संगीत में स्थिर और नियमित आंदोलन वाली मधुर ध्वनि को नाद कहते हैं। जो कम्पन से उत्पन्न होता है।
में आपको बताना चाहता हूं कि में यहां संगीत की जानकारी नहीं देने वाला हूं। वो तो कुछ और है, इसलिए पूरा अवश्य पढ़ें।
तो जब ये नाद उत्पन्न होता है तो ये अकेला नहीं होता। इसके साथ कुछ सहायक नाद भी उत्पन्न होते हैं, ये अच्छे भी होते हैं और बुरे भी। परंतु ये सहायक नाद ही उसे अन्य आवाजों से पृथक पहचान दिलाते हैं। जैसे हम सभी एक ही स्वर पर बोलें तब भी हम पहचान लेते हैं कि ये आवाज़ किसकी है। ये हमारे सहायक नाद की वजह से होता है।और जब इन्हें किसी क्रम से उत्पन्न किया जाता है तो एक मधुर धुन की रचना हो जाती है।
में आपको बताना चाहता हूं कि ये बात वस्तुओं पर ही नहीं, व्यक्तियों पर भी ठीक ठीक लागू होती है। जिस तरह किसी वाद्य यंत्र में इनको एक विशेष प्रकार से ट्यून किया गया है तो वह उसकी विशेषता भी है और पहचान भी। आप तुरंत कह सकते हैं कि यह गिटार, या तबला या और कोई वाद्य यंत्र है। और यह आप हैं, या मैं।
ठीक उसी प्रकार व्यक्तियों में भी, या तो स्वयं के द्वारा स्वयं को, या दूसरों को, या दूसरों द्वारा खुद को कई वर्षों से ट्यून किया गया है।और आज कौन होगा जो दूसरों को अपने हिसाब से ट्यून नहीं करना चाहेगा। मगर प्रकृति ने जन्मजात सभी को विशेष रूप से ट्यून किया है। ये एक कमाल की ट्येयूनिग है जिसे विराट, परमात्मा ही कर सकता है। ये उनकी विधियां, साधना, विचार, या आदतें हो सकती हैं। और ये अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी। और इन्हें हम उनके गुण या दोष के रूप में भी देख सकते हैं, और जेसाकि दोष के रूप में देखते ही हैं। तो नाद अथवा गुण तो सबको समझ नहीं आता परंतु सहायक नाद यानी ध्वनियां सबको सुनाई पड़ जाती हैं, और व्यर्थ की ध्वनियां किसको सुनाई नहीं पड़ जाएंगी ? जबकि आपके कानों की पूरी चेष्टा, पूरी बुद्धि और चेतना उसमें संलग्न हो ?
मगर में मज़ा ये है कि आप जिसे बुरी ध्वनि समझते हैं और उसे मिटा देना चाहते हैं आपको शायद ख्याल ही न होगा कि उसी के साथ वह नाद भी बिगड़ जाएगा जिससे मधुर संगीत पैदा होता है।
आदमी का एक गुण भी, मात्र एक गुण नहीं है । उसके साथ ही उसकी अन्य क्षमताएं, असीमित संभावनाएं भी जुड़ीं हैं।
जैसे आप गुलाब के फूल को देखें, और चाहें कि इसमें कांटे बुरे हैं और आप उन्हें काटने लगें । आप उन्हें काट सकते हैं। आज तो लोग फूलों को भी मसल देते हैं। तो कांटों को कौन नहीं काट देना चाहेगा ? मगर आप भूल रहे हैं कि गुलाब के पौधे का गुलाब होना केवल फूल का होना ही नहीं है, कांटे भी उसके अस्तित्व का हिस्सा हैं।
आप जैसे ही एक कांटे को काटते हैं, पौधा भी कटता है। उसमें से कुछ कम होने लगता है। आप ये भी भूल रहे हैं कि कांटे आपको नापसंद हैं, मगर फूल को नहीं। फूल को उनकी जरूरत है वे उसकी सुरक्षा के लिए हैं। वे आपको भी नुकसान नहीं पहुंचाते जब तक कि आप उनके कार्य में बांधा न डालें। फिर भी आप उन्हें काटते हैं तो एक दूसरी बात यह भी है कि आप की संवेदनशीलता कुछ कम हो गई है। और आप स्वार्थी हो गए हैं।
तो जब आप किसी इन्सान के किसी एक गुण को मिटाने की कोशिश में लग जाते हैं, तो आप उसे धीरे धीरे काट रहे होते हैं । उसके कांटों को ही नहीं, फूल को भी, ध्वनि को ही नहीं, नाद को भी, स्वभाव को ही नहीं, जीवन को भी।
हमारा स्वभाव प्रकृति का सृजन है और उसके अनुसार कार्य करना हमारा चरित्र। ध्यान रहे ये वो चरित्र नहीं जो मानव निर्मित होता है। वो तो दो कौड़ी का है, उसका कुछ मूल्य नहीं। ये तो पृकृति प्रदत्त चरित्र है। और जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार है। प्रकृति ने हमको विशेष प्रवृत्ति दी है वहीं असली चरित्र है।और उसमें हस्तक्षेप करना प्रकृति में बाधा उत्पन्न करना है ।जो कि बिलकुल भी ठीक नहीं है।
क्या में छोटी सी कहानी सुना सकता हूं ?
विद्यासागर को गवर्नर के द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जाना था। विद्यासागर तो अपने ही ढंग से रहते थे। कुर्ता-पायजामा और हाथ में लाठी।
उनके मित्रों ने कहा- बड़ा समारोह होगा, तो इस तरह जाना उचित नहीं।कुछ कपड़े खरीद लें, उन्होंने मना भी किया, मगर मित्र नहीं माने। अतः सूट बूट खरीद लिए। शाम को विद्यासागर जी नदी किनारे टहलने गए थे। वहां एक मौलवी साहब को देखते हैं, जिनके चेहरे पर अपार शांति थी।और आहिस्ता आहिस्ता, सधी हुई चाल में चल रहे थे। एक आदमी दौड़ता हुआ आया और मौलवी साहब से कहा - "आपके घर में आग लग गई"। वे वैसे ही चलते रहे, उस आदमी ने दोबारा कहा "आपने सुना कि नहीं, मेंने कहा घर में आग लगी है"। मौलवी ने कहा -"सुन लिया है"। और वैसे ही धीरे धीरे चलते थे। अब तो विद्यासागर जी से रहा न गया, वे उनके पास जाकर बोले- "आप भी अजीब हैं, उसने कहा आपके घर में आग लग गई है। और आप वेसे ही चल रहे हैं ?
मौलवी ने कहा, आग लग गई तो मैं क्या करूं ? लग गई तो लग गई। इसके लिए क्या जिंदगी भर की चाल बदल दें ?
विद्यासागर ने घर पहुंच कर मित्रों से कहा ये कपड़े वापस करें। गवर्नर के लिए -"जिंदगी भर की चाल नहीं बदल सकते"।
Professor Ravi Shakya,
Music and spirituality mentor