Saturday, December 28, 2019

शिक्षक

यदि हमारे शिक्षक प्रसन्नता को ही अपना कर्त्तव्य पालन स्वीकार लेते, और यह कला हमें भी सिखा देते, तो यह संसार आज की तुलना में कुछ और भी खूबसूरत होता।
लाओत्से।

आप दूसरों में क्या देखते हैं।

रावण के दस सिर थे, ये आप जानते हैं, राम ने उसे मारने के बाद कहा,
में राज्य में नहीं जाऊंगा, में अगस्त्य मुनि की गुफा में जाकर प्रायश्चित करूंगा, सब हैरान थे। लक्ष्मण ने कहा ये आप क्या कहते हैं, उसने आपकी पत्नी का अपहरण किया था ?
राम ने कहा, ये उसके नौ सिर का काम था, जो लालच, जलन,वासना, आदि सभी बुरी चीजों से भरे थे।
मगर उसका एक सिर, भक्ति, करुणा, ज्ञान, आदि सद्गुणों से भरा था, मुझे उस एक सिर को नहीं मारना था, लेकिन इसका कोई उपाय नहीं था, और मुझे एक महान राजा, वीर, और महाज्ञ्यानी योद्धा, और शिव के महान भक्त को मारना पढ़ा, में इसका प्रायश्चित करना चाहता हूं।
में यहां ये बताना चाहता हूं कि हम सब लोगों के दस से ज्यादा सिर हैं !
अलग-अलग समय पर हमारे अलग अलग सिर काम करते हैं, कभी आपको एक व्यक्ति बुरा दिखता है, मगर वो आदमी बुरा नहीं है, ये उसकी एक अवस्था है, दूसरी अवस्था में वो बहुत सुन्दर और प्रेमपूर्ण हो सकता है, ये उसका एक सिर का काम है, तो ये उसकी पहचान नहीं है, आप एक गुलाब देखकर कहते हैं यह गुलाब का पौधा है, उसमें एक गुलाब और हजारों कांटे हैं, लेकिन आप उसे कांटों का पौधा नहीं कहते ? क्योंकि आप सुन्दरता को पहचानते हैं,  आप उसको उसकी सुन्दरता के आधार पर नाम देते हैं, क्योंकि सुन्दरता आपके अंदर है,  आम के पेड़ में आम कम पत्तियां अधिक होती हैं, आप उसको पत्तियों का पेड़ नहीं कहते, उस एक आम का मीठा रस !
क्या कोई इन्सान होगा जिसमें किसी भी समय एक बार भी वह मिठास ना उभरती हो ?
और जब तक आप उस मिठास को देखने में समर्थ नहीं हैं, वह आपके भीतर भी नहीं उभर सकेगी । ये घटिया, वो बुरा, वो नीचा, ऊंचा, लालची, बस, इसी में ज़िन्दगी उलझी रहेगी।

तो आप दूसरों को क्या पहचान देते हैं, कांटा या गुलाब ?
Ravi Shakya,
Music and spirituality mentor

क्या जानते हैं हम जीवन के बारे में।

जब मैं छोटा था, लोग मेरे गाने सुनते थे, और खूब तारीफ करते थे ।
कुछ लोग पांच दस पैसे भी देते थे ।
फिर मुझे लगने लगा कि मैं अच्छा गाता हूं, करीब १५-१६ की उम्र तक मुझे भी यही लगता था कि मैं, संगीत, गीत, लेखन वादन आदि अच्छी तरह जानता हूं ।
में कुछ सालों तक इसी भ्रम में रहा कि मैं सब जानता हूं, फिर जब मैंने संगीत सीखा और स्कूल की पढ़ाई पूर्ण की, तब मुझे आश्चर्य हुआ, कि मैं कुछ भी तो नहीं जानता था ! और तब मैंने ये जाना कि मैं बहुत कम जानता हूं, जीवन के बारे में, संगीत के बारे में बल्कि जीवन स्वयम ही संगीत है और मैं बहुत कम जानता हूं इसके बारे में।
लेकिन तब भी यह भाव, यह बोध बना ही रहा कि मैं कुछ जानता हूं....
लेकिन!
अभी कुछ वर्षों में जब ४० के पार हुआ, मुझे लगता है कि मैं कुछ भी नहीं जानता !
और मुझे लगता है मुझसे
बढ़ा मूर्ख कोई नहीं है, में कुछ भी नहीं जानता।
क्या जानते हैं हम जीवन के सम्बंध में ?
क्यो होता है जन्म ?
क्यो होती है मृत्यु ?
क्यो चलती हैं सांस ?
क्यो गाते हैं गीत और क्यो रोते हैं बात बात पर  ?
क्या जानते हैं हम ?
और अब जबकि में ये जान गया हूं कि मैं कुछ नहीं जानता, तो जानने का दरवाज़ा खुलने लगा है, संभावना बनी है कि कुछ जानना हो सकता है, प्रयास जारी रहा, और जीवन कुछ और बाकी रहा तो जीवन के अंतिम अनुभव में थोड़ा बहुत जानना हो सकता है।
Professor Ravi shakya.
Music and spirituality mentor

Wednesday, October 16, 2019

आपने जीवन को सरल बनाएं

एक बार भगवान बुद्ध कहीं से एक रुमाल लेकर आए, वैसे वे कभी कुछ लाते नहीं थे, रुमाल में एक गठान बांधी, और शिष्यों से पूछा कि इसमें कुछ अंतर हो गया है , या ये वही है ?
एक शिष्य ने कहा, एक अर्थ में तो ये रुमाल वही है, इसमें ना कुछ जोड़ा गया है, ना घटाया गया है, लेकिन दूसरे अर्थ में ये वही नहीं रहा, इसमें अब एक गांठ पड़ गई है !
जीवन भी कुछ ऐसा ही है...
हमने अपने भीतर अनेकानेक ज्ञान की, अनुभवों की, विश्वासों की, दौड़ की, मोह की, और ना जाने कितनी गांठें बांध लीं हैं, कि अब अगर हम उस बिना गांठ वाले रुमाल की तरह सरल, और उपयोगी होना चाहें तो संभव नहीं हो सकता । और अपने लिए ही उपयोगी, दूसरे की बात छोड़ दें। और उससे भी बड़ी बात यह है कि हम अपने अंधेपन में उन गांठों को और, और खींचते हैं, उन्हें खोलने के लिए ?

और याद रहे, आपके दुख, कोई ऊपरी शक्ति, कोई, दूसरे लोग, या परिस्थितियां नहीं । ये वही गांठें है जो क्रमशह अपने बांधी थीं ।
और गांठ जिस भांति बांधी जाती है उसी भांति खोली जा सकेगी, खींच कर नहीं, जिस रास्ते से चले थे उसी पर अब विपरीत चलना होगा, दुनिया का कोई भी रास्ता एकतरफा नहीं होता, हर रास्ते में दो दिशाएं होती हैं, आप पैदा हुए थे तो वैसे ही थे जैसे धरती आकाश पेड़ पौधे और अन्य जीव, उनमें कुछ बदला नहीं, वे अब भी  बहुत आनंदित हैं, मनुष्य को छोड़कर सब प्राकृतिक है, आनंदित है ।  अगर इस भागमभाग से थोड़ी अरुचि, हो गई हो, और आपकी उम्र थोड़ी और शेष मालुम होती हो, तो पीछे लौटा जा सकता है, गांठें खोली जा सकती हैं, जीवन को जिया जा सकता है ।
Professor Ravi shakya,
Music and spirituality mentor

Friday, October 4, 2019

नालायक बेटे अक्सर....

[04/10, 5:42 pm] ravifilmspro@gmail.com: पिता ने पुत्र से कहा- बेटा संभल कर चलना
जिंदगी के रास्ते बहुत बुरे हैं,
पुत्र ने जवाब दिया-
संभल कर तो आपको चलना है, मुझे तो आपके पद चिन्हों पर चलना है ।
[04/10, 5:42 pm] ravifilmspro@gmail.com: नहीं उसे कहना चाहिए कि आपने मुझे इस लायक बना दिया है कि मैं रास्ते खुद बना सकता हूं, इसके लिए आप सदैव मेरे आदर्श हैं । परंतु अभी तो मेरी उम्र है ठोकर खाने की, गिर कर संभलने की नए मार्ग खोजने की अभी जब ताकत भी है और जवानी भी, अगर अभी निर्जन पहाड़ों में रास्ते बनाने की हिम्मत नहीं जुटा सका तो आपकी उम्र में कैसे करूंगा,

सार ये है कि नालायक बेटे अक्सर वही ठहर जाते हैं, जहां उनके बाप ठहरा करते हैं ।
Professor
Ravi shakya,
Music and spirituality mentor.

युद्ध क्यों होते हैं

दुनिया में जितने भी युद्ध हुए हैं, सब किसी अंधे धृतराष्ट्र की वजह से । तीन हजार साल में लगभग पांच हजार युद्ध इतिहास में मिलते हैं, यानी हर दिन एक से अधिक युद्ध हुए, और जिन दिनों में नहीं हुए तब उनकी तैयारी होती रही होगी।
महात्मा गांधी अगर देश के राष्ट्रपिता ना होकर राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री होते तो आज की बुनियादी समस्याएं और कुछ होती या समस्याएं कम होती, भारत का भूगोल भी अलग होता । क्योंकि, उनके पास ठीक ठीक देखने वाली आंखें थीं, मगर फिर शायद वे महात्मा ना हो पाते, सभी महात्माओं के पास ठीक आंखें होती है, मगर महात्मा राजा नहीं होते, गुरु हमेशा सलाहकार रहे हैं रााजाओं के। जबकि गुरु ही राजा को बनाते हैं, और फिर राजा के हाथों की कठपुतली। गांधी जी भी भीष्म पितामह की तरह ही किसी अंधे धृतराष्ट्र के हाथों मजबूर रहे होंगे आप समझ सकते हैं । मेरे ख्याल से अगर कोई मानवतावादी है तो उसे इंसान की, परिवार और समाज की भलाई के बारे में ही सोचना चाहिए, और सत्ता पाना है तो राजनीति करना चाहिए,
नहीं तो समाज में राजनीति और राजनीति में समाज घुस जाते हैं, और तब संघर्ष अनिवार्य है।
दुनिया के सब युद्ध किसी अंधे राजा की महत्त्वाकांक्षा का परिणाम हैं। बात देश की ही नहीं व्यक्तियों की भी है, परिवार में भी सत्ता जब महत्वाकांक्षा में बदलती है तो संघर्ष व शोषण ही परिणाम होते हैं ।
पूज्य बापू को नमन।

रवि शाक्या,
संगीत एवं आध्यात्म गुरु

Sunday, September 29, 2019

changes in our body should be acceptable

When we were born, we did not run, there was no race, no aspiration, no greed, no ambition, no illusion,
Nevertheless, there were changes in our body every day, just as trees are in plants, this is the law of nature, it has to be accepted easily.  You are not the same at this moment as you were a moment ago, every moment changes, all the material things of the world change every moment, it is natural, so it should be acceptable,
Everything would be good, if we were natural in life.
but....
Right from the time we were born, we started filling up with information and information, this is the obstacle in natural life,
These information are all external, there is no connection with them, I say that once you are able to travel in your inner world, and you will find that nothing has changed, everything is fine, no one is away from you  , The whole world is yours, the whole universe will remove its mask and be presented to you.
Ravi Shakya,
Music and sprituality mentor.

Tuesday, September 3, 2019

आदमी क्या है?

आदमी को छोड़कर धरती का कोई भी जीव बलात्कार नहीं करता, नहीं करेगा भी, जररूत ही नहीं । दुनिया भर के दुष्कर्म, अनाचार, व्यर्थ की कामनाएं, सिर्फ सभ्यता की उपज हैं ।
बकरे, बैल, सभी जानवर, अपने साथी को सूंघ कर जान जाते हैं कि वे उनसे प्रेम के लिए तैयार हैं या नहीं, निष्चित ही वे जानवर हैं,  वे सभ्य नहीं । लेकिन,,,,,
वे आदमी से अधिक ईमानदार और भरोसा करने लायक़ हैं ।
आदमी की सभ्यता में कुछ बुनियादी भूल हुईं हैं , और उनके विरुद्ध बात करना, अब ऐसा होगा जैसे पहली बार धरती को चपटी के बजाय गोल कहा था।
Professor: Ravi shakya music and spirituality mentor.

Saturday, August 24, 2019

भागो मत, जियो

जीवन निकलता जा रहा है, और आप भाग रहे हैं कुछ बड़ा करने के लिए, समय सदैव रहेगा, सदियों से है, तुम भागमभाग ही मचाते रहे हो, कई कई जन्मों से और जीवन से चूकते रहे,  और मैं कहता हूं, अब भी वही भूल कर रहे हो समय तो बचा रहेगा, जीवन खर्च हो जाएगा ।
अगर तुम पिछले जन्मों को याद कर सकते तो समझ सकते, हर बार कुछ बड़ा किया, धन इकट्ठा किया, भोग किया, पर जीवन का जो आनन्द अनुभव किया जा सकता था वो नहीं हो सका, हर बार सब चीजें यहीं छूट गई, और इस बार भी छूट जाएंगी ।
तुम एक जीवन हो, क्या इतना काफी नहीं है परमात्मा का धन्यवाद करने के लिए ।
अगर फिर भी कुछ बड़ा करना है तो इतना ही करना कि इस बार जब मृत्यु का क्षण आए जो कभी भी आ सकता है, तब तुम्हें लगे कि इस बार तुमने ऐसा धन कमाया है  (जीवन का सच्चा आनंद ) जो अपने साथ ले जाने में समर्थ हो ।
Professor. Ravi Shakya,
Music and spirituality mentor.