अगर धरती पर कुछ ठीक करने की जरूरत है तो वह है आदमी का दिमाग, बाकी सब तो बहुत सुंदर है,
बाहर बहुत देख लिया, अब तक कुछ पाया नहीं, जबसे पैदा हुए हैं हम बाहर ही तो देखते रहे हैं, वस्तुएं दिखाई पड़ती हैं, उन्हीं का आकर्षण बना हुआ है, और ये आकर्षण भी मात्र आकर्षण नहीं, मोह है। और ये कभी छूटता नहीं, पिछली बार भी हम इस मोह के साथ ही मर गये थे, कई जन्मों से यही खेल चल रहा है, और हर बार कुछ साथ नहीं ले जा सके। क्योंकि हमने बाहर से कुछ पाया ही नहीं, और जिसे तुम समझते हो कि ये तुमने पाया है तो तुम भ्रम में हो। बहुत मकान बनाए, बहुत पद और धन पाया, ऐसा तुम्हें लगता है ऐसा है नहीं, क्योंकि तुम मृत्यु के पार एक सुई भी नहीं ले जा सकते। तो ऐसा क्या है जो तुम अपने साथ ले जाने में समर्थ हो, और वह कहां है ?
क्या कभी तुमने अपनी सांसों पर ध्यान दिया है ? तुम हंसोगे कि सांस पर भी कोई ध्यान देंना होता है, वह तो चलती ही है, अपने आप।
मगर तुम्हारी सांस का चलना इतनी छोटी बात नहीं है, क्योंकि आज रात जो सो गये हैं उनमें से हजारों कल नहीं उठेंगे, और उनकी सांस नहीं चल रही होगी। तो क्या अब भी आप कहेंगे कि सांस पर क्या ध्यान ?
थोड़ी देर एकांत में बैठकर अपनी आती जाती सांसों को महसूस करें, कुछ दिनों के अभ्यास से तुम्हें एक और मार्ग दिखाई देने लगेगा ।
भीतर कुछ है, पहले थोड़ा ऐसा ही लगेगा, और जैसे जैसे अभ्यास बढ़ेगा एक दिन तुम पाओगे कि भीतर ही सबकुछ है, बाहर सब बकवास, क्योंकि भीतर तुम हो,तो भीतर परमात्मा है, परम आनंद भी, और दूसरा कोई है ही नहीं, बस एक ही है । परम आत्मा, और उसे तुम व्यर्थ ही बाहर ढूंढ रहे थे। भीतर जीवन है, तुम एक जीवन हो, इतना ही पर्याप्त है परमात्मा का धन्यवाद करने के लिए । भीतर परम आनंद है, और कोई चाह बाकी नहीं रह गई। तुमने इस जीवन को भरपूर जिया, परम आनंद के साथ, और ये आनंद तुम अपने साथ मृत्यु के पार ले जाने में समर्थ हो। मेरा अपना विचार है कि मृत्यु के क्षण में, में पूरे आनंद में रहूं, मेरी आंखों में एक विजेता सी चमक हो, अनंत यात्रा का एक उत्साह हो, मेंने जीवन में स्वयं को खुश रखा, और दूसरों को भी, एक ऐसे धन का भंडार मेंरे साथ हो।
हां ! ये सब में अपने साथ ले जा सकता हूं।
प्रो. रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।
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