संदर्भ:- हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना ही प्रसन्नता का मूल मंत्र है। एक भाई के विचार का जवाब।
अच्छा विचार है, परंतु,काश ! सभी लोग ऐसा कर सकते, और ये इतना आसान होता। क्योंकि परिस्थितियों में संतुलन कोई छोटी बात नहीं है, परिस्थितियां एक से बढ़कर एक भयावह हो जाती हैं जिनमें अच्छे अच्छे शूरवीरों के भी पैर उखड़ने लगते हैं। और जब भी ऐसा हुआ है तब किसी गुरु ने मार्गदर्शन किया है। उदाहरण के लिए आल्हा ऊदल को देखें, ऐसे अनेक मौके आए जब परिस्थितियां उनके बस में नहीं थीं, कोई रास्ता नहीं सूझता था, तब गुरु गोरखनाथ ने ही उनको रास्ता दिखाया था। तो ये एक बहुत बड़ी बात है, और इसके लिए आध्यात्मिक अभ्यास, सत्संग और सदगुरु का मार्गदर्शन चाहिए। ये कोई ऐसा काम नहीं कि हमने पढ़ा, सुना और करने लग जाएं। पहले तो परिस्थितियां प्राकृतिक हैं या स्वयं निर्मित, दोनों के लिए संतुलन बनाने का सही तरीका अलग हो सकता है। और संतुलन का ठीक ठीक अर्थ भी पता हो। तो, ये इतनी सी बात नहीं है। मगर कहने सुनने के लिए अच्छी है। हो सकता है कोई ऐसा कर भी ले, या ये भी हो सकता है कोई चोरी और पूजा दौनो करे और समझे कि संतुलन बन रहा है, एक शराबी रात की जगह दिन में पीने लगे और कहे कि अब रात में नहीं पीता तो संतुलन बन गया। बहुत सी बातें हो जाएंगी। हम सब पढ़ें लिखे हैं, मगर सबका अपना अपना रास्ता है जिस पर चलने में हम ट्रेंड नहीं होते हैं कोई उस रास्ते का विशेषज्ञ भी होता है, हमें उसका मार्गदर्शन लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। चाहे वो कोई भी हो, मां बाप, भाई बहन, दोस्त या शिक्षक। वरना हमारा कार्य एक बुनियाद रहित मकान बनाने जैसा भी हो सकता है। इसी लिए गुरु तो चाहिए ही। क्योंकि फूल हम घर में भी सूंघ सकते हैं परन्तु वाटिका की बात ही कुछ और होती है।
आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रो. रवि शाक्य।
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु
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