Sunday, October 31, 2021

तुम सिर्फ एक बिजूका हो

आदमी का स्वाभिमान सिर्फ एक सामाजिक मुखौटा है जिसे उसने स्वयं गढ़ा है। मैं ऐसेअनेक लोगों को जानता हूं जो घर से बाहर निकलते ही वह मुखौटा पहन लेते हैं, और घर आकर उतार कर खूंटी पर टांग देते हैं। जो बाहर बड़ी बड़ी बातें करते हैं कभी उनके घर में उनके साथ रहकर तो देखना, वो आदमी आपको बिलकुल नकली लगेगा। आप कितने ही बुद्धिमान होने का दावा करें, कितने ही धनवान और इज्जतवान होने का दावा करें मगर अगर आपने अपने अहम को नहीं छोड़ दिया है तो आप सिर्फ एक अच्छे ढोंगी से अधिक कुछ भी नहीं हैं। हां ! ऐसा ही है। कभी आपने खेत में खड़ा हुआ बिजूका देखा है ? 
वह सीधा अकड़ कर खड़ा रहता है। वह पक्षियों को डराने-धमकाने का काम करता है, ये और बात है कि वह स्वयं हिल भी नहीं सकता अपनी जगह से। मेने असल जिंदगी में भी ऐसे अनेक बिजूके देखे हैं। आपने भी देखें होंगे, क्या यह सच नहीं है ?
तो मैंने एक दिन सोचा कि इससे पूछ ही लूं। तो मैंने एक बिजूके से कहा भाई तुम दिनभर धूप में खड़े रहते हो, थकते नहीं, और क्या बोर नहीं होते, थोड़ा लोगों से मिलो जुलो, हंसी मजाक करो। तो वह बोला -  " ऐसा नहीं है कि मेरा मन नहीं करता लोगों से मिलने, हंसी मजाक करने का, मगर इससे बड़ी गड़बड़ हो जायेगी। ये जो पक्षी मुझसे डरते हैं सिर्फ इसी कारण कि मैं अकड़ कर खड़ा रहता हूं। जरा भी हिला तो भेद खुल जाएगा कि में सिर्फ बिजूका हूं और रही बात बोर होने की तो तुम नहीं जानते कि लोगों को डराने में जो मज़ा है उसकी बात ही कुछ और है। अरे नकली ही सही मगर मुझसे सब डरते हैं। बिना हिले डुले, बिना कहीं आए जाए, तो इससे बड़ा मज़ा क्या होगा भला। और तुम मुझसे कहते हो कि मैं अकड़ दिखाता हूं यहां खड़े खड़े, तो तुम तो असली आदमी हो, तुम भी तो वही करते हो जो में करता हूं। तुम भी अकड़ लिए घूमते हो, मेने तो सिर्फ कपड़े का मुखौटा पहन रखा है तुमने तो सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सबसे अधिक जातिगत, न जाने कितने मुखौटे पहन रखे हैं ।और तुम हमेशा डरे रहते हो कि कहीं भेद न खुल जाए। तुम घर से बाहर निकलते हो तो मूंछ पर चावल लगाकर कि लगे कि बिरयानी खाकर आए हो, असल में तो तुम मुझसे भी गए गुज़रे हो क्योंकि जो में खड़े खड़े करता हूं तुम चल-फिर कर करते हो। में तो नकली हूं ही पर तुम तो आदमी हो ? कुछ तो आदमियत रखो। जरा जरा सी बात पर बताते हो जाति का घमंड, ऊंच-नीच का भेद, जबकि भीतर से तुम भयभीत हो, तुम्हें चिंता सताती है कि कोई तुम्हें मामूली न समझ ले, कहीं तुम्हरा भांडा न फूट जाए। मगर तुम भ्रम में हो कि लोग समझ नहीं रहे। लोग अब जान गए हैं कि तुम भी नकली आदमी हो, तुम्हरा कथित धर्म कोरी कल्पनाओं से अधिक कुछ भी नहीं, अच्छा है कि तुम्हारे ग्रंथों को पढ़ने और सुनने का अधिकार तुमने शूद्रों को नहीं दिया था, नहीं तो बहुत पहले वे तुम्हरा इस धर्म की अश्लील बातों को जान जाते, और बहुत पहले बगावत कर लेते । मगर अब वे उन ग्रंथों को पढ़ रहे हैं। और इसका परिणाम भी सामने आ रहा है। करता कारण है कि दस लाख शूद्रों ने बुद्धिष्ट हो जाने का वादा कर लिया है ? यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में लोग इतिहास में पढ़ेंगे कि भारत में कभी हिंदू धर्म हुआ करता था। कृपया अब तो मानव बनें । बहुत हुआ पाखंड, बहुत हुआ ढोंग। तुम ढोंगी हो, और परमात्मा को ढोंग नहीं चाहिए। उन्हें प्रेम चाहिए ‌
हा। तुम ढोंगी हो,  तुम सिर्फ एक बिजूका हो। और कुछ भी नहीं।
Ravi shakya,
Real music and spirituality mentor.

Sunday, August 29, 2021

शिक्षा ख़रीदीं नहीं जा सकती

संगीत रहित जीवन एक यांत्रिक जीवन है, ऐसा जीवन नीरस औ्र आनंद से रहित व परमानंद से विमुख है। 
कला व संगीत एक आनंदमयी आस्था, गहन परिश्रम व तप है जिसकी श्रैष्ठता साबित करने के लिए वाहवाही की नहीं बल्कि एकांत में बैठकर कठोर तपस्या करने की जरुरत होती है।
संगीत केवल गाना बजाना और नाचना ही नहीं है, बल्कि जीवन के हर एक रंग, राग द्वेश, सुख दुख और सभी मानवीय व प्राकृतिक भावों की एक ऐसी अभिव्यक्ति है कि जब लोग उसका श्रवण करते हैं तो  भूल ही जाते हैं कि आप कोई नाटक या फिल्म देख रहे हैं। बल्कि  स्वयं उसका हिस्सा बन जाते हैं और अपने आपको बस उसी में समर्पित कर देते हैं।
संगीत मानवीय नहीं ईश्वरीय है। फिर भी कुछ लोग इसके साथ ना सिर्फ मोलभाव करते हैं बल्कि वे समझते हैं ये स्कूली पढ़ाई जैसा ही है कि फीस दे दी तो शिक्षक को खरीद लिया।
 लेकिन आप शिक्षक को खरीद भी लें तो भी शिक्षा नहीं खरीदी जा सकेगी। अनंत पैसे से भी नहीं। महाभारत इसका उदाहरण है। गुरु द्रोणाचार्य नोकर तो दुर्योधन के पिता के थे परन्तु अर्जुन के प्रति उनके प्रेम को कोई नहीं खरीद सका। दरअसल शिक्षा व कला मात्र एक पाठ्यक्रम ही नहीं है अपितु यह किसी विषय विशेष में हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति भी है। हम आदमी को खरीद सकते हैं उसकी भावनाओं को नहीं। 
   तो उन लोगों को ये बात समझ लेना चाहिए जो किसी भी कला को सीखने की इच्छा रखते हैं। और जब वे लोग इस प्रक्रिया से गुजर जाएंगे तब वे भी यह बात समझ सकेंगे, जो आज मेरे द्वारा कही जा रही है। 
  दुर्भाग्य से मैंने कुछ ऐसे बच्चे भी देखे हैं जिनमें संगीत कला के अंकुर हैं।जो बढ़ना चाहते हैं और बढ़ने की योग्यता भी उनमें है। मगर उनके पालक समझते हैं कि वे ही उनके भविष्य के निर्माता हैं। वे अपने बच्चों के लिए दुनिया के सभी साधन इकट्ठे करके मरना चाहते हैं, वे अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर, आई एस आदि बनाकर उनके भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं। चाहे बच्चों में इसकी योग्यता हो या नहीं। चाहे बच्चे में एक अच्छा खिलाड़ी, कवि, साहित्यकार, या कलाकार बनने की अनंत संभावनाएं हों, मगर अफसोस! वे बड़े भ्रम में हैं जिन्हें अपने जीवन का कुछ पता नहीं वे एक दूसरे जीवन का भविष्य निर्माण कैसे करेंगे ? इसके लिए तो कोई योग्य शिक्षक ही चाहिए। 
बाहरहाल,आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
Ravi shakya,
Real music and spirituallity mentor,

Wednesday, June 30, 2021

असली चरित्र नशे में ही दिखता है

असल में संकल्प कमजोर होने के कारण ही आदमी नशा करता है। 
 मगर आदमी का असली चरित्र देखना हो तो नशे में ही देखना, बिना नशे में तो सब एक मुखौटे में अपने को छिपाए रहते हैं। भीतर कुछ और चल रहा है और बाहर सभ्य सुशील होने का ढोंग। नशे में आदमी बाहर से वही दिख जाता है जो वास्तव में वह है।
मेकाले लोगों का चरित्र बताता था। दूर दूर से लोग आते थे। इधर एक भारतीय वैज्ञानिक भी लोगों को सपने कैसे आते हैं सपनों का अध्ययन करके वह बताता था कि व्यक्ति का असली चरित्र क्या है। तो इस काम में कई साल लगते थे।
मेकाले सिर्फ १५ दिन में बता देता था।
मेकाले उस आदमी को अपने साथ रखता और १५ दिन तक खूब शराब पिलाता। और १५ दिन तक अध्ययन करके बता देता कि उस आदमी का असली चरित्र क्या है।
बहरहाल, हमारे लिए सभी इन्सान हैं। तो हमें उनके भीतर परमात्मा को देखने का प्रयास करना चाहिए।
  तुम भी अच्छे रकीब भी अच्छे,
में बुरा था, मेरी गुज़र ना हुई।
तुम ना आए तो क्या सहर ना हुई,
हां मगर चेन से बसर ना हुई।।
रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु🙏

Tuesday, June 15, 2021

कोई तो है, यहीं कहीं है।

कोई उम्मीद वर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती।
मौत का एक दिन मुअइय्यान है,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।।
पहले आती थी हालेदिल पे हंसी।
अब किसी बात पर नहीं आती।।
  सोचा तो था जिंदगी बहुत हसीन होगी, जिंदगी बहुत लंबी होगी, 
जिंदगी में ये करेंगे, जिंदगी में वो करेंगे। मगर अभी कुछ दिनो से लगता है जिंदगी तो बहुत छोटी है, 
क्या करेंगे कुछ करके। सब तो यहीं रह जाना है। पहले इस डर में जिए की मर तो नहीं जाएंगे। और अब मौत का डर ही नहीं। अब इस डर में जीते हैं कि हमारे कंधों पर जो भार है उसे उतारने का वक्त मिलेगा कि नहीं। 
देखो ना, अभी रात के एक से अधिक बजे हैं, और कई बार सोने की कोशिश की मगर नींद नहीं आती। 
पहले सोचा अपनों को सुला दूं फिर सोऊंगा। और जब सब सो गए तो में सो नहीं पा रहा। 
बहुत बार तो ऐसा बहाना भी करता हूं कि मैं सो गया ताकि सब सो जाएं, लेकिन हर बार यही होता है कि मैं रात भर जागता हूं। 
मन में कई ख्याल आते हैं। कभी कभी तो वो जो सुनहरे सपने देखे थे उन्हें ही दुबारा पूरी फिल्म की तरह देख लेता हूं। फिर लगता है वो तो सपने ही थे, सच्चाई तो यही है जो अभी है। सपने कहां सच होते हैं? 
मन करता है दुबारा बच्चा हो जाऊं, 
ताकि पल में झगड़ा करूं और पल में भूल जाऊं। 
सोचा था जिंदगी में ऐसा कुछ करूंगा कि मेरे अपनों को हमेशा गर्व होगा। और मेंने किया भी बहुत।
मगर अब यही लगता है कि चला तो बहुत, पहुंचा कहीं भी नहीं..…...
क्या ये जिंदगी बेकार ही गई ?
क्या में इतना खराब हूं कि कोई मेरे साथ भी रह नहीं सकता ? 
क्या में अपनों को थोड़ी भी खुशी नहीं दे सका ?
और भी बहुत सी बातें हैं मन में।
मन करता है किसी को ये सब रो रो कर बताऊं। मगर ऐसा एक भी नहीं,
किसको बताऊं ? 
कुछ ऐसी भी बातें हैं जो शब्दों में कहीं भी नहीं जा सकतीं। जो सिर्फ महसूस करने की हैं। तो सोचता रहता हूं।
अब तो किसी गीत में भी मजा नहीं आता। पहले गीत के बिना जीना संभव नहीं था।
क्यों होता है ऐसा ? 
कोई बता सकता है ?
कोई है ?
जबकि में ये जानता हूं कोई नहीं है।
मगर ये दिल,
ये दिल कहता है कि कोई है।
कोई तो है।
मेरे आस पास है।
यहीं कहीं है।
यहीं है।


Saturday, May 29, 2021

स्वर्ग और नर्क कोई स्थान नहीं हैं।

हम सभी के भीतर एक आत्मा होती है और दूसरी बुद्धि। बुद्धि को सभी जानते हैं और बुद्धि में ही जीते हैं,मगर जो लोग आत्मा को जान लेते हैं वे मरने के बाद परम + आत्मा । अर्थात परमात्मा में विलीन होकर संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं। और जो लोग उसे नहीं जान पाते वे व्यर्थ ही एक चाबी वाले खिलौने की तरह चल रहे हैं।उनकी अनेकों कामनाएं होती हैं जोकि बुद्धि की उपज होती हैं, और जोकि इस जीवनकाल में अधूरी रह जाती हैं । तो उनको पूरा करने के लिए क्योंकि वे उनके संस्कार बन जाती हैं तो अपने अपने संस्कारों के अनुसार ही या तो उन्हें अपने लिए एक उपयुक्त गर्भ की तलाश रहती है और उस तलाश में वे भूत के रूप में भटकते रहते हैं या फिर उचित गर्भ में प्रवेश करके फिर अपनी कामनाओं को पूरा करने के लिए जन्म ले लेते हैं। 
ऐसे लोग खोपड़ी में ही जीते हैं और खोपड़ी में ही मर जाते हैं। ये बात बहुत कड़वी हो सकती है मगर सच्चाई यही है। आध्यात्म दो शब्दों से मिलकर बना है -
आध्य + आत्म = आत्मा का अध्ययन और जो लोग इस राह पर चलते हैं उन्हें सभी लोगों में एक ही चीज़ दिखाई देती है - परम आत्मा अर्थात परमात्मा । 
आपको कैसे जीना है यह आपका चुनाव है, प्रकृति अपना कार्य करती है और आप अपना। आप स्वतंत्र हैं, ऐसा देखने में लगता है मगर आप परमात्मा के कार्य में साधक हैं या बाधक, ये निर्धारित करेगा की मृत्यु के बाद की यात्रा कैसी होगी। स्व में विचरण करना ही स्वर्ग है स्व: + ग और स्वर + ग, ये दो संधि से बनता है  स्वर्ग।स्व का अर्थ है स्वयं और ग संस्कृत की गम धातु से लिया है गम का अर्थ है जाना। अर्थात स्वयं में जाना।और नर्क यानी नर के बीच में भूत बनकर, या फिर से जन्म लेकर पीड़ा भोगना । स्वर्ग और नर्क कोई स्थान के नाम नहीं हैं, बल्कि ये मृत्यु के उपरांत की अवस्थाएं हैं और कुछ भी नहीं।
रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

Tuesday, May 25, 2021

शब्दों के पर्यायवाची जिसके अंत में त्र आता है।

1 पुत्र
2 एकत्र
3 सर्वत्र
4 गौमूत्र
5 कुरुक्षेत्र
6 अर्धसत्र
7 पुत्र
8 छात्र
9 मात्र
10 सूत्र
11 नेत्र
12 पात्र
13 मंत्र
14 पत्र
15 मानचित्र
16 नक्षत्र
17 चरित्र
18 वस्त्र
19 सौमित्र
20 अस्त्र
21 विचित्र
22 पवित्र
23 मंगलसूत्र
24 सहस्त्र
25 षड्यंत्र
26 पौत्र
27 पात्र
पं रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

Monday, May 10, 2021

मुझे कामचलाउ काम पसंद नहीं।

में जब कोई काम हाथ में लेता हूं तो इस बात की परवाह नहीं करता कि मुझे उसका कितना महनताना मिल रहा है। क्योंकि यह विचार जेसे ही आता है उस काम में मन भी आधा हो जाता है, यही कारण है कि लोग अपने काम में परफेक्शन नहीं ला पाते हैं, और कुछ बहाने खोज लेते हैं। मुझे ऐसे लोग भी पसंद नहीं। मुझे कामचलाऊ काम पसंद नहीं।
 अगर आप किसी काम को परफेक्ट नहीं कर सकते तो उसके लिए मना कर देने की हिम्मत भी रखिए। 
क्या आप जानते हैं आधे मन और पूरे मन से काम करने में उतना ही अंतर होता है जितना कि एक शानदार जीत और पूर्ण पराजय में। 
नेपोलियन जिसने दुनियां को फतह करने की कोशिश की थी वह मिर्गी का मरीज था ये कोई नहीं जानता, सब उसके पराक्रम और साहस के बारे में ही जानते हैं। एल्प्स पर्वत के सामने नेपोलियन की सेना खड़ी थी।
 एक बूढ़े ने कहा- "बेटा इस पर्वत को जिसने भी पार करने की कोशिश की है वह जिन्दा नहीं बचा। मेरी सलाह है वापस चले जाओ"। नेपोलियन की डिक्शनरी में असंभव शब्द था ही नहीं। बूढ़े की बात सुनकर उसकी आंखों में और भी चमक आ गई, और उसने अपनी सेना से एक ही वाक्य कहा- "सैनिको आगे बढ़ो" और नेपोलियन पर्वत के उस पार जाकर जीतकर वापस लौटा।
लंदन में एक घड़ी बनाने वाला था, उसकी ख्याति दूर दूर तक थी । एक दिन एक आदमी को उसने घड़ी बनाकर दी और कहा- "सात साल में भी अगर इस घड़ी के समय में सात मिनट का अंतर भी आ जाए तो वापस ले आना, में दूसरी बनाकर दूंगा"।
वह आदमी चला गया और पांच साल बाद आकर बोला, महाशय इस घड़ी के समय में पांच मिनट का अंतर आया है। मगर मुझे दूसरी घड़ी नहीं चाहिए। क्योंकि पांच साल में सिर्फ पांच मिनट का अंतर, इससे अच्छी घड़ी क्या होगी। लेकिन घड़ी वाले ने उस घड़ी पर हथौड़ा मारकर कहा- यह तुम्हें पसंद है मगर मैं भी अपनी बात के लिए वचनबद्ध हूं।
 मेरे हिसाब से घड़ी खराब है और मैं तुम्हें दूसरी बनाकर दूंगा। 
ये होती है ईमानदारी, ये है काम में परफैक्शन, और ये है पूरे मन से किया जाने वाला काम।
 अच्छे काम का नतीजा देर से मिल सकता है, मगर वह लोगों को युगपुरुष बनाने वाला होता है।
न्युयार्क में एक आदमी हथौड़ा बनाता था। कुछ लोग वहां काम के लिए आए थे, और वे अपना हथौड़ा भूल आए थे। उनमें से एक ने उस आदमी से कहा मेरे लिए आप सबसे अच्छा हथौड़ा बना दीजिए।
उसने हथौड़ा बनाकर दे दिया। वह हथौड़ा इतना प्रसिद्ध हो गया कि सभी उसके पास आने लगे। जिसने पहला हथौड़ा बनवाया था उसका एक साथी भी आया और कहा आप मेरे लिए भी एक हथौड़ा बना दीजिए। लेकिन यह हथौड़ा पहले वाले से भी अच्छा होना चाहिए। 
हथौड़े वाले ने उसका एडवांस उसके हाथ में वापस देते हुए कहा- "माफ कीजिए, उससे अच्छा हथौड़ा नहीं बन सकता‌ ‌। क्योंकि मैं जब कोई काम करता हूं तो उसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ता।
क्या है इतनी जिम्मेदारी ? क्या है इतना समर्पण अपने काम के साथ ? 
नहीं । आपके पास इमानदारी नहीं, समर्पण नहीं, परफेक्शन नहीं। तो फिर आपके पास सिर्फ बहाने हैं। 
और आप कुछ समय के लिए कुछ लोगों को बेवकूफ बना सकते हैं। लेकिन हमेशा के लिए सभी लोगों को नहीं।
🙏रवि शाक्य🙏
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

Monday, April 26, 2021

The music of life

Some things apply to some people for some time, but not everything applies to everyone all the time, my friend.  Any idea can be personal, but we cannot normalize it and make a line from which all have to go.  Maybe I am less important to you and the person sitting next to you may also be less important to you, but the current of life flowing between the three of us is important.  I see you at one end and you are at the other end, at the other end.  And the life between the three of us is not visible.  But even that place is not empty.  You must have heard that even zero is not just zero, and truth cannot be said in words.  You must have heard that the emptiness does not break.  So in the way I see, the gaps and pits between the three of us are not visible because they have no value, and all things are two-fold if we cannot see the flowing life stream between us, whose  Because you are alive and me too.  But that is it, and we do not have the eyes we need to see it, those who have filled the void, those who have filled the emptiness, in the void which exists as a whole. they can see the stream of music of life.  The real music section of life is not to live in pieces but to live in its full totality.  And those who have come to know this truth, there is no need to know anything anymore.


 Ravi Shakya,

 Music and spirituality mentor.

You have to learn not only from Rama but also from Ravana



 Understanding the Ramayana as a religious book of any one religion would be exactly the same as reading all the knowledge of history, sociology, moral education, science, geography, mathematics, economics, and political science in school as book knowledge and just pass the exam.  Tax it and forget it.
 It always happens that after watching a film once again it does not look good and there is a desire to see another film, but it happens sometimes that thousands of times it has been seen, read and heard on hearing the story again.  Even the mind is not filled and every time it wants to behave on its words, but a man always finds himself unable to do so.
 Ordinary people are unable to follow the protagonist when they see films, they understand that such high ideals can only be in stories, not in reality, but every story must leave its impact on human beings, especially teenagers and youth.  .
 So you would have noticed that most of the youngsters follow the villains of the film, it is also easy to do, and makes them something special in front of people, so this is happening.
 But what is the reason that those people find themselves unable to follow Ravana, the villain of Ramayana, what is there in the characters of this story?
 What would that hero be like "Rama" whose enemy, the villainous Ravana Brahmanologist, the Chakravarti emperor, the heroic of heroes, the skillful politician, full of morality, invincible, Ajit and a great devotee of Shiva.
 One can follow even those who could only be killed by God.
 So I want to tell you how Rama will be the one whom Ravana also chose for his death, Ravana is as revered as Rama, he killed Sita but in his most beautiful Ashoka Vatika, well like a hero in safety.  Known as Rama's heritage for winning from the war.
 Nowadays people use to do rape as soon as they get an opportunity, they need to learn from Ravana, and that is why they need to see Ramayana.
 Ram and all the characters related to him have set great ideals in their Ramayana through their own works, the article will be very long, so I do not want to go into detail, but still it is said that Rama is indescribable.  , But Dasharatha, Kaikei, Lakshmana, Bharata, Hanuman, Jamwant, Vibhishana and Ravana, each have the opportunity to explain one and the same Ramayana can be written separately, it is the culmination of wonder and experience that Goswami Tulsidas  Ji tied all these things in a poetic collection so beautifully. Blessed are they.
 But unfortunately today some people who are living in modernization not only consider the Ramayana as an object of ridicule, a fictional story but are also keeping their children untouched by it, I have a pity for those people that they want to own that world  Are being built which has never been in the culture of India.
 Happy Birthday of Maryada Purushottam Shriram.

 Ravi Shakya,
 Music and Spirituality mentor.

Sunday, March 28, 2021

होली एक दिन नहीं जीवनभर।

होली मतलब रंग, उमंग, उल्लास व उत्साह है। क्या आप आज भी उन सभी बुरी बातें व  व्यर्थ की चीजों को संभाल कर रखना पसंद करेंगे जो आपके आनंद में बाधक हैं, नहीं ना। 
तो.... आज के दिन हम उन सभी चीजों को जला देते हैं। यह बसंत रितु का एक बहुत महत्वपूर्ण दिन है जो आपको याद दिलाता है कि आपके चारों ओर रंग बिरंगे फूल खिले हैं। और इसी कारण इसे रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। रंग प्रतीक हैं उल्लास का, गीत का न्रत्य का। क्या आप जानते हैं आप सभी के जीवन में सात का बड़ा आंकड़ा है, संगीत के सात सुर, इंद्रधनुष के सात रंग, सात फेरे, टौने टोटके में सात। और अन्य अनेक प्रकार के सात के आंकड़े जाने अनजाने हमारे जीवन में बने रहते हैं।
बहरहाल, इन सभी में संगीत हमारे जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। क्योंकि आप चाहें या न चाहें, अनजाने ही आप अपने दैनिक जीवन में संगीत से जुड़े रहते हैं। कोई भी उत्सव हो, आपको संगीत सुनाई पड़ ही जाएगा। ये और बात है कि जिनका जीवन बिल्कुल सतही है उन्हें आजकल सिर्फ डी जे पसंद है। मगर आप संगीत से नहीं भाग सकते । तो.. ये उल्लास है, ये उत्साह है और असल मायने में आनंदित रहने का सबसे बड़ा साधन है। तो होली का असल मतलब उल्लास है। जो संगीत से पूर्ण होता है।
आजकल में देखता हूं, दुर्भाग्य से संगीत के जो विद्यार्थी हैं वे भी अपने जीवन में  संगीत के बजाय सभी गेरजरूरी साधन इकट्ठे करने में लगे हैं, वे साधन कुछ भी हो सकते हैं, शायद, धन, पद, प्रतिष्ठा या और कुछ । यही कारण है कि उनके जीवन में कोई होली, कोई बसंत, कोई फूल, कोई रंग या सुरों का सच्चा सोंदर्य नहीं दिखाई देता। वे अपने लिए सबकुछ पहले ही निर्धारित कर चुके हैं । असल में वे कुछ नहीं करते उनके पालकों के दिमाग की बकवास उनका निर्माण कर रही है। बेचारे बच्चे, जीवन के प्रारंभ में ही जीवन से भाग रहे हैं, मुझे उनकी चिंता है। भगवान् उनको सद्बुद्धि दे ताकि वे जीवन के  असली रंग में सराबोर हो सकें। वे होली का सही अर्थ जान सकें कि होली का उल्लास एक दिन नहीं बल्कि जीवन भर का उल्लास बन जाए। इस होली पर आप सब के लिए मेरी यही शुभकामना है।
🙏रवि शाक्य🙏
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

Thursday, March 18, 2021

तुम स्वाभिमानी नहीं ढोंगी हो।

आपका स्वाभिमान वह नहीं है जो मूलतः आप हैं, यै सिर्फ एक सामाजिक मुखौटा है जिसे आपने स्वयं गढ़ा है। 
मैं ऐसेअनेक लोगों को जानता हूं जो घर से बाहर निकलते ही वह मुखौटा पहन लेते हैं, और घर आकर उतार कर खूंटी पर टांग देते हैं। जो बाहर बड़ी बड़ी बातें करते हैं कभी उनके घर में उनके साथ रहकर तो देखना, वो आदमी आपको बिलकुल नकली लगेगा। आप कितने ही बुद्धिमान होने का दावा करें, कितने ही धनवान और इज्जतवान होने का दावा करें मगर अगर आपने अपने अहम को नहीं छोड़ दिया है तो आप सिर्फ एक अच्छे ढोंगी से अधिक कुछ भी नहीं हैं। हां ! ऐसा ही है। कभी आपने खेत में खड़ा हुआ बिजूका देखा है ? 
वह सीधा अकड़ कर खड़ा रहता है। वह पक्षियों को डराने-धमकाने का काम करता है, तो ये हो रहा है। ये और बात है कि वह स्वयं हिल भी नहीं सकता अपनी जगह से। मेने असल जिंदगी में भी ऐसे अनेक बिजूके देखे हैं। आपने भी देखें होंगे, क्या यह सच नहीं है ?
तो मैंने एक दिन सोचा कि इससे पूछ ही लूं। तो मैंने एक बिजूके से कहा भाई तुम दिनभर धूप में खड़े रहते हो, थकते नहीं, और क्या बोर नहीं होते, थोड़ा लोगों से मिलो जुलो, हंसी मजाक करो। तो वह बोला -  " ऐसा नहीं है कि मेरा मन नहीं करता लोगों से मिलने, हंसी मजाक करने का, मगर इससे बड़ी गड़बड़ हो जायेगी। ये जो पक्षी मुझसे डरते हैं सिर्फ इसी कारण कि मैं अकड़ कर खड़ा रहता हूं। जरा भी हिला तो भेद खुल जाएगा, कि में सिर्फ बिजूका हूं और रही बात बोर होने की तो तुम तो जानते ही हो कि लोगों को डराने में जो मज़ा है उसकी बात ही कुछ और है। अरे नकली ही सही मगर मुझसे सब डरते हैं। बिना हिले डुले, बिना कहीं आए जाए, तो इससे बड़ा मज़ा क्या होगा भला। और तुम मुझसे कहते हो कि मैं अकड़ दिखाता हूं यहां खड़े खड़े, तो तुम तो असली आदमी हो,और तुम भी तो वही करते हो जो में करता हूं। तुम  अकड़ लिए घूमते हो, मेने तो सिर्फ कपड़े का मुखौटा पहन रखा है तुमने तो सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और न जाने कितने मुखौटे पहन रखे हैं ।और तुम हमेशा डरे रहते हो कि कहीं भेद न खुल जाए। तुम घर से बाहर निकलते हो तो मूंछ पर चावल लगाकर कि लगे कि बिरयानी खाकर आए हो, असल में तो तुम मुझसे भी गए गुज़रे हो क्योंकि जो में खड़े खड़े करता हूं तुम चल-फिर कर करते हो। में तो नकली हूं ही पर तुम तो आदमी हो ? कुछ तो आदमियत रखो। जरा जरा सी बात पर बताते हो पेसे का घमंड, जबकि भीतर से तुम भयभीत हो, तुम्हें चिंता सताती है कि कोई तुम्हें मामूली न समझ ले। मगर तुम भ्रम में हो कि लोग समझ नहीं रहे। लोग अब जान गए हैं कि तुम भी नकली आदमी हो।
हां ! यही सच भी है। तुम सिर्फ एक बिजूका हो। तुम ढोंगी हो और कुछ भी नहीं।
Ravi shakya,
Real music and spirituality mentor.

Wednesday, March 10, 2021

पढ़ाई और संगीत

पढ़ाई तो हम भी करते थे और उसी समय संगीत भी सीखते थे। बस फर्क सिर्फ इतना है कि आप शौक से सीखने आते हैं और हम दीवाने थे। शौक तो ऐसा ही है जिसे कभी भी छोड़ा जा सकता है, आप अपनी जिंदगी को कभी नहीं छोड़ना चाहेंगे, हां! क्या में ठीक कह रहा हूं।
तो हमारा फोकस तय होना चाहिए। अगर आप इंजीनियर या कुछ और होना चाहते हैं तो आपको संगीत के बारे में नहीं सोचना चाहिए, और संगीतकार अथवा कलाकार बनना चाहते हैं तो दूसरी चीजों के बारे में नहीं सोचना चाहिए। वर्ना आपकी कला में कई दूसरी चीजें घुस जाएंगी । बहरहाल ! अगर आप सच्चे कलाह्रदय हैं तो आप किसी भी परिस्थिति में उसे नहीं छोड़ सकते, यही कारण है कि आपके सीखने में भी वह बात दिखाई नहीं देती जोकि होना चाहिए। अगर आप संगीत को अपनी सर्वश्रेष्ठ चीज़ नहीं समझते और उसे प्राथमिकता नहीं दे सकते तो दूसरे शब्दों में आप उसका अपमान कर रहे हैं। तो मैं चाहूंगा कृपया आप वही सब कुछ करें जो आपके जीवन में महत्वपूर्ण है और संगीत को छोड़ दें। क्योंकि ये वाकई बहुत बड़ी चीज है, चलते फिरते की जाने वाली नहीं है। आप वही करें जिसमें आप अपने जीवन को न्योछावर कर सकते हैं और जो भी करते हैं उसी में जीवन को न्योछावर कर दे। कृपया अपने को पहचानें कि दरअसल आप किसके लिए बनें हैं, और क्या चीज़ आपको जीवन भर सुख दे पाएगी।
कहावत हे कि, मार मार मुसलमान नहीं बनाया जा सकता। मुझे लगता है आप अपने साथ ऐसा ही कुछ कर रहे हैं।

रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

Tuesday, March 2, 2021

जीवन का संगीत

कुछ बातें कुछ समय के लिए कुछ लोगों पर लागू होती हैं, परंतु हर बात हर समय सभी पर लागू नहीं होती मेरे दोस्त। कोई भी विचार व्यक्तिगत तो हो सकता है, पर हम उसका सामान्यीकरण करके लकीर नहीं बना सकते जिस पर से सभी को गुजरना है। हो सकता है में आपके लिए कम महत्वपूर्ण हूं और आपके बगल में बैठा इंसान भी आपके लिए कम महत्वपूर्ण हो लेकिन हम तीनों के बीच जो जीवन की धारा बह रही है वही महत्वपूर्ण है। एक छोर पर आपको में दिखाई देता हूं और दूसरे छोर पर दूसरा, तीसरे छोर पर आप हैं। और हम तीनों के बीच जो जीवन है वह दिखाई नहीं देता। लेकिन वह जगह भी खाली नहीं है। सुना होगा कि शून्य भी मात्र शून्य नहीं है, और सत्य शब्दों में नहीं कहा जा सकता। सुना होगा कि रिक्तता तोड़ती नहीं जोडती है। तो जिस भांति में देखता हूं मुझे हम तीनों के बीच जो खाई, गड्ढे हैं वे दिखाई नहीं देते क्योंकि उनका कोई मोल नहीं है, और सारी बातें दो कौड़ी की हैं यदि हम अपने बीच की उस बहती हुई जीवन धारा को न देख सके, जिसके कारण ही आप भी जिंदा हैं और मैं भी। लेकिन वह है।और उसे देखने के लिए जो आंख चाहिए वह हमारे पास नहीं हैं शून्य को जो भरे हैं, रिक्त को जो पूर्ण किए हैं, वे जीवन के संगीत की जो धारा है उसे देख सकते हैं। जीवन का असली संगीत खंड - खंड, तुकड़ों में जीने में नहीं बल्कि उसकी पूर्ण समग्रता में जीने में है। और जिन्होंने भी इस सत्य को जान लिया है उन्हें अब और कुछ भी जानने की आवश्यकता नहीं रही है।

पं. रवि शाक्य
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

Tuesday, January 19, 2021

ईश्वर को तुम्हारा प्यार चाहिए ढोंग नहीं

वैसे तो यह केवल एक कहानी है। पर ये मानवीय व्यवहार पर सटीक बैठती है।
कहानी है कि भगवान ने जब सृष्टि बनाई तो सब कुछ बनाया। और अंत में आदमी बनाया। और आदमी को बनाने के बाद कुछ भी नहीं बनाया।‌ 
आदमी को बनाने के बाद भगवान ऩे उसका निरीक्षण किया। और पाया कि ये बहुत अद्भुत चीज़ बन गई। भगवान भी घबरा गया। और उसने देवताओं को बुलाया । देवताओं से पूछा कि ये जो आदमी मैंने बना दिया है यह बहुत ख़तरनाक है, ये एक दिन मुझे भी परेशान करेगा। ये सब चीजों की परिभाषा अपने स्वार्थ के अनुसार करेगा, ये मुझे भी बिगाड़ देगा। मेरे नाम से लोगों को डराएगा, और डर का धंधा करेगा।
तो मुझे ऐसी जगह बताओ कि मैं वहां छुप सकूं और इस आदमी को न मिलूं।
देवताओं ने विचार किया और सुझाव दिये। किसी ने कहा भगवान। आप हिमालय में जाकर छुप जाओ, भगवान ने कहा पागल हो ? 
ये जो आदमी मैंने बना दिया है यह इतना अद्भुत है कि हिमालय में तो बैठा ही मिलेगा। किसी ने कहा कि भगवान आप चांद तारों में छुप जाओ। भगवान गुस्सा हुए, बोले तुम समझे ही नहीं कि ये आदमी केसा है। ये देर सबेर वहां भी पहुंच जाएगा।
फिर काफी सोच-विचार हुआ।
एक देवता ने कहा भगवान क्या ऐसा हो सकता है कि आप इस आदमी के भीतर ही छुप जाओ।
भगवान को यह बात समझ आई, भगवान ने कहा कि ये ठीक है । 
ये और सब जगह मुझे ढूंढेगा, नहीं ढूढैगा तो सिर्फ अपने भीतर ।
और तबसे भगवान आदमी के भीतर छिपे हुए बैठे हैं।
और जेसाकि हम देखते हैं कि सब जगह भगवान को ढूंढ ढूंढ कर बताते हैं लोग, मथुरा में, काशी में, कैलाश में, राम, कृष्ण, गिरिराज, ओर अन्य अनेक नामों से।
मगर भगवान न वहां हैं, न उनके ये नाम हैं। वे तो आपमें हैं। आपका ही नाम। कुछ थोड़े से चालाक लोग आपकी बुद्धि पर राज करते हैं और आपको उनकी गुलामी की आदत हो गई। मगर भगवान इससे खुश नहीं हैं। अब भगवान् भी चाहते हैं कि तुम उसे ढूंढ लो। उन्हें तुम्हारा प्यार चाहिए, ढोंग नहीं।
 Ravi Shakya,
Music and spiritually mentor.

Tuesday, January 5, 2021

चलोगे तो बहुत पहुंचोगे कहीं भी नहीं

पहली तो बात,
 जिन्दगी के संबंध में जिन्होंने भी थोड़ा बहुत ज़ाना है वे यही जान सके हैं कि जीवन के लिए सभी दौड़ व्यर्थ ही साबित हुई हैं। लोग चलते बहुत हैं, पहुंचते कहीं भी नहीं। जी हां, में आपसे पूछ रहा हूं ? क्या आप कहीं पहुंच गए हैं ?
 और जो कुछ थोड़े से लोग पहुंचे हैं उन्होंने दौड़ को सिरे से नकार दिया है। पहुंचना कहां है ? मंजिल कहां है? लक्ष्य क्या है ?
आखिर आपने जिंदगी के सम्बंध में किया ही क्या है ? 
बहुत मकान बनाए, बहुत भोग किया, बहुत पैसा इकट्ठा किया, मगर आप जब मरे तब कुछ भी आप साथ नहीं ले जा सके, और ये आपने कई जन्मों में कई बार किया है । 
तो अभी आप क्या कर रहे हैं ? 
अभी भी आप वही दोहरा रहे हैं जोकि आपने हर जन्म में किया है, मगर, पाया कुछ नहीं.....
वास्तव में आपने जिन्दगी को जिया ही नहीं, बस दौड़ते रहे, और वही आज भी जारी है । क्या आप कहीं पहुंच गए ? यदि हां, तो आपको अब रुक जाना चाहिए और यदि नहीं तब भी आपको रुक जाना चाहिए, क्योंकि अब तक कहीं पहुंचे नहीं तो आगे भी पहुंचने की कोई संभावना नहीं है । मगर आपकी दौड़ जारी है।
तो में आपसे पूछ रहा हूं, क्या आप कहीं पहुंच गए हैं ?
नहीं । आप चले तो बहुत, मगर पहुंचे कहीं भी नहीं। वैसे बात यही खत्म हो सकती है, मगर और भी बहुत कुछ है अभी आपको जानने के लिए। 
जिंदगी स्वयं लक्ष्य है। जीवन से बड़ा भी कोई लक्ष्य हो सकता है ? जीवन लक्ष्य है। तो जियो आनंद से, विश्राम कर लो, क्या पता फिर मौका मिला न मिला। और जो लोग भी दौडे हैं वे सभी कहीं पहुंचे नहीं। 
सिकंदर ने कहा भारत को जीतकर जाएंगे तो यहां से एक साधु को भी साथ ले जाएंगे, सुना है भारत में पहुंचे हुए फकीर होते हैं। सिकंदर भारत के किनारे पर डेरा डाले था, और इधर एक नदी पर दार्जनिक नाम का फकीर धूप में रेत पर नंग-धड़ंग ही पड़ा रहता था।
पाइप का एक पोंगरा ही उसका घर था । उस पोंगरे को धकेलकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना भी आसान था।
तो सिकंदर ने सिपाहियों को आदेश दिया जाओ उस फकीर से कहो उसे हमने बुलाया है। सेनिक आए बोले, तुम ही दार्जनिक हो ?  तुम्हे सिकंदर महान ने बुलाया है। दारजनिक बोला जाओ सिकंदर से कह दो, जो अपने को महान कहता है उससे छोटा दुनियां में दूसरा आदमी नहीं है। 
और दार्जनिक ऊपरवाले के अलावा किसी और का आदेश नहीं मानता।
सिकंदर तक खबर पहुंची। ऐसा उत्तर उसे जिंदगी में पहली बार ही किसी ने दिया था। 
वह स्वयं पहुंचा और दार्जनिक से बोला, तुमने गुस्ताखी तो बड़ी की है, लेकिन में हैरान भी हूं इसलिए खुद आया हूं। तुम्हे मेरे साथ चलना होगा। दार्जनिक मुस्कराया। सिकंदर ने कहा तुम जानते हो मेरा आदेश नहीं मानने का सिर्फ एक ही परिणाम हो सकता है कि तुम्हारी गरदन धड़ से अलग हो जाए।
दार्जनिक हंसा। और बोला जिस गर्दन की तुम बात करते हो वो मेरी है ही नही। उसे तो बहुत पहले में खुद अलग कर चुका हूं। तुम उसे अलग नहीं कर पाओगे,फिर भी में तुमसे पूछता हूं कि मामला क्या है?  
ये फौजें, ये गोला बारूद रोज इधर से उधर भागमभाग ये क्यो करते हो ? और तुम्हें जाना कहां है ? पहुंचना कहां है ?
सिकंदर ने कहा पहले में माइनर एशिया को फतह करूंगा, दार्जनिक ने कहा उसके बाद ?
 उसके बाद दिल्ली का तख्त, उसके बाद? 
उसके बाद घर लौटूंगा और विश्राम करूंगा। दारजनिक हंसा। और बोला इतना सब करने के बाद विश्राम ही करना है तो आओ मेरे साथ लेट जाओ, विश्राम कर लो,
में विश्राम कर रहा हूं। इतना समय भी क्यों गंवाना। विश्राम कर लो। 
और फिर मेरे इस पौंगरे में इतनी भी कम जगह नहीं है, दो के लिए काफी है। आ जाओ विश्राम करो।
सिकंदर सकपकाया। और बोला बात तो तुम्हारी दमदार मालुम होती है, परंतु अब आधे में लौटना ठीक नहीं होगा। आधी दुनिया फतह कर ली है अब ऐसे लौटना भी ठीक नहीं होगा।
और दार्जनिक ने कहा इस दुनियां में कोई भी अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सका है । सबको आधे में ही लौट जाना होता है। और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम भी नहीं पहुंच पाओगे,आधे में ही लौट जाओगे।
और यही हुआ। सिकंदर जब भारत से वापस लौटा रास्ते में बीमार हो गया। और रास्ते में ही मर गया।
फिर यूनान में एक कहानी प्रसिद्ध हो गई। कहते हैं जिस दिन सिकंदर मरा, ठीक उसी दिन ५-१० मिनट बाद ही दार्जनिक भी मरा। अब सिकंदर ऊपर वैतरणी के पास चला जा रहा था, और उसके पीछे कुछ ही दूरी पर दार्जनिक भी आ रहा था। सिकंदर को कुछ पदचाप सुनाई दी तो उसने पीछे पलटकर देखा और घबरा गया, कि एक बार फिर उसी आदमी से सामना हो गया।
सिकंदर अपनी झेंप मिटाने के लिए मुस्कराया। तो दार्जनिक फिर हंसा,   
सिकंदर बोला, अच्छा लगा तुमसे मिलकर, कि एक सम्राट और फकीर का आज फिर से मिलन हुआ है। दार्जनिक और जोर से हंसा। सिकंदर ने कहा, तुम हंसते क्यों हो ?
दार्जनिक बोला - बात तो तुम ठीक कहते हो, लेकिन एक गलती कर रहे हो । यहां सम्राट कौन है और फकीर कौन। तुम सब खो कर लौटे हो और मैं सब पाकर‌। तुम विश्राम नहीं कर पाए, और मेंने विश्राम किया है। तुम्हारी ज़िन्दगी भर की दौड़ व्यर्थ हुई। तो यहां में सम्राट हूं और तुम फकीर।
तो सारांश यह है कि भागों मत, जिओ....... सबको आधे में ही लौट जाना होता है।
Professor, Ravi shakya
Music & spirituality mentor.