रामायण को किसी एक धर्म की धार्मिक पुस्तक समझना ठीक वैसा ही होगा जैसे कि विद्यालय में पढाएं जाने वाले इतिहास, समाज शास्त्र, नैतिक शिक्षा, विज्ञान, भूगोल, गणित, अर्थशास्त्र, और राजनीति शास्त्र के सारे ज्ञान को किताबी ज्ञान समझ कर सिर्फ परीक्षा पास कर लेना और भूल जाना ।
ऐसा सदैव होता है कि एक फिल्म को एकबार देखने के बाद फिर वह अच्छी नहीं लगती और दूसरी फिल्म देखने की इच्छा होती है, परन्तु ऐसा कभी कभी होता है कि हजार हजार बार देखी, पढ़ी और सुनी सुनाई कहानी को फिर फिर से देखने सुनने पर भी मन ना भरता हो और हर बार उसकी बातों पर आचरण करने का मन बहुत करता हो परंतु ऐसा कर पाने में मनुष्य अपने को हमेशा ही असमर्थ पाता हो।
साधारण लोग जब फिल्मे देखते हैं तो नायक का अनुसरण करने में असमर्थ होते हैं, वे समझते हैं कि ऐसे उच्च आदर्श सिर्फ कहानियों में हो सकते हैं, हकीकत में नहीं, परन्तु हर कहानी अपना प्रभाव मनुष्य पर छोडती जरूर है, खासकर किशोर एवं युवाओं पर।
तो आपने देखा होगा कि अधिकांश युवा फिल्म के खलनायक का अनुसरण करते हैं, ऐसा कर पाना आसान भी है, और उन्हें लोगों के सामने कुछ विशिष्ट बनाता है, तो ये हो रहा है ।
परन्तु क्या कारण है कि वे ही लोग रामायण के खलनायक रावण का अनुसरण करने में भी अपने को असमर्थ पाते हैं, क्या है ऐसा इस कथा के पात्रों में ?
वो नायक "राम" कैसा होगा जिसका शत्रु, खलनायक रावण ब्रम्हज्ञानी, चक्रवर्ती सम्राट, वीरों का वीर, कुशल राजनीतिज्ञ, नैतिकता से भरपूर, अजेय, अजित और शिव का महाभक्त हो ।
कोई कर सकता है उसका भी अनुसरण जो सिर्फ भगवान के द्वारा ही मारा जा सका।
तो मैं ये बताना चाहता हूं कि वो राम कैसे होंगे जिनको रावण ने भी अपनी मृत्यु के लिए चुना, रावण उतना ही आदरणीय है जितने राम, उसने सीता का हरण तो किया परन्तु अपनी सबसे सुंदर अशोक वाटिका में अच्छी तरह सुरक्षा में एक वीर की तरह युद्ध से जीतने के लिए राम की धरोहर के रूप में रखा।
आजकल तो लोग मौका पाते ही बलात्कर कर देते हैं, उन्हें रावण से सीखने की जरूरत है, और इसीलिए रामायण देखने की जरूरत है ।
राम और उनसे संबंधित जितने भी पात्र रामायण में हैं उन सभी ने अपने अपने कार्यो द्वारा महान आदर्श स्थापित किए हैं, लेख बहुत लंबा होगा, इसलिए मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता, परन्तु फिर भी यह जरूर कहता हूं कि राम तो अवर्णीनीय हैं ही, वरन् दशरथ, कैकेई,लक्ष्मण, भरत, हनुमान, जामवंत, विभीषण और रावण एक एक की व्याख्या करने का अवसर मिले तो एक एक और इतनी ही रामायण अलग से लिखी जा सकती हैं, ये आश्चर्य और अनुभव की पराकाष्ठा ही है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन सबकी बातों को इतनी सुन्दरता से एक काव्य संग्रह में बांध दिया ।धन्य हैं वे।
परन्तु आज दुर्भाग्य से कुछ लोग जो आधुनिकीकरण में जी रहे हैं वे न सिर्फ खुद रामायण को उपहास की वस्तु, काल्पनिक कहानी समझते हैं बल्कि अपने बच्चों को भी इससे अछूता रख रहे हैं, मुझे उन लोगों पर तरस आता है कि वे अपने लिए उस दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जो भारत की संस्कृति में कभी रही ही नहीं ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्म गुरु।
Very Good sir.
ReplyDeleteI liked the way and thoughts you used to explain us.
So nice sir
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