आदमी का स्वाभिमान सिर्फ एक सामाजिक मुखौटा है जिसे उसने स्वयं गढ़ा है। मैं ऐसेअनेक लोगों को जानता हूं जो घर से बाहर निकलते ही वह मुखौटा पहन लेते हैं, और घर आकर उतार कर खूंटी पर टांग देते हैं। जो बाहर बड़ी बड़ी बातें करते हैं कभी उनके घर में उनके साथ रहकर तो देखना, वो आदमी आपको बिलकुल नकली लगेगा। आप कितने ही बुद्धिमान होने का दावा करें, कितने ही धनवान और इज्जतवान होने का दावा करें मगर अगर आपने अपने अहम को नहीं छोड़ दिया है तो आप सिर्फ एक अच्छे ढोंगी से अधिक कुछ भी नहीं हैं। हां ! ऐसा ही है। कभी आपने खेत में खड़ा हुआ बिजूका देखा है ?
वह सीधा अकड़ कर खड़ा रहता है। वह पक्षियों को डराने-धमकाने का काम करता है, ये और बात है कि वह स्वयं हिल भी नहीं सकता अपनी जगह से। मेने असल जिंदगी में भी ऐसे अनेक बिजूके देखे हैं। आपने भी देखें होंगे, क्या यह सच नहीं है ?
तो मैंने एक दिन सोचा कि इससे पूछ ही लूं। तो मैंने एक बिजूके से कहा भाई तुम दिनभर धूप में खड़े रहते हो, थकते नहीं, और क्या बोर नहीं होते, थोड़ा लोगों से मिलो जुलो, हंसी मजाक करो। तो वह बोला - " ऐसा नहीं है कि मेरा मन नहीं करता लोगों से मिलने, हंसी मजाक करने का, मगर इससे बड़ी गड़बड़ हो जायेगी। ये जो पक्षी मुझसे डरते हैं सिर्फ इसी कारण कि मैं अकड़ कर खड़ा रहता हूं। जरा भी हिला तो भेद खुल जाएगा कि में सिर्फ बिजूका हूं और रही बात बोर होने की तो तुम नहीं जानते कि लोगों को डराने में जो मज़ा है उसकी बात ही कुछ और है। अरे नकली ही सही मगर मुझसे सब डरते हैं। बिना हिले डुले, बिना कहीं आए जाए, तो इससे बड़ा मज़ा क्या होगा भला। और तुम मुझसे कहते हो कि मैं अकड़ दिखाता हूं यहां खड़े खड़े, तो तुम तो असली आदमी हो, तुम भी तो वही करते हो जो में करता हूं। तुम भी अकड़ लिए घूमते हो, मेने तो सिर्फ कपड़े का मुखौटा पहन रखा है तुमने तो सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सबसे अधिक जातिगत, न जाने कितने मुखौटे पहन रखे हैं ।और तुम हमेशा डरे रहते हो कि कहीं भेद न खुल जाए। तुम घर से बाहर निकलते हो तो मूंछ पर चावल लगाकर कि लगे कि बिरयानी खाकर आए हो, असल में तो तुम मुझसे भी गए गुज़रे हो क्योंकि जो में खड़े खड़े करता हूं तुम चल-फिर कर करते हो। में तो नकली हूं ही पर तुम तो आदमी हो ? कुछ तो आदमियत रखो। जरा जरा सी बात पर बताते हो जाति का घमंड, ऊंच-नीच का भेद, जबकि भीतर से तुम भयभीत हो, तुम्हें चिंता सताती है कि कोई तुम्हें मामूली न समझ ले, कहीं तुम्हरा भांडा न फूट जाए। मगर तुम भ्रम में हो कि लोग समझ नहीं रहे। लोग अब जान गए हैं कि तुम भी नकली आदमी हो, तुम्हरा कथित धर्म कोरी कल्पनाओं से अधिक कुछ भी नहीं, अच्छा है कि तुम्हारे ग्रंथों को पढ़ने और सुनने का अधिकार तुमने शूद्रों को नहीं दिया था, नहीं तो बहुत पहले वे तुम्हरा इस धर्म की अश्लील बातों को जान जाते, और बहुत पहले बगावत कर लेते । मगर अब वे उन ग्रंथों को पढ़ रहे हैं। और इसका परिणाम भी सामने आ रहा है। करता कारण है कि दस लाख शूद्रों ने बुद्धिष्ट हो जाने का वादा कर लिया है ? यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में लोग इतिहास में पढ़ेंगे कि भारत में कभी हिंदू धर्म हुआ करता था। कृपया अब तो मानव बनें । बहुत हुआ पाखंड, बहुत हुआ ढोंग। तुम ढोंगी हो, और परमात्मा को ढोंग नहीं चाहिए। उन्हें प्रेम चाहिए
हा। तुम ढोंगी हो, तुम सिर्फ एक बिजूका हो। और कुछ भी नहीं।
Ravi shakya,
Real music and spirituality mentor.