Tuesday, January 19, 2021

ईश्वर को तुम्हारा प्यार चाहिए ढोंग नहीं

वैसे तो यह केवल एक कहानी है। पर ये मानवीय व्यवहार पर सटीक बैठती है।
कहानी है कि भगवान ने जब सृष्टि बनाई तो सब कुछ बनाया। और अंत में आदमी बनाया। और आदमी को बनाने के बाद कुछ भी नहीं बनाया।‌ 
आदमी को बनाने के बाद भगवान ऩे उसका निरीक्षण किया। और पाया कि ये बहुत अद्भुत चीज़ बन गई। भगवान भी घबरा गया। और उसने देवताओं को बुलाया । देवताओं से पूछा कि ये जो आदमी मैंने बना दिया है यह बहुत ख़तरनाक है, ये एक दिन मुझे भी परेशान करेगा। ये सब चीजों की परिभाषा अपने स्वार्थ के अनुसार करेगा, ये मुझे भी बिगाड़ देगा। मेरे नाम से लोगों को डराएगा, और डर का धंधा करेगा।
तो मुझे ऐसी जगह बताओ कि मैं वहां छुप सकूं और इस आदमी को न मिलूं।
देवताओं ने विचार किया और सुझाव दिये। किसी ने कहा भगवान। आप हिमालय में जाकर छुप जाओ, भगवान ने कहा पागल हो ? 
ये जो आदमी मैंने बना दिया है यह इतना अद्भुत है कि हिमालय में तो बैठा ही मिलेगा। किसी ने कहा कि भगवान आप चांद तारों में छुप जाओ। भगवान गुस्सा हुए, बोले तुम समझे ही नहीं कि ये आदमी केसा है। ये देर सबेर वहां भी पहुंच जाएगा।
फिर काफी सोच-विचार हुआ।
एक देवता ने कहा भगवान क्या ऐसा हो सकता है कि आप इस आदमी के भीतर ही छुप जाओ।
भगवान को यह बात समझ आई, भगवान ने कहा कि ये ठीक है । 
ये और सब जगह मुझे ढूंढेगा, नहीं ढूढैगा तो सिर्फ अपने भीतर ।
और तबसे भगवान आदमी के भीतर छिपे हुए बैठे हैं।
और जेसाकि हम देखते हैं कि सब जगह भगवान को ढूंढ ढूंढ कर बताते हैं लोग, मथुरा में, काशी में, कैलाश में, राम, कृष्ण, गिरिराज, ओर अन्य अनेक नामों से।
मगर भगवान न वहां हैं, न उनके ये नाम हैं। वे तो आपमें हैं। आपका ही नाम। कुछ थोड़े से चालाक लोग आपकी बुद्धि पर राज करते हैं और आपको उनकी गुलामी की आदत हो गई। मगर भगवान इससे खुश नहीं हैं। अब भगवान् भी चाहते हैं कि तुम उसे ढूंढ लो। उन्हें तुम्हारा प्यार चाहिए, ढोंग नहीं।
 Ravi Shakya,
Music and spiritually mentor.

Tuesday, January 5, 2021

चलोगे तो बहुत पहुंचोगे कहीं भी नहीं

पहली तो बात,
 जिन्दगी के संबंध में जिन्होंने भी थोड़ा बहुत ज़ाना है वे यही जान सके हैं कि जीवन के लिए सभी दौड़ व्यर्थ ही साबित हुई हैं। लोग चलते बहुत हैं, पहुंचते कहीं भी नहीं। जी हां, में आपसे पूछ रहा हूं ? क्या आप कहीं पहुंच गए हैं ?
 और जो कुछ थोड़े से लोग पहुंचे हैं उन्होंने दौड़ को सिरे से नकार दिया है। पहुंचना कहां है ? मंजिल कहां है? लक्ष्य क्या है ?
आखिर आपने जिंदगी के सम्बंध में किया ही क्या है ? 
बहुत मकान बनाए, बहुत भोग किया, बहुत पैसा इकट्ठा किया, मगर आप जब मरे तब कुछ भी आप साथ नहीं ले जा सके, और ये आपने कई जन्मों में कई बार किया है । 
तो अभी आप क्या कर रहे हैं ? 
अभी भी आप वही दोहरा रहे हैं जोकि आपने हर जन्म में किया है, मगर, पाया कुछ नहीं.....
वास्तव में आपने जिन्दगी को जिया ही नहीं, बस दौड़ते रहे, और वही आज भी जारी है । क्या आप कहीं पहुंच गए ? यदि हां, तो आपको अब रुक जाना चाहिए और यदि नहीं तब भी आपको रुक जाना चाहिए, क्योंकि अब तक कहीं पहुंचे नहीं तो आगे भी पहुंचने की कोई संभावना नहीं है । मगर आपकी दौड़ जारी है।
तो में आपसे पूछ रहा हूं, क्या आप कहीं पहुंच गए हैं ?
नहीं । आप चले तो बहुत, मगर पहुंचे कहीं भी नहीं। वैसे बात यही खत्म हो सकती है, मगर और भी बहुत कुछ है अभी आपको जानने के लिए। 
जिंदगी स्वयं लक्ष्य है। जीवन से बड़ा भी कोई लक्ष्य हो सकता है ? जीवन लक्ष्य है। तो जियो आनंद से, विश्राम कर लो, क्या पता फिर मौका मिला न मिला। और जो लोग भी दौडे हैं वे सभी कहीं पहुंचे नहीं। 
सिकंदर ने कहा भारत को जीतकर जाएंगे तो यहां से एक साधु को भी साथ ले जाएंगे, सुना है भारत में पहुंचे हुए फकीर होते हैं। सिकंदर भारत के किनारे पर डेरा डाले था, और इधर एक नदी पर दार्जनिक नाम का फकीर धूप में रेत पर नंग-धड़ंग ही पड़ा रहता था।
पाइप का एक पोंगरा ही उसका घर था । उस पोंगरे को धकेलकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना भी आसान था।
तो सिकंदर ने सिपाहियों को आदेश दिया जाओ उस फकीर से कहो उसे हमने बुलाया है। सेनिक आए बोले, तुम ही दार्जनिक हो ?  तुम्हे सिकंदर महान ने बुलाया है। दारजनिक बोला जाओ सिकंदर से कह दो, जो अपने को महान कहता है उससे छोटा दुनियां में दूसरा आदमी नहीं है। 
और दार्जनिक ऊपरवाले के अलावा किसी और का आदेश नहीं मानता।
सिकंदर तक खबर पहुंची। ऐसा उत्तर उसे जिंदगी में पहली बार ही किसी ने दिया था। 
वह स्वयं पहुंचा और दार्जनिक से बोला, तुमने गुस्ताखी तो बड़ी की है, लेकिन में हैरान भी हूं इसलिए खुद आया हूं। तुम्हे मेरे साथ चलना होगा। दार्जनिक मुस्कराया। सिकंदर ने कहा तुम जानते हो मेरा आदेश नहीं मानने का सिर्फ एक ही परिणाम हो सकता है कि तुम्हारी गरदन धड़ से अलग हो जाए।
दार्जनिक हंसा। और बोला जिस गर्दन की तुम बात करते हो वो मेरी है ही नही। उसे तो बहुत पहले में खुद अलग कर चुका हूं। तुम उसे अलग नहीं कर पाओगे,फिर भी में तुमसे पूछता हूं कि मामला क्या है?  
ये फौजें, ये गोला बारूद रोज इधर से उधर भागमभाग ये क्यो करते हो ? और तुम्हें जाना कहां है ? पहुंचना कहां है ?
सिकंदर ने कहा पहले में माइनर एशिया को फतह करूंगा, दार्जनिक ने कहा उसके बाद ?
 उसके बाद दिल्ली का तख्त, उसके बाद? 
उसके बाद घर लौटूंगा और विश्राम करूंगा। दारजनिक हंसा। और बोला इतना सब करने के बाद विश्राम ही करना है तो आओ मेरे साथ लेट जाओ, विश्राम कर लो,
में विश्राम कर रहा हूं। इतना समय भी क्यों गंवाना। विश्राम कर लो। 
और फिर मेरे इस पौंगरे में इतनी भी कम जगह नहीं है, दो के लिए काफी है। आ जाओ विश्राम करो।
सिकंदर सकपकाया। और बोला बात तो तुम्हारी दमदार मालुम होती है, परंतु अब आधे में लौटना ठीक नहीं होगा। आधी दुनिया फतह कर ली है अब ऐसे लौटना भी ठीक नहीं होगा।
और दार्जनिक ने कहा इस दुनियां में कोई भी अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सका है । सबको आधे में ही लौट जाना होता है। और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम भी नहीं पहुंच पाओगे,आधे में ही लौट जाओगे।
और यही हुआ। सिकंदर जब भारत से वापस लौटा रास्ते में बीमार हो गया। और रास्ते में ही मर गया।
फिर यूनान में एक कहानी प्रसिद्ध हो गई। कहते हैं जिस दिन सिकंदर मरा, ठीक उसी दिन ५-१० मिनट बाद ही दार्जनिक भी मरा। अब सिकंदर ऊपर वैतरणी के पास चला जा रहा था, और उसके पीछे कुछ ही दूरी पर दार्जनिक भी आ रहा था। सिकंदर को कुछ पदचाप सुनाई दी तो उसने पीछे पलटकर देखा और घबरा गया, कि एक बार फिर उसी आदमी से सामना हो गया।
सिकंदर अपनी झेंप मिटाने के लिए मुस्कराया। तो दार्जनिक फिर हंसा,   
सिकंदर बोला, अच्छा लगा तुमसे मिलकर, कि एक सम्राट और फकीर का आज फिर से मिलन हुआ है। दार्जनिक और जोर से हंसा। सिकंदर ने कहा, तुम हंसते क्यों हो ?
दार्जनिक बोला - बात तो तुम ठीक कहते हो, लेकिन एक गलती कर रहे हो । यहां सम्राट कौन है और फकीर कौन। तुम सब खो कर लौटे हो और मैं सब पाकर‌। तुम विश्राम नहीं कर पाए, और मेंने विश्राम किया है। तुम्हारी ज़िन्दगी भर की दौड़ व्यर्थ हुई। तो यहां में सम्राट हूं और तुम फकीर।
तो सारांश यह है कि भागों मत, जिओ....... सबको आधे में ही लौट जाना होता है।
Professor, Ravi shakya
Music & spirituality mentor.