Friday, October 13, 2023

मानो मत, जानो....

पुराने समय में सिर्फ खजूर की डाल के ही झाड़ू बनाए जाते थे। और खजूर का कांटा चुभ कर अंदर रह जाए तो वह जितना बाहर निकालने की कोशिश करते हैं उतना ही उल्टा अंदर की तरफ खिसकता जाता है और शरीर के पक जाने पर मवाद के साथ ही बाहर निकलता है। 
तो इस कारण किसी बुद्धिजीवी ने कहा था कि झाड़ू को लात नहीं मारते। क्योंकि कांटा चुभ सकता है उस समय आधुनिक दवाइयां भी नहीं होती थीं। मगर अभी तो फूल झाड़ू और प्लास्टिक के झाड़ू ही चलते हैं और इलाज भी बहुत उन्नत है। मगर किसी पंडित ने बाद में यह भी कह दिया कि झाड़ू में लक्ष्मी का वास होता है इसलिए उसे पैर नहीं लगाते। 
परंपराएं और आडंबर ऐसे ही विकसित हुए हैं मगर हम सिर्फ इसलिए उन्हें मानते हैं कि हमें ऐसा ही बताया गया है। इसी को मानसिक गुलामी कहते हैं। झाड़ू से हम अपने पैरों की धूल झाड़ते हैं, तो लक्ष्मी को उसी में रहना पसंद होगा ? और होगा तो क्या वह सच में लक्ष्मी है ? 
हर परंपरा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण था मगर हम जानने की कोशिश नहीं करते बस मानते हैं। ये मानना ही जानने का द्वार बंद कर देता है। इसलिए....
  मनो मत,,,,
 जानो...............

रवि शाक्य, 
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

सुरीली आवाज और हम.

सुरीली आवाज होना या ना होना इन्सान के बस की बात नहीं है लेकिन अपनी आवाज़ को सुरीली बनाना बहुत  लोगों के बस में है, जिसके लिए योग्य गुरु के समक्ष वर्षों अभ्यास जरूरी है। किसी की आवाज पैदाइशी सुरीली हो तब भी उसे किस सुर का उपयोग कब करना है और उस आवाज का सही उपयोग कैसे करना है इसके लिए तो उसे गुरु की आवश्यकता होती ही है। लता मंगेशकर इसका उदाहरण थीं। उनकी आवाज की तुलना आज किसी से नहीं की जा सकती फिर भी उन्होंने जब से बोलना सीखा तब से ही अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर से १२ वर्ष तक संगीत की पूर्ण शिक्षा प्राप्त की थी।
   मेने अनेक गाना गाकर मांगने वाली औरतों को न केवल देखा है, बल्कि में बुला कर उनसे गाना सुनता हूं और उन्हें पुरस्कार भी देता हूं, इसलिए नहीं कि वे मांग रहीं हैं बल्कि इसलिए कि उनकी आवाज मेरे हृदय को स्पर्श करती है और जिसकी मुझे कद्र करना चाहिए।
  फिर में यही सोचता हूं कि अगर इनको सीखने का अवसर मिला होता, जो कि इनको ही मिलना चाहिए, तो कितना अच्छा होता। 
     हमारे पास तो दोनों तरह के लोग आते हैं जो वास्तव में संगीत के लिए ही बने हैं वे भी और जिनमें संगीत का कोई गुण नहीं है या थोड़े गुण हैं।
  गुरु तो रास्ता दिखाते हैं , चलना हमें स्हवयं होता है, अब जो जितना लंबा चले। बहरहाल , संगीत की श्रेष्ठता की कोई सीमा नहीं, उसी तरह उसे सीखने की भी न कोई सीमा है ना समय, ये जिंदगी भर चलने वाली प्रक्रिया है 🙏
Pro.Ravi Shakya
(Real music and spritual mentor.)