Saturday, May 29, 2021

स्वर्ग और नर्क कोई स्थान नहीं हैं।

हम सभी के भीतर एक आत्मा होती है और दूसरी बुद्धि। बुद्धि को सभी जानते हैं और बुद्धि में ही जीते हैं,मगर जो लोग आत्मा को जान लेते हैं वे मरने के बाद परम + आत्मा । अर्थात परमात्मा में विलीन होकर संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। और जो लोग उसे नहीं जान पाते वे व्यर्थ ही एक चाबी वाले खिलौने की तरह चल रहे हैं।उनकी अनेकों कामनाएं होती हैं जोकि बुद्धि की उपज होती हैं, और जोकि इस जीवनकाल में अधूरी रह जाती हैं । तो उनको पूरा करने के लिए क्योंकि वे उनके संस्कार बन जाती हैं तो अपने अपने संस्कारों के अनुसार ही या तो उन्हें अपने लिए एक उपयुक्त गर्भ की तलाश रहती है और उस तलाश में वे भूत के रूप में भटकते रहते हैं या फिर उचित गर्भ में प्रवेश करके फिर अपनी कामनाओं को पूरा करने के लिए जन्म ले लेते हैं। 
ऐसे लोग खोपड़ी में ही जीते हैं और खोपड़ी में ही मर जाते हैं। ये बात बहुत कड़वी हो सकती है मगर सच्चाई यही है। आध्यात्म दो शब्दों से मिलकर बना है -
आध्य + आत्म = आत्मा का अध्ययन और जो लोग इस राह पर चलते हैं उन्हें सभी लोगों में एक ही चीज़ दिखाई देती है - परम आत्मा अर्थात परमात्मा । 
आपको कैसे जीना है यह आपका चुनाव है, प्रकृति अपना कार्य करती है और आप अपना। आप स्वतंत्र हैं, ऐसा देखने में लगता है मगर आप परमात्मा के कार्य में साधक हैं या बाधक, ये निर्धारित करेगा की मृत्यु के बाद की यात्रा कैसी होगी। स्व में विचरण करना ही स्वर्ग है स्व: + ग और स्वर + ग, ये दो संधि से बनता है  स्वर्ग।स्व का अर्थ है स्वयं और ग संस्कृत की गम धातु से लिया है गम का अर्थ है जाना। अर्थात स्वयं में जाना।और नर्क यानी नर के बीच में भूत बनकर, या फिर से जन्म लेकर पीड़ा भोगना । स्वर्ग और नर्क कोई स्थान के नाम नहीं हैं, बल्कि ये मृत्यु के उपरांत की अवस्थाएं हैं और कुछ भी नहीं।
रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

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