Wednesday, June 30, 2021

असली चरित्र नशे में ही दिखता है

असल में संकल्प कमजोर होने के कारण ही आदमी नशा करता है। 
 मगर आदमी का असली चरित्र देखना हो तो नशे में ही देखना, बिना नशे में तो सब एक मुखौटे में अपने को छिपाए रहते हैं। भीतर कुछ और चल रहा है और बाहर सभ्य सुशील होने का ढोंग। नशे में आदमी बाहर से वही दिख जाता है जो वास्तव में वह है।
मेकाले लोगों का चरित्र बताता था। दूर दूर से लोग आते थे। इधर एक भारतीय वैज्ञानिक भी लोगों को सपने कैसे आते हैं सपनों का अध्ययन करके वह बताता था कि व्यक्ति का असली चरित्र क्या है। तो इस काम में कई साल लगते थे।
मेकाले सिर्फ १५ दिन में बता देता था।
मेकाले उस आदमी को अपने साथ रखता और १५ दिन तक खूब शराब पिलाता। और १५ दिन तक अध्ययन करके बता देता कि उस आदमी का असली चरित्र क्या है।
बहरहाल, हमारे लिए सभी इन्सान हैं। तो हमें उनके भीतर परमात्मा को देखने का प्रयास करना चाहिए।
  तुम भी अच्छे रकीब भी अच्छे,
में बुरा था, मेरी गुज़र ना हुई।
तुम ना आए तो क्या सहर ना हुई,
हां मगर चेन से बसर ना हुई।।
रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु🙏

Tuesday, June 15, 2021

कोई तो है, यहीं कहीं है।

कोई उम्मीद वर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती।
मौत का एक दिन मुअइय्यान है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।।
पहले आती थी हालेदिल पे हंसी।
अब किसी बात पर नहीं आती।।
  सोचा तो था जिंदगी बहुत हसीन होगी, जिंदगी बहुत लंबी होगी, 
जिंदगी में ये करेंगे, जिंदगी में वो करेंगे। मगर अभी कुछ दिनो से लगता है जिंदगी तो बहुत छोटी है, 
क्या करेंगे कुछ करके। सब तो यहीं रह जाना है। पहले इस डर में जिए की मर तो नहीं जाएंगे। और अब मौत का डर ही नहीं। अब इस डर में जीते हैं कि हमारे कंधों पर जो भार है उसे उतारने का वक्त मिलेगा कि नहीं। 
देखो ना, अभी रात के एक से अधिक बजे हैं, और कई बार सोने की कोशिश की मगर नींद नहीं आती। 
पहले सोचा अपनों को सुला दूं फिर सोऊंगा। और जब सब सो गए तो में सो नहीं पा रहा। 
बहुत बार तो ऐसा बहाना भी करता हूं कि मैं सो गया ताकि सब सो जाएं, लेकिन हर बार यही होता है कि मैं रात भर जागता हूं। 
मन में कई ख्याल आते हैं। कभी कभी तो वो जो सुनहरे सपने देखे थे उन्हें ही दुबारा पूरी फिल्म की तरह देख लेता हूं। फिर लगता है वो तो सपने ही थे, सच्चाई तो यही है जो अभी है। सपने कहां सच होते हैं? 
मन करता है दुबारा बच्चा हो जाऊं, 
ताकि पल में झगड़ा करूं और पल में भूल जाऊं। 
सोचा था जिंदगी में ऐसा कुछ करूंगा कि मेरे अपनों को हमेशा गर्व होगा। और मेंने किया भी बहुत।
मगर अब यही लगता है कि चला तो बहुत, पहुंचा कहीं भी नहीं..…...
क्या ये जिंदगी बेकार ही गई ?
क्या में इतना खराब हूं कि कोई मेरे साथ भी रह नहीं सकता ? 
क्या में अपनों को थोड़ी भी खुशी नहीं दे सका ?
और भी बहुत सी बातें हैं मन में।
मन करता है किसी को ये सब रो रो कर बताऊं। मगर ऐसा एक भी नहीं,
किसको बताऊं ? 
कुछ ऐसी भी बातें हैं जो शब्दों में कहीं भी नहीं जा सकतीं। जो सिर्फ महसूस करने की हैं। तो सोचता रहता हूं।
अब तो किसी गीत में भी मजा नहीं आता। पहले गीत के बिना जीना संभव नहीं था।
क्यों होता है ऐसा ? 
कोई बता सकता है ?
कोई है ?
जबकि में ये जानता हूं कोई नहीं है।
मगर ये दिल,
ये दिल कहता है कि कोई है।
कोई तो है।
मेरे आस पास है।
यहीं कहीं है।
यहीं है।