[24/03, 12:18 pm] ravifilmspro@gmail.com: आजकल सोशल मीडिया पर मंदिर,वो भगवानों पर बहुत से मजाक चल रहे हैं इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह आर्टिकल।
[24/03, 12:19 pm] ravifilmspro@gmail.com: ये सही है कि भगवान मंदिरों में नहीं है, मूर्तियों में नहीं है, ना मस्जिद में ना चर्च में है, और साधारण लोग जिस रूप में भगवान को मानते हैं या मनवाया गया है वैसा भी कुछ नहीं है । मगर उसका अस्तित्व है । और वह इन्सानों के भीतर ही है, अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे कहां देखते हैं, कहां ढूंढते हैं ।
मगर कर्मकांड के पाखंडियों ने लोगों के दिलो-दिमाग में भगवान के डर को ठूंस ठूंस कर भर दिया है और सारी नैतिकता को भगवान नाम के शब्द से जोड़ दिया है, जबकि भगवान एक शब्द है, मनुष्य की चेतना के सर्वोच्च शिखर का, भगवान एक शब्द है मनुष्य की सर्वशक्तिमान सकारात्मक ऊर्जा का, भगवान एक शब्द है, भौतिक शरीर के बजाय आंतरिक और आत्मिक चिंतन का, भगवान एक नाम है योग में समाधी का, जिसे परब्रह्म कहा जाता है।
ये और बात है कि सभी लोग भगवान को इस तरीके से जानने में समर्थ नहीं होते हैं, और वे लोग भी जिन्हें महात्मा कहा गया ।
तो फिर साधारण इंसान को कोई सहारा चाहिए जिससे वह अप्रत्यक्ष रूप से अपने मन को एकाग्र कर सके, और और अपने भीतर सकारात्मकता का निर्माण कर सके, इसके लिए अगर आपके पास कोई दूसरी विधि नहीं है तो तब तक यही उचित है कि आप भगवान के नाम पर किसी मूर्ति के सामने नतमस्तक हो सकें, झुक सकें । नहीं तो दुनिया में और कोई है ऐसा जिसके सामने आदमी झुक जाना मंजूर करें, वो भी आदमी ?
आदमी भगवान के अलावा किसी और के सामने झुकने को ना कभी राजी हुआ है ना हो सकेगा ।
यद्यपि हमारी सारी धार्मिक किताबें पंडितों की जागीर रही हैं, फिर भी मनुष्य की नैतिकता में उन किताबों का बढ़ा योगदान है, भगवान के डर से ही सही, वरना विद्यालय का नैतिक शास्त्र किसी को भी याद नहीं रहता ।
भारत की संस्कृति क्या है ? वे मान्यताएं ही हैं जो हम मानते हैं, वे क्रियाएं हैं जो हम करते हैं, वे अभिव्यक्तियां हैं जो हम व्यक्त करते हैं, वे धारणाएं हैं जिन्हें हम धारण करते हैं, और जो धारण किया जाए वह धर्म है ।
तो क्या आप अभी कुछ धारण करते हैं ? आप कहेंगे नहीं क्योंकि में तो धर्म को मानता ही नहीं ।
लेकिन आप अभी बहुत सी गलत चीजें धारण करने लगे हैं, जो हमारे धर्म का हिस्सा नहीं थीं।
जैसे कि हाथ जोड़कर नमस्कार करने की जगह हाथ मिलाना, हग करना । और फिर बात यहीं नहीं रुकेगी.....
तो हम वो नहीं कर रहे जो हमारा धर्म है । तो धर्म की हानी हो रही है, और पांच हजार साल पहले श्री कृष्ण ने कहा था, "जब जब धर्म की हानि होती है तब तब पापियों का नाश करने ओर धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं।
तो कृष्ण का कोरोना अवतार है । इसलिए वे पाखंडी भी भयभीत है जो भगवान का धंधा करते रहे हैं । भगवान किसी को क्यो बचाएं ?
कोनसा महान कार्य किया है किसी ने खासकर धार्मिकों ने, कर्मकांड के पाखंडियों ने, बल्कि उन्हें ही तो सजा देने का ये उपाय किया गया है।
भारत की संस्कृति, मूल्यों, व मान्यताओं के पीछे गहरा विज्ञान है, जिसने अंग्रेज़ो को भी हाथ जुड़वाकर आज ये साबित कर दिखाया है ।
शायद यही आखिरी संदेश है प्रकृति का दुनिया के लिए कि सुधर जाओ, अगली बार आदमी से आदमी में नहीं, हवा में फैलने वाला वायरस भी आ सकता है ।
रवि शाक्य
संगीत एवं आध्यात्म गुरु।
Appreciations to you sir.
ReplyDeleteGreat people like you are thinking about india and it's culture which is very good about you.
Thank you sir