कामयाबी के सबके लिए अलग मायने हैं। ये कोई ऐसी चीज़ नहीं कि एक दिन ऐसा आ जाएगा कि वो कहेगा कि अब मैं कामयाब हो गया। अब कुछ नहीं करना है। ऐसा कभी होता नहीं। तो फ़िर क्या है कामयाबी ? क्या है जीवन का लक्ष्य?
क्या जीवन से बड़ा भी कोई लक्ष्य हो सकता है।
नहीं ! जीवन स्वयं में लक्ष्य है। और इससे बड़ा कोई लक्ष्य हो ही नहीं सकता।
धन, पद, वैभव आदि लक्ष्य नहीं हो सकते, जब तक वे हमारे स्वाभाविक जीवन को नष्ट करते हैं वे लक्ष्य नहीं अंधी दौड़ हैं जिसमें आदमी पहुंचता तो कहीं भी नहीं एक दिन नष्ट जरूर हो जाता है। ऐसा लक्ष्य, इतना बड़ा सपना यही यही बातें सदियों से अनेक लोग दोहराते रहे हैं और हुआ कुछ नहीं। कुछ हुआ तो वह यह कि मानसिक रोगी बढ़ गये।
हमारे छोटे छोटे प्रयासों की सफलताओं में ही कामयाबी छुपी होती है, मगर हम उससे संतुष्ट नहीं होते। तो कोई पैमाना है जब हम संतुष्ट हो जाएंगे ? कितने पर ? कब ?
कदम कदम पर हम कामयाब होते हैं, आखिरी कदम तो कभी आता ही नहीं। हम जरुर चले जाते हैं संसार से। आधे अधूरे में ही, सबको लौट जाना पड़ता है। इस संसार में किसी ने भी अपनी यात्रा पूर्ण नहीं की है। सिकंदर कामयाब नहीं हुआ आधे रास्ते में मर गया। उसने विश्राम नहीं किया, थक कर मरा। में कहता हूं थोड़ा विश्राम कर लें। लौटना तो निश्चित है और यात्रा पूरी होगी नहीं। तो क्यों ना विश्राम भी किया जाए। जब कहीं पहुंचना ही नहीं है तो जिएं जीवन को आनंदित होकर । आनंद ही जीवन का लक्ष्य है।
Professor -
रवि शाक्य
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु🙏