु यह किसी विषय विशेष में हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति भी है। हम आदमी को खरीद सकते हैं उसकी भावनाओं को नहीं।
तो उन लोगों को ये बात समझ लेना चाहिए जो किसी भी कला को सीखने की इच्छा रखते हैं। और जब वे लोग इस प्रक्रिया से गुजर जाएंगे तब वे भी यह बात समझ सकेंगे, जो आज मेरे द्वारा कही जा रही है।
दुर्भाग्य से मैंने कुछ ऐसे बच्चे भी देखे हैं जिनमें संगीत कला के अंकुर हैं।जो बढ़ना चाहते हैं और बढ़ने की योग्यता भी उनमें है। मगर उनके पालक समझते हैं कि वे ही उनके भविष्य के निर्माता हैं। वे अपने बच्चों के लिए दुनिया के सभी साधन इकट्ठे करके मरना चाहते हैं, वे अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर, आई एस आदि बनाकर उनके भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं। चाहे बच्चों में इसकी योग्यता हो या नहीं। चाहे बच्चे में एक अच्छा खिलाड़ी, कवि, साहित्यकार, या कलाकार बनने की अनंत संभावनाएं हों, मगर अफसोस! वे बड़े भ्रम में हैं जिन्हें अपने जीवन का कुछ पता नहीं वे एक दूसरे जीवन का भविष्य निर्माण कैसे करेंगे ? इसके लिए तो कोई योग्य शिक्षक ही चाहिए।
बाहरहाल,आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
Ravi shakya,
Real music and spirituallity mentor,