एक बार भगवान बुद्ध कहीं से एक रुमाल लेकर आए, वैसे वे कभी कुछ लाते नहीं थे, रुमाल में एक गठान बांधी, और शिष्यों से पूछा कि इसमें कुछ अंतर हो गया है , या ये वही है ?
एक शिष्य ने कहा, एक अर्थ में तो ये रुमाल वही है, इसमें ना कुछ जोड़ा गया है, ना घटाया गया है, लेकिन दूसरे अर्थ में ये वही नहीं रहा, इसमें अब एक गांठ पड़ गई है !
जीवन भी कुछ ऐसा ही है...
हमने अपने भीतर अनेकानेक ज्ञान की, अनुभवों की, विश्वासों की, दौड़ की, मोह की, और ना जाने कितनी गांठें बांध लीं हैं, कि अब अगर हम उस बिना गांठ वाले रुमाल की तरह सरल, और उपयोगी होना चाहें तो संभव नहीं हो सकता । और अपने लिए ही उपयोगी, दूसरे की बात छोड़ दें। और उससे भी बड़ी बात यह है कि हम अपने अंधेपन में उन गांठों को और, और खींचते हैं, उन्हें खोलने के लिए ?
और याद रहे, आपके दुख, कोई ऊपरी शक्ति, कोई, दूसरे लोग, या परिस्थितियां नहीं । ये वही गांठें है जो क्रमशह अपने बांधी थीं ।
और गांठ जिस भांति बांधी जाती है उसी भांति खोली जा सकेगी, खींच कर नहीं, जिस रास्ते से चले थे उसी पर अब विपरीत चलना होगा, दुनिया का कोई भी रास्ता एकतरफा नहीं होता, हर रास्ते में दो दिशाएं होती हैं, आप पैदा हुए थे तो वैसे ही थे जैसे धरती आकाश पेड़ पौधे और अन्य जीव, उनमें कुछ बदला नहीं, वे अब भी बहुत आनंदित हैं, मनुष्य को छोड़कर सब प्राकृतिक है, आनंदित है । अगर इस भागमभाग से थोड़ी अरुचि, हो गई हो, और आपकी उम्र थोड़ी और शेष मालुम होती हो, तो पीछे लौटा जा सकता है, गांठें खोली जा सकती हैं, जीवन को जिया जा सकता है ।
Professor Ravi shakya,
Music and spirituality mentor