अषाढ़ की पूर्णिमा, यानी गुरु पूर्णिमा।
क्या अर्थ है अषाढ़ की पूर्णिमा का ?
इसका अर्थ है कि चारों तरफ काले बादल हैं, अंधकार है। और इस अंधकार के बीच में जो चांद है वह बादलों को रोशनी दिखाता है। इसीलिए तो अषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मान लिया गया।
रोशनी तो सूरज की होती है, चांद की नहीं। मगर तुम सीधे ही सूरज को नहीं देख सकते, तुम सीधे ही ईश्वर को नहीं देख सकते, जल जाओगे, सूरज के प्रकाश को सीधे नहीं देखा जा सकता। ईश्वर के तेज को सीधे ही शिष्य सहन नहीं कर सकते, इसलिए बीच में चांद है, बीच में गुरु है। जो लेता है रोशनी सूरज से और तुम्हें दे देता है। गुरु आषाढ़ में चमकता हुआ चांद है और शिष्य अंधेरे में घूमते बादल।
" शिष्य होने का अर्थ ही यही है कि दे दे अपना हाथ गुरु के हाथ में, इस भरोसे के साथ कि गुरु के हाथ में परमात्मा है। "
सौंप दे अपने आप को उसके हाथ में इतने भरोसे के साथ जैसे कि एक आदमी नाई के हाथ में अपना गला सौंप देता है जबकि नाई के हाथ में उस्तरा है।
नाई कभी किसी का गला नहीं काटता बल्कि तुम्हें निखार देता है। ठीक यही काम गुरु का है। लेता है प्रकाश सूरज से और बादलों को दे देता है, लेता है तेज़ परमात्मा से और तुम्हें दे देता है बशर्ते कि तुम इस तरह समर्पित होकर उसके सामने जाओ जिस तरह नाई के पास में बिल्कुल शांत और स्थिर होकर बैठ जाते हो।
श्रद्धावान लभते ज्ञानम ।
रवि शाक्य-
(Professor Music)
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