Friday, March 28, 2025

सुर संवाद, और विवाद

संगीत में एक बहुत महत्वपूर्ण शब्द आता है - संवाद।
  राग में दो महत्वपूर्ण स्वर होते हैं , वादी और संवादी। वादी मतलब मुख्य बोलने वाला और संवादी मतलब उसके समान बोलने वाला। 
  आमतौर पर हिन्दी में भी हम कहते हैं कि दो लोग संवाद कर रहे हैं या संवाद चल रहा है। इसका अर्थ यह नहीं है कि हर तरह की दो या अधिक लोगों की बात संवाद होती है।
  संवाद का शाब्दिक अर्थ ही है सम+ वाद  अर्थात समान बातचीत। 
  संगीत  और वैज्ञानिक अर्थ में एक निश्चित ध्वनि आवृत्ति (frequency of sound )  का आदान प्रदान, चाहे वह किसी भी ध्वनि यंत्र से हो जिसमें हमारा कंठ भी शामिल हैं संवाद कहलाता है।
  इसके लिए यह भी आवश्यक है कि ध्वनि का वेग और आन्दोलन एक समान हो वर्ना यह संवाद ना होकर विवाद हो जाता है। 
  क्या आपने ग़ौर किया है कि जब आप क्रोध में होते हैं तब आपकी आवाज कैसी होती है ?  निश्चित ही सुरीली तो नहीं। क्योंकि उस समय आप अपने शरीर और मन पर नियंत्रण खो चुके होते हैं। तो ऐसी स्थिति में आपका ध्वनि यंत्र एक समान ध्वनि तरंगों को कैसे उत्पन्न कर सकता है।  उस समय जो ध्वनि तरंग हमारे कंठ से निकलती हैं उनकी ऊंचाई नीचाई बहुत अलग अलग होती है , कभी बहुत ऊंची कभी रोने जैसी जिसमें बहुत बेसुरापन होता है और कभी चीखने जैसी जो सुर की सीमाओं का उलंघन करती है। ऐसी सभी ध्वनियां ना तो वाद हैं ना ही संवाद बल्कि वह कोलाहल होती हैं। साधारण भाषा में हम इसे शोरगुल कहते हैं।
 और इससे यह भी सिद्ध होता है कि संगीत का संबंध भाषा, विज्ञान, गणित और अन्य सभी विषयों से बहुत गहरा है।  संगीत का संबंध ही जीवन से नहीं है बल्कि जीवन  संगीत है। 
  और अगर आप बहुत सारे विषयों का अध्ययन नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं आप संगीत सीख लीजिए। सारे विषयों की समझ आसान हो जाएगी। 
  यह मात्र संयोग नहीं कि अल्बर्ट आइंस्टीन बहुत अच्छा गिटार बजाते थे। 

  रवि शाक्य 🙏
Real music & spirituality mentor.

Wednesday, March 26, 2025

मूर्ति पूजा

मूर्ति पूजा की शुरुआत श्रद्धा को मजबूत करने के लिए की गई थी। यह उन लोगों के लिए थी जो पृकृति के गूढ़ रहस्यों को नहीं जानते, जो प्रत्यक्ष और परोक्ष में अंतर नहीं कर सकते, जिन्हें  कोई प्रतीक चाहिए।
जो सत्य को जानता है उसे प्रतीक की कोई जरूरत नहीं। लेकिन जो अपने अंदर छुपे सत्य को नहीं जानता वह आकृति से जुड़कर  ही विश्वास करता है कि उसके जीवन को चलाने  वाला कोई है। जैसे बिन ब्याही लड़कियां गुड्डे गुड़ियों से खेलती है, लेकिन शादी होने पर उन्हें छोड़ देती हैं।
जब तक चेतना के रहस्य मालूम ना हो जाए आदमी आकार से जुड़ा रहता है। एक बार अगर आत्मा का ज्ञान प्राप्त हुआ तो  वह प्रत्यक्ष को त्याग देता है। अंधविश्वास, ढोंग, पाखंड छोड़ देता है।
शराब पानी से बनती है, सिर्फ पीने पर ही वह शराब है। अगर उसे जमीन पर डाल दी जाए तो उसके गुण, रंगत सब जमीन के ऊपर ही मिट जाते हैं और सिर्फ पानी जमीन के भीतर जाकर फिर से एक बार निर्मल जल बन जाता है। उसी प्रकार शरीर जब पंच तत्वों को छोड़ देता है तो आत्मा भी परमात्मा में मिल जाती है। जो जीते-जी चेतना के रहस्य को अनुभव कर लेता है  वह आत्मा और परमात्मा के रहस्य को जान कर जीते हुए ही परमात्मा से जुड़ जाता है। 
शरीर और मन के परे होना ही सत्य तक पहुंचने का द्वार है। और इसे जान लेना ही सत्य को जान लेना होता है।
आसमान एक है लेकिन आंखें दो, लेकिन दोनों आंखें देखती एक ही दृश्य हैं। इसका अर्थ यह है कि सत्य एक है, चाहै कितनी ही आंखों से देखा जाए। कितने ही मजहब देखें पंथ देखें। सत्य एक है। निराकार, अनाम, निर्गुण।जिन्होंने इस रहस्य को जाना है वे ही बुद्ध हो गए। इस धरती पर बहुत से बुद्ध रहे हैं, अभी भी हैं, और हमेशा रहेंगे।

  रवि शाक्य 🙏
Real music and spirituality mentor.