जब मैं छोटा था, लोग मेरे गाने सुनते थे, और खूब तारीफ करते थे ।
कुछ लोग पांच दस पैसे भी देते थे ।
फिर मुझे लगने लगा कि मैं अच्छा गाता हूं, करीब १५-१६ की उम्र तक मुझे भी यही लगता था कि मैं, संगीत, गीत, लेखन वादन आदि अच्छी तरह जानता हूं ।
में कुछ सालों तक इसी भ्रम में रहा कि मैं सब जानता हूं, फिर जब मैंने संगीत सीखा और स्कूल की पढ़ाई पूर्ण की, तब मुझे आश्चर्य हुआ, कि मैं कुछ भी तो नहीं जानता था ! और तब मैंने ये जाना कि मैं बहुत कम जानता हूं, जीवन के बारे में, संगीत के बारे में बल्कि जीवन स्वयम ही संगीत है और मैं बहुत कम जानता हूं इसके बारे में।
लेकिन तब भी यह भाव, यह बोध बना ही रहा कि मैं कुछ जानता हूं....
लेकिन!
अभी कुछ वर्षों में जब ४० के पार हुआ, मुझे लगता है कि मैं कुछ भी नहीं जानता !
और मुझे लगता है मुझसे
बढ़ा मूर्ख कोई नहीं है, में कुछ भी नहीं जानता।
क्या जानते हैं हम जीवन के सम्बंध में ?
क्यो होता है जन्म ?
क्यो होती है मृत्यु ?
क्यो चलती हैं सांस ?
क्यो गाते हैं गीत और क्यो रोते हैं बात बात पर ?
क्या जानते हैं हम ?
और अब जबकि में ये जान गया हूं कि मैं कुछ नहीं जानता, तो जानने का दरवाज़ा खुलने लगा है, संभावना बनी है कि कुछ जानना हो सकता है, प्रयास जारी रहा, और जीवन कुछ और बाकी रहा तो जीवन के अंतिम अनुभव में थोड़ा बहुत जानना हो सकता है।
Professor Ravi shakya.
Music and spirituality mentor
Saturday, December 28, 2019
क्या जानते हैं हम जीवन के बारे में।
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