दुनिया का कोई भी व्यक्ति आज जो भी है, चाहे जो भी हो, में,आप या कोई और, हम उसके बारे में उसकी वर्तमान स्थिति के आधार पर ही राय कायम कर लेते हैं इतना ही देख पाते हैं कि वो अभी क्या है, ये कोई नहीं देखता कि उसका ये आज, कहां से शुरू हुआ था, जिसका शायद सही मेहनताना उसे आज भी नहीं मिल रहा। मगर हम बड़े बेसब्रे लोग हैं, हम जानना नहीं चाहते बल्कि तुरंत ही अपना मत व्यक्त कर देते हैं।
हमें नहीं पता कि उसने कितने साज मिलाए, और कितने गीत गाए,
और आज वो जो है वो कोई महीने, साल, दो साल का परिणाम नहीं है, उसकी पूरी जिंदगी ही लगी है उसमें। आप ये कह सकते हैं कि सभी लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है हमने भी बहुत किया है।
माफ़ कीजिए !!! मगर ये पूरी तरह सच नहीं है। आप ये कभी जान ही नहीं पाएंगे कि आपकी मजबूरियां उतनी बड़ी कभी नहीं रही हैं जितनी उस आदमी की रही होंगी जिसके बारे में आप आज किसी नतीजे पर पहुंचने जा रहे हैं।
में चाहूंगा कि आप इतनी जल्दबाजी न करें ।
उफ्फ!.......
क्या आप भी उस स्कूल में पढ़े हैं, जो गांव में एक कमरे, और एक चबूतरे का होता है यदि हां, तो आपके पास अंग्रेजी नहीं बोल पाने का अच्छा बहाना हो सकता है।
मगर एक दूसरा बच्चा भी उसी जगह पढ़ता है, इतना ही नहीं, उस चबूतरे को, उसे दूर से गोबर और नदी से पानी लाकर लीपना और पोतना भी पढ़ता है । हां, पहले ऐसा ही होता था,! तो''' वह बच्चा अभी अंग्रेजी स्कूलो में पढाता है । कैसे ???
वही बच्चा महज १७ साल की उम्र में 4 राज्यो के राज्यपालों द्वारा संगीत निर्देशन के लिए सम्मानित होता है। १८ साल की उम्र में मुख्यमंत्री से भी सम्मानित होता है।
१२ साल की छोटी उम्र में क्योकि वह हारमोनियम नहीं खरीद सकता है, वह झोपड़ी में रहता है। उसके माता-पिता पढ़ें लिखे नहीं है, वह एक डॉक्टर के क्लीनिक में काम करके 150 रुपए महीने कमाता है, जिससे वह 70 रुपए महीने में संगीत की ट्यूशन लेकर संगीत सीखता है । क्योंकि वह हारमोनियम नहीं खरीद सकता है, तो वह दिमाग लगाता है और एक वाद्य यंत्र "बेन्जो" खुद बना लेता है,
आपको आश्चर्य होगा मगर ये सच है! और ना जाने कहां कहां से कैसे कैसे संगीत सीखता है, अगर कोई बड़ा गुरु उसे नहीं सिखाता है तो वह उसके घर के बाहर खड़े रहकर सुनता है।
नहीं , आप इतना नहीं कर सकते। बल्कि आप इनमें से बहुत सारी चीज़ें नहीं कर सकते।
क्या उसके पास नहीं सीख पाने के लिए प्रर्याप्त बहाने नहीं थे ?
कह सकता था वो सारी बातें जो आज हर कोई कहता है, वो सारे बहाने जो हर कोई बनाता है ?
ये कोई कहानी नहीं किसी के जीवन की गंभीर सच्चाई है।
तो आज की बात करते हैं, आज क्या हो सकता है उसकी कला का मूल्य ?
क्या कोई दे सकता है उसका मूल्य ?
और कला का क्या कोई मूल्य हो भी सकता है,
नहीं,
कोई उसका मूल्य कभी नहीं दे सकता, इतनी किसी की सामर्थ्य नहीं है, आप सिर्फ गुरु दक्षिणा ही दे सकते हैं, मूल्य नहीं । और मुझे अफसोस है कि आज ये कहानी कुछ लोगों को झूठ लग सकती है।
बाहरहाल !
आपके पास पर्याप्त बहाने हो सकते हैं। क्योकि आपको सिर्फ शौक है, दीवानगी नहीं।
ध्यान रहे दीवानगी और शौक में उतना ही अंतर है जितना कि एक शानदार जीत और पूर्ण पराजय में।
क्योंकि शौक को छोड़ा भी जा सकता है, मगर दीवानगी जीवन का गौरव पूर्ण अंत है। वह एक युद्ध में उतरे योद्धा की तरह ही है जो जीते जी लक्ष्य को पीठ नहीं दिखाता । योद्धा या तो जीतता है या मृत्यु का वरण करता है।
तो, वह बच्चा संगीत का दीवाना था।
और उस बच्चे का नाम है .....
रवि शाक्य !
हां, वो मैं ही हूं !
Professor Ravi Shakya
(Real music & spirituality mentor)
This motivated me a lot sir
ReplyDeleteI am very thankful to you for motivating us through your story
Thanks dear
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