Thursday, August 15, 2024

स्वतंत्रता क्या है।

स्वतंत्रता, परतंत्रता और स्वक्षंदता इन तीनों में बहुत भेद है। आप कहेंगे इसमें क्या है ये तो हम भी जानते हैं, सभी जानते हैं। जानते हैं, मगर शायद ही अधिकांश लोगों ने इनके शाब्दिक अर्थ पर गौर किया होगा।
स्व + तंत्र अर्थात स्वयं का तंत्र या विधान, स्वयं का सिस्टम, और स्व में विचरण करना ही स्वतंत्र जीवन जीना है। मगर इस अर्थ में आज कोई भी स्वतंत्र मालूम नहीं होता। धरती पर लगभग हर जगह दो ही तरह के लोग दिखाई पडते हैं।एक वे, जो स्वक्षंद हैं और सोचते हैं कि वे स्वतंत्र हैं। दूसरे वे, जो परतंत्र हैं और सोचते हैं कि स्वतंत्र हैं।
आज लगभग पूरी मानव जाति परतंत्र है। कोई भी तो अपने स्वयं के सिस्टम से नहीं चलता। किसी का अपना तंत्र नहीं है। और कहे चला जाता है कि वो स्वतंत्र है।  कोई भी स्वयं के अनुरूप जीवन नहीं जीता।पत्नी पर पति का तंत्र है, तो पति पर पत्नी का , बच्चों पर मां बाप का तो मां बाप पर बच्चों का। घर पर पड़ोस का तंत्र है पड़ोस पर समाज का ।  समाज पर देश का और देश पर नेताओं का। देश का विधान है, मगर किताबी संविधान, उसकी फ़िक्र नेताओं को नहीं है। संसद में संविधान पर बातें होती हैं व्मेंयवहार में कुछ और।  नेता स्वक्षंद हैं और उनका अपना तंत्र है। हम उनकी जय-जयकार करते हैं और अपने कोस्वतंत्र कहते  हैं।
 हम सबको कोई ना कोई चला रहा है और हम चलते हैं गर्व से। हमें पराधीनता की आदत हो चुकी है। आज अगर आप अकेले एक घंटा समय गुजारें तो मुश्किल हो जाएगी।  कोई न कोई चाहिए, कोई साथी।  कोई न्यूज़ पेपर, कोई समाचार या कुछ बेगार ही सही, मगर कुछ किए बिना कैसे रहें  ?कैसे काटें समय  ? 
 अर्थात हम स्व पर नहीं पर, पर निर्भर हैं, पर यानि दूसरा कोई  चाहिए। 
वो कुछ भी हो सकता है, व्यक्ति वस्तु, या विचार ही क्यों न हो। हमें कुछ चाहिए ही, अन्यथा जीना मुश्किल हो जाता है। 
ये परतंत्रता है ।
और सौ में से 99 लोगों की यही समस्या है। ये जो साल में एक बार मनाई जाती है ये राजनीतिक स्वतंत्रता है। लेकिन जो हमें रोज और प्रति पल चाहिए वो आर्थिक सामाजिक धार्मिक और इन सबसे ऊपर आध्यात्मिक स्वतंत्रता है, जो कि उंगलियों पर गिने जाने वाले लोगों के पास ही हो सकती है। विषय बहुत विस्तृत है और हमारे पास धैर्य की कमी है। इस, रील के जमाने में हम धैर्य खो चुके हैं। स्किप करने की आदत हो गई है। इसलिए संभव है कुछ लोगों को कुछ बातें स्पष्ट नहीं हो पाएं। लेकिन हम उसपर चर्चा कर सकते हैं। 
बाहर हाल..
इस आशा के साथ कि हम स्व और तंत्र के आध्यात्मिक अर्थ को न सिर्फ समझेंगे बल्कि जिएंगे भी ‌।
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

  Ravi shakya.
Professor Music.

Monday, July 22, 2024

गुरु पूर्णिमा 20/07/24

अषाढ़ की पूर्णिमा, यानी गुरु पूर्णिमा।
  क्या अर्थ है अषाढ़ की पूर्णिमा का ? 
इसका अर्थ है कि चारों तरफ काले बादल हैं, अंधकार है। और इस अंधकार के बीच में जो चांद है वह बादलों को रोशनी दिखाता है। इसीलिए तो अषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मान लिया गया। 
रोशनी तो सूरज की होती है, चांद की नहीं। मगर तुम सीधे ही सूरज को नहीं देख सकते, तुम सीधे ही ईश्वर को नहीं देख सकते, जल जाओगे, सूरज के प्रकाश को सीधे नहीं देखा जा सकता। ईश्वर के तेज को सीधे ही शिष्य सहन नहीं कर सकते, इसलिए बीच में चांद है, बीच में गुरु है।  जो लेता है रोशनी सूरज से और तुम्हें दे देता है।  गुरु आषाढ़ में चमकता हुआ चांद है और शिष्य अंधेरे में घूमते बादल। 
 " शिष्य होने का अर्थ ही यही है कि दे दे अपना हाथ गुरु के हाथ में, इस भरोसे के साथ कि गुरु के हाथ में परमात्मा है। "
सौंप दे अपने आप को उसके हाथ में इतने भरोसे के साथ जैसे कि एक आदमी नाई के हाथ में अपना गला सौंप देता है जबकि नाई के हाथ में उस्तरा है।  
नाई कभी किसी का गला नहीं काटता बल्कि तुम्हें निखार देता है। ठीक यही काम गुरु का है। लेता है प्रकाश सूरज से और बादलों को दे देता है, लेता है तेज़ परमात्मा से और तुम्हें दे देता है बशर्ते कि तुम इस तरह समर्पित होकर उसके सामने जाओ जिस तरह नाई के पास में बिल्कुल शांत और स्थिर होकर बैठ जाते हो। 

श्रद्धावान लभते ज्ञानम ।

  रवि शाक्य- 
(Professor Music)