Saturday, October 31, 2020

जिंदगी भर की चाल नहीं बदल सकते

संगीत में स्थिर और नियमित आंदोलन वाली मधुर ध्वनि को नाद कहते हैं। जो कम्पन से उत्पन्न होता है। 
में आपको बताना चाहता हूं कि में यहां संगीत की जानकारी नहीं देने वाला हूं। वो तो कुछ और है, इसलिए पूरा अवश्य पढ़ें।
तो जब ये नाद उत्पन्न होता है तो ये अकेला नहीं होता। इसके साथ कुछ सहायक नाद भी उत्पन्न होते हैं, ये अच्छे भी होते हैं और बुरे भी। परंतु ये सहायक नाद ही उसे अन्य आवाजों से पृथक पहचान दिलाते हैं। जैसे हम सभी एक ही स्वर पर बोलें तब भी हम पहचान लेते हैं कि ये आवाज़ किसकी है। ये हमारे सहायक नाद की वजह से होता है।और जब इन्हें किसी क्रम से उत्पन्न किया जाता है तो एक मधुर धुन की रचना हो जाती है।
में आपको बताना चाहता हूं कि ये बात वस्तुओं पर ही नहीं, व्यक्तियों पर भी ठीक ठीक लागू होती है। जिस तरह किसी वाद्य यंत्र में इनको एक विशेष प्रकार से ट्यून किया गया है तो वह उसकी विशेषता भी है और पहचान भी। आप तुरंत कह सकते हैं कि यह गिटार, या तबला या और कोई वाद्य यंत्र है। और यह आप हैं, या मैं।
ठीक उसी प्रकार व्यक्तियों में भी,  या तो स्वयं के द्वारा स्वयं को, या दूसरों को, या दूसरों द्वारा खुद को कई वर्षों से ट्यून किया गया है।और आज कौन होगा जो दूसरों को अपने हिसाब से ट्यून नहीं करना चाहेगा। मगर प्रकृति ने जन्मजात सभी को विशेष रूप से ट्यून किया है। ये एक कमाल की ट्येयूनिग है जिसे विराट, परमात्मा ही कर सकता है। ये उनकी  विधियां, साधना, विचार, या आदतें  हो सकती हैं। और ये अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी। और इन्हें हम उनके गुण या दोष के रूप में भी देख सकते हैं, और जेसाकि दोष के रूप में देखते ही हैं। तो नाद अथवा गुण तो सबको समझ नहीं आता परंतु सहायक नाद यानी ध्वनियां सबको सुनाई पड़ जाती हैं, और व्यर्थ की ध्वनियां किसको सुनाई नहीं पड़ जाएंगी ?  जबकि आपके कानों की पूरी चेष्टा, पूरी बुद्धि और चेतना उसमें संलग्न हो ? 
मगर में मज़ा ये है कि आप जिसे बुरी ध्वनि समझते हैं और उसे मिटा देना चाहते हैं आपको शायद ख्याल ही न होगा कि उसी के साथ वह नाद भी बिगड़ जाएगा जिससे मधुर संगीत पैदा होता है।
आदमी का एक गुण भी, मात्र एक गुण नहीं है ।  उसके साथ ही उसकी अन्य क्षमताएं, असीमित संभावनाएं भी जुड़ीं हैं।
जैसे आप गुलाब के फूल को देखें, और चाहें कि इसमें कांटे बुरे हैं और आप उन्हें काटने लगें । आप उन्हें काट सकते हैं। आज तो लोग फूलों को भी मसल देते हैं। तो कांटों को कौन नहीं काट देना चाहेगा ?     मगर आप भूल रहे हैं कि गुलाब के पौधे का गुलाब होना केवल फूल का होना ही नहीं है, कांटे भी उसके अस्तित्व का हिस्सा हैं। 
आप जैसे ही एक कांटे को काटते हैं, पौधा भी कटता है। उसमें से कुछ कम होने लगता है। आप ये भी भूल रहे हैं कि कांटे आपको नापसंद हैं, मगर फूल को नहीं। फूल को उनकी जरूरत है वे उसकी सुरक्षा के लिए हैं। वे आपको भी नुकसान नहीं पहुंचाते जब तक कि आप उनके कार्य में बांधा न डालें। फिर भी आप उन्हें काटते हैं तो एक दूसरी बात यह भी है कि आप की संवेदनशीलता कुछ कम हो गई है। और आप स्वार्थी हो गए हैं।
तो जब आप किसी इन्सान के किसी एक गुण को मिटाने की कोशिश में लग जाते हैं, तो आप उसे धीरे धीरे काट रहे होते हैं । उसके कांटों को ही नहीं, फूल को भी, ध्वनि को ही नहीं, नाद को भी, स्वभाव को ही नहीं, जीवन को भी।
हमारा स्वभाव प्रकृति का सृजन है और उसके अनुसार कार्य करना हमारा चरित्र। ध्यान रहे ये वो चरित्र नहीं जो मानव निर्मित होता है।  वो तो दो कौड़ी का है, उसका कुछ मूल्य नहीं। ये तो पृकृति प्रदत्त चरित्र है। और जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार है। प्रकृति ने हमको विशेष प्रवृत्ति दी है वहीं असली चरित्र है।और उसमें हस्तक्षेप करना प्रकृति में बाधा उत्पन्न करना है ।जो कि बिलकुल भी ठीक नहीं है।
क्या में छोटी सी कहानी सुना सकता हूं ?
       विद्यासागर को गवर्नर के द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जाना था। विद्यासागर तो अपने ही ढंग से रहते थे। कुर्ता-पायजामा और हाथ में लाठी। 
उनके मित्रों ने कहा- बड़ा समारोह होगा, तो इस तरह जाना उचित नहीं।कुछ कपड़े खरीद लें,  उन्होंने मना भी किया, मगर मित्र नहीं माने। अतः सूट बूट खरीद लिए। शाम को विद्यासागर जी नदी किनारे टहलने गए थे। वहां एक मौलवी साहब को देखते हैं, जिनके चेहरे पर अपार शांति थी।और आहिस्ता आहिस्ता, सधी हुई चाल में चल रहे थे। एक आदमी दौड़ता हुआ आया और मौलवी साहब से कहा -  "आपके घर में आग लग गई"। वे वैसे ही चलते रहे, उस आदमी ने दोबारा कहा "आपने सुना कि नहीं, मेंने कहा घर में आग लगी है"। मौलवी ने कहा -"सुन लिया है"। और वैसे ही धीरे धीरे चलते थे। अब तो विद्यासागर जी से रहा न गया, वे उनके पास जाकर बोले- "आप भी अजीब हैं, उसने कहा आपके घर में आग लग गई है। और आप वेसे ही चल रहे हैं ?
मौलवी ने कहा, आग लग गई तो मैं क्या करूं ? लग गई तो लग गई। इसके लिए क्या जिंदगी भर की चाल बदल दें ? 
विद्यासागर ने घर पहुंच कर मित्रों से कहा ये कपड़े वापस करें। गवर्नर के लिए -"जिंदगी भर की चाल नहीं बदल सकते"।
Professor Ravi Shakya,
Music and spirituality mentor

Tuesday, October 27, 2020

जाति न पूछो साधु की।

पांडित्य कोई भी संबंध धर्म से नहीं ।
एक छोटी सी कहानी से अपनी बात को स्पष्ट करने की कोशिश करता हूं,
एक बूढ़ा गुरु था, छोटा सा उसका आश्रम था, एक दिन एक नया संन्यासी उसके आश्रम में आया, ओर ज्ञान प्राप्त करने के लिए रहने लगा, 
10-15 दिन बीत गए, तब उसे लगा कि उस बूढ़े गुरु के पास कुछ अधिक ज्ञान नहीं है, बहुत थोड़ी सी बातें हैं, उन्हें ही रोज दोहरा देता है, थोड़े से ही शिष्य हैं और थोड़ी सी ही बातें हैं, 
उसने विचार किया कि आज ही वो किसी दूसरे गुरु की तलाश में निकल जाएगा।
उसने विचार किया ही था ओर घटना घट गई, उसी समय एक दूसरा संन्यासी आ गया । 
और उस दूसरे संन्यासी ने बूढ़े गुरु के साथ रात भर ज्ञान की चर्चा की, खूब शास्त्रार्थ किया, और ये जो पहला संन्यासी था, बढ़े ध्यान से सुन रहा था, और मन में विचार किया कि बस मिल गया असली गुरु, कितना सुन्दर और विचित्र ज्ञान है इसका, कैसी अद्भुत ज्ञान की चर्चा की है इसने, बस सुबह ही इनके साथ चला जाऊंगा।
फिर उस ज्ञान की चर्चा करने वाले शिष्य ने अपनी बात बात खत्म करके बूढ़े गुरु से बोला, बूढ़ा गुरु अभी तक आंख बंद किए बस सुन ही रहा था । और उसने बूढ़े गुरु से बोला, तो महानुभाव मैंने आपसे जो कुछ ज्ञान की चर्चा की उस पर आपकी क्या राय है।
गुरु बोला, मेरे मित्र पहली बात तो यही कहनी है कि मैं दो घंटे से आंख बंद करके सुनता हूं लेकिन तुमने तो कुछ बोला ही नहीं।
तुमने क्या बोला ?
वह आदमी हैरान होकर बोला यह आप क्या कहते हैं? अरे दो घंटे से मैं ही तो बोल रहा था, भला मैं नहीं तो मेरे भीतर से  कौन बोल रहा था ?
गुरु ने फिर आंखें खोली और कहा, 
किताबें !
ये सब तो किताबें बोल रहीं थीं, शाश्त्र बोल रहे थे तुम नहीं।
और उस पहले शिष्य की आंखें खुल गईं।
इसके बाद उसने निश्चय किया कि वो आजीवन इसी आश्रम में रहेगा ।
ऐसा ज्ञान जो कहीं से आकर हमारे भीतर से बोलने लगता है, उसे छोड़ देना चाहिए। और तब जागेगा वो ज्ञान जो हमारे भीतर छुपा है।
     दो तरह का ज्ञान है, एक तो कुंए की भांति और दूसरा हौज की भांति।
एक तो वो जो यहां वहां से इकट्ठा किया हो, और दूसरा वो जो भीतर से अनुभव किया गया हो, जो शब्दों में कहा ना जा सके, जिसे किताबों बांधा न जा सके।
जैसे कि कोई पानी के लिए हौज बनाए और पानी को इकट्ठा करले ! जो कि पंडित, मौलवी, अच्छी तरह करते रहे हैं।
और जिसका जितना बड़ा हौज.....…. 
तो वह ईंट, पत्थर, आदि लाएगा, और दीवार बनाकर पानी को उसमें भर देता है, सब तरह का पानी।  वेद का,कुरान का, बाईबल का........भर दिया और ढक्कन लगाकर उसपर बैठे जाए, जो कि बैठे हुए ही हैं ।
और भले ही वह पानी कुछ दिन में सड़ जाएगा मगर हटना नहीं है, ढक्कन भी नहीं खोलना है।
वहीं दूसरा है कुंए का पानी,  उसके लिए ऊपर पढ़ें ईंट पत्थर को हटाकर भीतर से कोई स्त्रोत, कोई सोता निकालना होता है, ईंट पत्थर लाना नहीं है, दीवार भी नहीं बनाना है,
अपने मस्तिष्क पर पढ़ें ईंट पत्थर हटाना होता है ज्ञान का सोता निकालना होता है, हौज में पानी नहीं है, उसमें पानी लाकर डालना होता है, कुंए में पानी होता है, ज्ञान भी ऐसा ही है, पंडितों ने ईंट पत्थर इकट्ठा किए हैं दीवार बना दी है ! हिंदू होने की दीवार, मुसलमान होने की दीवार, कम्युनिस्ट होने की दीवार, और ना जाने कौन कौन सी.....और तरह तरह के ज्ञान लाकर भर दिए हैं,  पुराण के, कुरान के! अपनी अपनी हौज है, और हौज का झगड़ा। लेकिन मजे की बात ये है कि जितनी बड़ी हौज हो उतनी ही जल्दी सड़ जाती है।
ज्ञान का संबंध किसी धर्म और जाति से नहीं है। जाति ना पूछो साधु की, और पढ़ें सो पंडित होय, कबीर की इन बातों को हमें आज फिर से अंगीकार करने की जरूरत है ।
Professor Ravi Shakya
Music and sprituality mentor

Monday, October 26, 2020

आदमी की खोपड़ी कभी भरी नहीं है

एक राजा के दरबार पर एक फकीर आया, राजा ने कहा  मांगों जो चाहिए मिलेगा। राजा ही था कोई मामूली आदमी नहीं, और फिर आदमी अपने को मामूली समझता भी कहां है। फकीर ने कहा एक शर्त है उसे मानो तो ही भिक्षा लूंगा, राजा के सामने शर्त की कीमत ही क्या, उसने और घमंड से कहा बोलो, हमें हर शर्त मंज़ूर है, फकीर बोला, ये जो मेरा भिक्षापात्र है, इसे पूरा भर सको तो ही देना, अगर न भर सको तो अभी कह दो में चला जाता हूं, 
फिर तो राजा का घमंड ? उसने कहा इसके भिक्षा पात्र को हीरे-जवाहरात से भर दो, 
सुबह से शाम हो गई, राजा के दरवाज़े पर शहर के लोगों का मेला लग गया, और राजा के खजाने खाली हो गए मगर वह भिक्षापात्र खाली ही रहता, भरते भरते लोग बेहोश होकर गिर गए और वह खाली ही रहा, 
तब राजा आकर फकीर के पैरों में गिर गया, और बोला, महाराज मुझे क्षमा करें में भ्रम में था कि मेरे पास अपार धन है, और इस बेहोशी में ही मेरी जिंदगी गुज़र गई। मगर आप कृपा करके इतना बताएं कि ये राज़ क्या है? मेरे खजाने खाली हो गए, और ये भिक्षापात्र क्या है जो भरता नहीं ।
फकीर ने कहा, 
एक दिन आधीरात को एक शमशान से गुजरता था, और कुछ पड़ा हुआ दिखाई दिया, में ने उसे उठा लिया, सुबह जब देखा तो वह एक आदमी की खोपड़ी थी, मेंने उसे ही अपना भिक्षापात्र बना लिया ।
और मैं खुद हैरान हूं कि आज तक कोई इसे भर नहीं सका है, हजारों लोग हार गए, और मेरे अनेक शिष्य जो काफी सम्पन्न हैं, किसी किसी ने तो लड़ाइयां भी कीं
 कि वे इसे भरकर ही रहेंगे, मगर ये आदमी की खोपड़ी कभी भरी नहीं, और अब मैं जान गया हूं मैं, ये आदमी की खोपड़ी न कभी भरी है और न कभी भर सकेगी । आदमी की खोपड़ी कभी भरी नहीं है।

Wednesday, October 21, 2020

सदगुरु तो चाहिए ही

संदर्भ:-  हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना ही प्रसन्नता का मूल मंत्र है। एक भाई के विचार का जवाब।
अच्छा विचार है, परंतु,काश ! सभी लोग ऐसा कर सकते, और ये इतना आसान होता। क्योंकि परिस्थितियों में संतुलन कोई छोटी बात नहीं है, परिस्थितियां एक से बढ़कर एक भयावह हो जाती हैं जिनमें अच्छे अच्छे शूरवीरों के भी पैर उखड़ने लगते हैं। और जब भी ऐसा हुआ है तब किसी गुरु ने मार्गदर्शन किया है। उदाहरण के लिए आल्हा ऊदल को देखें, ऐसे अनेक मौके आए जब परिस्थितियां उनके बस में नहीं थीं, कोई रास्ता नहीं सूझता था, तब गुरु गोरखनाथ ने ही उनको रास्ता दिखाया था। तो ये एक बहुत बड़ी बात है, और  इसके लिए आध्यात्मिक अभ्यास, सत्संग और सदगुरु का मार्गदर्शन चाहिए। ये कोई ऐसा काम नहीं कि हमने पढ़ा, सुना और करने लग जाएं। पहले तो परिस्थितियां प्राकृतिक हैं या स्वयं निर्मित, दोनों के लिए संतुलन बनाने का सही तरीका अलग हो सकता है। और संतुलन का ठीक ठीक अर्थ भी पता हो। तो, ये इतनी सी बात नहीं है। मगर कहने सुनने के लिए अच्छी है। हो सकता है कोई ऐसा कर भी ले, या ये भी हो सकता है कोई चोरी और पूजा दौनो करे और समझे कि संतुलन बन रहा है, एक शराबी रात की जगह दिन में पीने लगे और कहे कि अब रात में नहीं पीता तो संतुलन बन गया। बहुत सी बातें हो जाएंगी। हम सब पढ़ें लिखे हैं, मगर सबका अपना अपना रास्ता है जिस पर चलने में हम ट्रेंड नहीं होते हैं कोई उस रास्ते का विशेषज्ञ भी होता है, हमें उसका मार्गदर्शन लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। चाहे वो कोई भी हो, मां बाप, भाई बहन, दोस्त या शिक्षक। वरना हमारा कार्य एक बुनियाद रहित मकान बनाने जैसा भी हो सकता है। इसी लिए गुरु तो चाहिए ही। क्योंकि फूल हम घर में भी सूंघ सकते हैं परन्तु वाटिका की बात ही कुछ और होती है। 
आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रो. रवि शाक्य।
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु

Saturday, October 17, 2020

तुम्हारे परमात्मा तुम हो

अगर धरती पर कुछ ठीक करने की जरूरत है तो वह है आदमी का दिमाग, बाकी सब तो बहुत सुंदर है, 
बाहर बहुत देख लिया, अब तक कुछ पाया नहीं, जबसे पैदा हुए हैं हम बाहर ही तो देखते रहे हैं, वस्तुएं दिखाई पड़ती हैं, उन्हीं का आकर्षण बना हुआ है, और ये आकर्षण भी मात्र आकर्षण नहीं, मोह है। और ये कभी छूटता नहीं, पिछली बार भी हम इस मोह के साथ ही मर गये थे, कई जन्मों से यही खेल चल रहा है, और हर बार कुछ साथ नहीं ले जा सके। क्योंकि हमने बाहर से कुछ पाया ही नहीं, और जिसे तुम समझते हो कि ये तुमने पाया है तो तुम भ्रम में हो। बहुत मकान बनाए, बहुत पद और धन पाया, ऐसा तुम्हें लगता है ऐसा है नहीं, क्योंकि तुम मृत्यु के पार एक सुई भी नहीं ले जा सकते। तो ऐसा क्या है जो तुम अपने साथ ले जाने में समर्थ हो, और वह कहां है ?
क्या कभी तुमने अपनी सांसों पर ध्यान दिया है ? तुम हंसोगे कि सांस पर भी कोई ध्यान देंना होता है, वह तो चलती ही है, अपने आप।
मगर तुम्हारी सांस का चलना इतनी छोटी बात नहीं है, क्योंकि आज रात जो सो गये हैं उनमें से हजारों कल नहीं उठेंगे, और उनकी सांस नहीं चल रही होगी। तो क्या अब भी आप कहेंगे कि सांस पर क्या ध्यान ?
थोड़ी देर एकांत में बैठकर अपनी आती जाती सांसों को महसूस करें, कुछ दिनों के अभ्यास से तुम्हें एक और मार्ग दिखाई देने लगेगा ।
भीतर कुछ है, पहले थोड़ा ऐसा ही लगेगा, और जैसे जैसे अभ्यास बढ़ेगा एक दिन तुम पाओगे कि भीतर ही सबकुछ है, बाहर सब बकवास, क्योंकि भीतर तुम हो,तो भीतर परमात्मा है, परम आनंद भी, और दूसरा कोई है ही नहीं, बस एक ही है । परम आत्मा, और उसे तुम व्यर्थ ही बाहर ढूंढ रहे थे। भीतर जीवन है, तुम एक जीवन हो, इतना ही पर्याप्त है परमात्मा का धन्यवाद करने के लिए । भीतर परम आनंद है, और कोई चाह बाकी नहीं रह गई। तुमने इस जीवन को भरपूर जिया, परम आनंद के साथ, और ये आनंद तुम अपने साथ मृत्यु के पार ले जाने में समर्थ हो। मेरा अपना विचार है कि मृत्यु के क्षण में,  में पूरे आनंद में रहूं, मेरी आंखों में एक विजेता सी चमक हो, अनंत यात्रा का एक उत्साह हो, मेंने जीवन में स्वयं को खुश रखा, और दूसरों को भी, एक ऐसे धन का भंडार मेंरे साथ हो।
हां ! ये सब में अपने साथ ले जा सकता हूं। 

प्रो. रवि शाक्य, 
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।

Thursday, September 17, 2020

क्या वाकई जमाना खराब आ गया

सवाल पाप और पुण्य का नहीं है, कर्म का है। हम कोई काम करते हैं तो वह एक साथ सभी के लिए अच्छा नहीं हो सकता, एक काम ही जब एक के लिए अच्छा होता है ठीक उसी समय दूसरे के लिए बुरा, और दूसरे के लिए बुरा न हो तो पहले के लिए अच्छा नहीं हो सकेगा। ऐसा भी नहीं है कि आज की पीढ़ी अधिक संस्कारित है और पहले के लोग सभी बुरे थे।और ऐसा भी नहीं कि पहले के सभी लोग अच्छे होते थे, हम अक्सर हम सुनते हैं कि जमाना खराब आ गया, तो जमाना कब अच्छा था ?
    या इसके उलट ये कहें कि अब लोग जागरूक हो गए तो मूर्ख कब थे ?
लोगो की मूल पृवृत्तियां आज भी वही हैं जो पांच हजार साल पहले थीं । हर ज़माने में लोग यही कहते रहे कि आज की पीढ़ी भली मालुम होती है, और वो पीढ़ी कोनसी थी ये कोई नहीं जानता, और हर ज़माने में ये कहा जाता रहा कि पहले के लोग बहुत अच्छे थे और वे कब थे ये भी कोई नहीं जानता। अगर पहले के लोग भले थे तो राम ने किसको सुधारने के लिए अपना जीवन कांटों भरा जिया, कृष्ण ने किसको समझाने के लिए गीता कही, और बुद्ध, महावीर की शिक्षाएं किसके लिए थीं ?
हर युग में महापुरुष किसको कहते रहे कि चोरी करना पाप है, हिंसा पाप है ? और किसको कहा कि परोपकार पुण्य है, सभी गृंथ, सभी किताबें तो यही बताती हैं कि लोगों को बहुत उपदेश दिए गए, और आज भी दिए जा रहे हैं, तो अच्छे लोग कब थे, और बुरे लोग भी कब थे ?
चीन की पांच हजार साल पुरानी किताब भी कहती है कि चोरी करना पाप है, मतलब उस समय लोग चोरी करते थे ?
तो ये भी कैसे माना जा सकता है कि आज के लोग अच्छे हैं, 
मोक्ष के मार्ग हैं, ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग ।
बच्चा ज्ञान योग में है, उसका पिता कर्म योग में, और उसकी मां, भक्ति योग में, और तीनों को पहुंचना एक ही जगह है, और वह है मोक्ष । मगर इस तरह से पहुंचने में उन तीनों को ही बहुत देर लगेगी, उसके विस्तार में जाना होगा तब स्पष्ट हो सकेगा ।
अगले पार्ट में।
धन्यवाद।🙏

Saturday, August 22, 2020

पश्चाताप व्यर्थ है

आप वाकई कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो पूरे वर्ष के लिए पश्चाताप ना करें, हां !  एक वर्ष बहुत बड़ा होता है, और वेसे भी आप एक वर्ष की बातें याद  नहीं रख सकते, आप एक वर्ष क्या एक महीने की भी सारी बातें याद नहीं रख पाते, क्योंकि प्रकृति ने हमारे दिमाग की व्यवस्था ही वैसी की है, आप एक दिन की भी बहुत जरूरी बातें याद रख पाते हैं, बाकी सब भुला दी जाती हैं, वे हमारे अवचेतन में कई जन्मों तक मोजूद रहती हैं, पर हमारी चेतना में कुछ खास बातें ही रहती हैं और अगर आदमी को एक दिन की भी सारी बातें याद रह जाएं तो वो पागल हो सकता है, बल्कि एक दिन की भी जो बातें आदमी को याद हैं वो उन्हें भी याद नहीं रखना चाहता, तभी तो वो रात में शराब आदि का सहारा लेता है।
तो आप सब याद नहीं रख सकते इसलिए सब बातों का पश्चाताप भी नहीं कर सकते। तो आप बस यही कर सकते हैं कि अभी आप जो भी कर रहे हैं सजग होकर करें, आपकी प्रत्येक क्रिया, व प्रतिक्रिया, पश्चाताप व भुला देने वाली नहीं बल्कि शानदार याद और आनंद से सराबोर होना चाहिए। आप इस क्षण के लिए सजग हो जाएं, आने वाले सारे क्षण शानदार होंगे। 
ये  व्यर्थ की बातें नहीं हैं, में संक्षेप में बता रहा हूं तो आपको ये वेसी लग सकती है, मगर जब से मैंने यह जाना है मुझे किसी भी बात के लिए कभी कोई पछतावा नहीं हुआं है, और आप मेरे सभी लेख पढ़ेंगे तो यह और भी स्पष्ट हो जाएगा ।
रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्मिक गुरु।
https://ravifilmspro.blogspot.com/

Monday, August 3, 2020

शराब एक असर अनेक

शराब एक और असर अनेक ? 
कोई शराब पीकर, सिर्फ झगड़ा करने लगता है, 
कोई, बहुत भावुक, कोई बहुत प्रेमी हो जाता है, कोई शराब पीकर लोगों को ढूंढने लगता है बात करने के लिए, कोई पीकर सीधा बिस्तर पर जाकर सो जाता है, कोई बहुत मददगार हो जाता है, कोई बहुत कामुक, और कोई बहुत सुंदर बांसुरी बजाने लगता है, कोई दूसरो की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा देता है, और कोई नाली में गिर जाता है।
तो कोनसा गुण है शराब का ?
सभी शराबी एक ही तरह का व्यवहार क्यो नही करते ?
जो पीने के बाद नाली में गिरता है, असल में वह भीतर से तो गिरा ही हुआ है, शराब तो उसे सहारा देने का काम करती है, और जो पीने के बाद जनकल्याण के लिए सोचता है वह भी उसके भीतर का ही गुण है जो कि है ही, ऐसा केसे हो सकता है कि एक शराब में इतने अलग अलग असर  हों। असल में आदमी वहीं करता है जो करने की इच्छा उसके भीतर ही मोजूद है। और तुम्हे वहीं दिखाई देता है जो तुम देखना चाहते हो।
मेंने ऐसे पीने वाले देखें हैं कि पीने के बाद जितनी, करुणा, दया और प्रेम उनमें दिखाई देता है,उतना ना पीने वालों में कभी नहीं देखा। में शराब का समर्थन नहीं करता, लेकिन में उन बातों को भी अनदेखा नहीं कर सकता जो कि हैं। साधारण लोगों की सोच और व्यवहार ऐसा ही होता है कि एक आदमी किसी को शराब पीते देखकर कहता है कि वह देखो, वो एक नंबर का शराबी है, परंतु क्या ऐसा भी कोई आदमी देखा है आपने जो बोले, कि देखा होगा तुमने, मेंने तो उसे बहुत सुंदर बांसुरी बजाते देखा है, और इतनी सुन्दर बांसुरी बजाने वाला पीता भी होगा ? तो भी मुझे क्या ? अनेकों के लिए तो शराब दवा भी है, और अनेकों के लिए ज़हर भी। तो निष्कर्ष निकलता है कि शराब में केवल नशा होता है, उसका असर उसपर केसा होगा वह शराब में नहीं आदमी में ही होता है, पहले से ही मोजूद है, पीने के बाद वह वहीं चीज अधिक करता है जिसको करने की उसकी हार्दिक इच्छा है, चाहे वह जो भी हो,,,
में समझता हूं आदमी को वस्तुओं के बारे में राय बनाने के बजाय आदमी के मनोविज्ञान का अध्ययन करना चाहिए।
Professor Ravi Shakya,
Music and sprituality mentor.
 प्रवक्ता- राष्ट्रीय जनवादी समिति।

Saturday, April 4, 2020

तुम्हे राम ही नहीं रावण से भी सीखना है

रामायण को किसी एक धर्म की धार्मिक पुस्तक समझना ठीक वैसा ही होगा जैसे कि विद्यालय में पढाएं जाने वाले इतिहास, समाज शास्त्र, नैतिक शिक्षा, विज्ञान, भूगोल, गणित, अर्थशास्त्र, और राजनीति शास्त्र के सारे ज्ञान को किताबी ज्ञान समझ कर सिर्फ परीक्षा पास कर लेना और भूल जाना ।
ऐसा सदैव होता है कि एक फिल्म को एकबार देखने के बाद फिर वह अच्छी नहीं लगती और दूसरी फिल्म देखने की इच्छा होती है, परन्तु ऐसा कभी कभी होता है कि हजार हजार बार देखी, पढ़ी और सुनी सुनाई कहानी को फिर फिर से देखने सुनने पर भी मन ना भरता हो और हर बार उसकी बातों पर आचरण करने का मन बहुत करता हो परंतु ऐसा कर पाने में मनुष्य अपने को हमेशा ही असमर्थ पाता हो।
साधारण लोग जब फिल्मे देखते हैं तो नायक का अनुसरण करने में असमर्थ होते हैं, वे समझते हैं कि ऐसे उच्च आदर्श सिर्फ कहानियों में हो सकते हैं, हकीकत में नहीं, परन्तु हर कहानी अपना प्रभाव मनुष्य पर छोडती जरूर है, खासकर किशोर एवं युवाओं पर।
तो आपने देखा होगा कि अधिकांश युवा फिल्म के खलनायक का अनुसरण करते हैं, ऐसा कर पाना आसान भी है, और उन्हें लोगों के सामने कुछ विशिष्ट बनाता है, तो ये हो रहा है ।
परन्तु क्या कारण है कि वे ही लोग रामायण के खलनायक रावण का अनुसरण करने में भी अपने को असमर्थ पाते हैं, क्या है ऐसा इस कथा के पात्रों में ?
वो नायक "राम" कैसा होगा जिसका शत्रु, खलनायक रावण ब्रम्हज्ञानी, चक्रवर्ती सम्राट, वीरों का वीर, कुशल राजनीतिज्ञ, नैतिकता से भरपूर, अजेय, अजित और शिव का महाभक्त हो ।
कोई कर सकता है उसका भी अनुसरण जो सिर्फ भगवान के द्वारा ही मारा जा सका।
तो मैं ये बताना चाहता हूं कि वो राम कैसे होंगे जिनको रावण ने भी अपनी मृत्यु के लिए चुना, रावण उतना ही आदरणीय है जितने राम, उसने सीता का हरण तो किया परन्तु अपनी सबसे सुंदर अशोक वाटिका में अच्छी तरह सुरक्षा में एक वीर की तरह युद्ध से जीतने के लिए राम की धरोहर के रूप में रखा।
आजकल तो लोग मौका पाते ही बलात्कर कर देते हैं, उन्हें रावण से सीखने की जरूरत है, और इसीलिए रामायण देखने की जरूरत है ।
राम और उनसे संबंधित जितने भी पात्र रामायण में हैं उन सभी ने अपने अपने कार्यो द्वारा महान आदर्श स्थापित किए हैं, लेख बहुत लंबा होगा, इसलिए मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता, परन्तु फिर भी यह जरूर कहता हूं कि राम तो अवर्णीनीय हैं ही, वरन् दशरथ, कैकेई,लक्ष्मण, भरत, हनुमान, जामवंत, विभीषण और रावण एक एक की व्याख्या करने का अवसर मिले तो एक एक और इतनी ही रामायण अलग से लिखी जा सकती हैं, ये आश्चर्य और अनुभव की पराकाष्ठा ही है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन सबकी बातों को इतनी सुन्दरता से एक काव्य संग्रह में बांध दिया ।धन्य हैं वे।
परन्तु आज दुर्भाग्य से कुछ लोग जो आधुनिकीकरण में जी रहे हैं वे न सिर्फ खुद रामायण को उपहास की वस्तु, काल्पनिक कहानी समझते हैं बल्कि अपने बच्चों को भी इससे अछूता रख रहे हैं, मुझे उन लोगों पर तरस आता है कि वे अपने लिए उस दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जो भारत की संस्कृति में कभी रही ही नहीं ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्म गुरु।

Wednesday, March 25, 2020

भारतीय संस्कृति के पीछे गहरा विज्ञान है

[24/03, 12:18 pm] ravifilmspro@gmail.com: आजकल सोशल मीडिया पर मंदिर,वो भगवानों पर बहुत से मजाक चल रहे हैं इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह आर्टिकल।
[24/03, 12:19 pm] ravifilmspro@gmail.com: ये सही है कि भगवान मंदिरों में नहीं है, मूर्तियों में नहीं है, ना मस्जिद में ना चर्च में है, और साधारण लोग जिस रूप में भगवान को मानते हैं या मनवाया गया है वैसा भी कुछ नहीं है । मगर उसका अस्तित्व है । और वह इन्सानों के भीतर ही है, अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे कहां देखते हैं, कहां ढूंढते हैं ।
मगर कर्मकांड के पाखंडियों ने लोगों के दिलो-दिमाग में भगवान के डर को ठूंस ठूंस कर भर दिया है और सारी नैतिकता को भगवान नाम के शब्द से जोड़ दिया है, जबकि भगवान एक शब्द है, मनुष्य की चेतना के सर्वोच्च शिखर का, भगवान एक शब्द है मनुष्य की सर्वशक्तिमान सकारात्मक ऊर्जा का, भगवान एक शब्द है,  भौतिक शरीर के बजाय आंतरिक और आत्मिक चिंतन का, भगवान एक नाम है योग में समाधी का, जिसे परब्रह्म कहा जाता है।
ये और बात है कि सभी लोग भगवान को इस तरीके से जानने में समर्थ नहीं होते हैं, और वे लोग भी जिन्हें महात्मा कहा गया ।

तो फिर साधारण इंसान को कोई सहारा चाहिए जिससे वह अप्रत्यक्ष रूप से अपने मन को एकाग्र कर सके, और और अपने भीतर सकारात्मकता का निर्माण कर सके, इसके लिए अगर आपके पास कोई दूसरी विधि नहीं है तो तब तक यही उचित है कि आप भगवान के नाम पर किसी मूर्ति के सामने नतमस्तक हो सकें, झुक सकें । नहीं तो दुनिया में और कोई है ऐसा जिसके सामने आदमी झुक जाना मंजूर करें, वो भी आदमी ?

आदमी भगवान के अलावा किसी और के सामने झुकने को ना कभी राजी हुआ है ना हो सकेगा ।

यद्यपि हमारी सारी धार्मिक किताबें पंडितों की जागीर रही हैं, फिर भी मनुष्य की नैतिकता में उन किताबों का बढ़ा योगदान है, भगवान के डर से ही सही, वरना विद्यालय का नैतिक शास्त्र किसी को भी याद नहीं रहता ।
भारत की संस्कृति क्या है ? वे मान्यताएं ही हैं जो हम मानते हैं, वे क्रियाएं हैं जो हम करते हैं, वे अभिव्यक्तियां हैं जो हम व्यक्त करते हैं, वे धारणाएं हैं जिन्हें हम धारण करते हैं, और जो धारण किया जाए वह धर्म है ।
तो क्या आप अभी कुछ धारण करते हैं ? आप कहेंगे नहीं क्योंकि में तो धर्म को मानता ही नहीं ।
लेकिन आप अभी बहुत सी गलत चीजें धारण करने लगे हैं, जो हमारे धर्म का हिस्सा नहीं थीं।
जैसे कि हाथ जोड़कर नमस्कार करने की जगह  हाथ मिलाना, हग करना । और फिर बात यहीं नहीं रुकेगी.....
तो हम वो नहीं कर रहे जो हमारा धर्म है । तो धर्म की हानी हो रही है, और पांच हजार साल पहले श्री कृष्ण ने कहा था, "जब जब धर्म की हानि होती है तब तब पापियों का नाश करने ओर धर्म की स्थापना के लिए में  आता हूं।
तो कृष्ण का कोरोना अवतार है । इसलिए वे पाखंडी भी भयभीत है जो भगवान का धंधा करते रहे हैं । भगवान किसी को क्यो बचाएं ?
कोनसा महान कार्य किया है किसी ने खासकर धार्मिकों ने, कर्मकांड के पाखंडियों ने, बल्कि उन्हें ही तो सजा देने का ये उपाय किया गया है। 
भारत की संस्कृति, मूल्यों, व मान्यताओं के पीछे गहरा विज्ञान है, जिसने अंग्रेज़ो को भी हाथ जुड़वाकर आज ये साबित कर दिखाया है ।
शायद यही आखिरी संदेश है प्रकृति का दुनिया के लिए कि सुधर जाओ,  अगली बार आदमी से आदमी में नहीं, हवा में फैलने वाला वायरस भी आ सकता है ।
रवि शाक्य
संगीत एवं आध्यात्म गुरु।

Saturday, January 18, 2020

पथराव व नारेबाजी का खेल

इस पीढ़ी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आज हम सारी सुविधाओं के साथ जी रहे हैं, ख़ास तौर पर ये बात युवाओं को पता होना चाहिए।
अगर हम एक पीढ़ी पहले देखें, तो आपके पास गूगल, स्मार्टफोन आदि कुछ भी नहीं थे। तो क्या युवा बेरोजगार थे !
बिल्कुल नहीं, उनके पास बहुत काम होता था। खेती का, घर के काम आदि । उनका बचपन  मेहनत के साथ गुजारता था, जो उन्हें व्यस्त तो रखता ही था बल्कि मेहनती और आत्मनिर्भर भी बनाता था । मगर आज तो बच्चे घर का काम करें, तो पिछड़ा पन समझा जाता है, ओर पूर्ण एशो-आराम दैना स्टेटस सिंबल बन गया है। दुर्भाग्य से आज के मां बाप अपने बच्चों को ऐसा जीवन देना चाह रहे हैं कि उन्हें कुछ भी नहीं करना पड़े, वे उनके लिए सारी सुविधाएं जुटाकर मरना चाहते हैं।
आपके मां बाप ने आपके लिए क्या ऐसा ही किया था ? अगर नहीं तो क्या आप कुछ नहीं कर पाए ? नहीं, आप इतना कैसे कर पाए कि अपने बच्चों की जिंदगी सुरक्षित करने में लगे हैं, आपको तो बस रोजी-रोटी के लिए संघर्ष ही करना चाहिए था ।
तो क्या आप सोचते हैं कि आपके बच्चे बिल्कुल नकारा हैं, वे खुद कुछ नहीं कर पाएंगे ?
युवावस्था में जब ऊर्जा अपने चरम पर होती है और उर्जा बाहर फूट पड़ना चाहती हो और हम उन्हें मोबाइल रुपी झुनझुना थमा देते हैं, तो वे क्या करेंगे ? कोई यूनिवर्सिटी में बजाएगा, कोई शाहीन बाग में, फिर उससे भी संतुष्ट नहीं होगा तो पत्थर उठाएगा, सवाल ये नहीं है कि किस पर फेंकना है, बस ऊर्जा को बाहर निकालना है । और कोई रास्ता भी तो नहीं है,
आपको शायद याद हो जब हम छोटे थे तो नदी किनारे पर पूरी ताक़त से पत्थर फेंक कर प्रतियोगिता करते थे । वे हमारे खेल हुआ करते  थे । आज के युवाओं को वह मोका नहीं मिला, तो वे अभी वही खेल खेल रहे हैं। पहले निशाना नदी पहाड़ और पेड़ होते थे, आज निशाना इन्सान हैं। कुछ काम भी तो नहीं है ।
बैठे बैठे क्या करें करना है कुछ काम,
शुरू करो पथराव ही, लैकर धर्म का नाम ।
क्योंकि अंताक्षरी तो पुरानी पीढ़ी की है, उसमें आधुनिकता कम पिछड़ा पन ज्यादा लगता है। और फिर चिंता भी कुछ नहीं, बैठे बिठाए खाने को मिलता हो तो कोई बेवकूफ ही होगा जो काम के बारे में सोचेगा, और एक दिन काम पर ना जाने से कल की रोटी की चिंता सताती हो, तो भी कोई बेवकूफ ही होगा जिसको नारेबाजी करने में मजा आएगा।
तो फिर कौन हैं वे लोग जो महीने भर काम पर जाने के बजाय एक जगह बैठे हैं ? कहां से आती है रोटी ? कौन भेजता है इनको, देस की चिंता क्या सिर्फ साधन-संपन्न लोगों को ही होती है ?
गरीब सिर्फ बोट देने जा सकता है, हां, वो जा सकता है, क्योंकि उस दिन छुट्टी होती है ।
आज भी जिन घरों के बच्चे बचपन से घर का राशन लाना, नल से पानी भरना, मां बाप के काम में मदद करना, जैसे काम करते रहे हैं उनकी ऊर्जा का सही उपयोग हो चुका है, और वो ऐसी जगहों पर कभी दिखाई नहीं दैगे ।

पं. रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्म गुरु

Friday, January 17, 2020

The kings blindness,

All the wars that have taken place in the world, all due to a blind king like Dhritarashtra of Mahabharata. In three thousand years, about five thousand wars are found in history, that is more than one war took place every day, and in the days which did not take place, it must have been prepared for wars.
If Mahatma Gandhi had not been the Raashtrapita of the country but the President or Prime Minister, then the basic problems of today would have been some different or less, the geography of India would have been different.  Because, he had right looking eyes, but then he might not have been a Mahatma, all Mahatmas have fine eyes, but Mahatma would not have been king, Gandhi must have been forced into the hands of blind Dhritarashtra like Bhishma Pitamah.  I think if someone is a humanist, then he should think only about the good of man, family and society, and if he wants power, he should do politics,and think politics. A humanist should not think about politics, and a politician should not think about socialism,
Otherwise, society enters politics and politics in society, and then conflict is inevitable.
All the wars in the world are the result of the ambition of a blind king.  It is not only about the country but also of the individuals, when power in the family also changes in ambition then conflict and exploitation only results.

Ravi Shakya,
Real Music and Spirituality mentor.

Wednesday, January 15, 2020

असली आनंद

कभी कभी बेवकूफ भी हो जाना चाहिए, बेवकूफ के पास कोई ईगो नहीं होता, और जहां ईगो नहीं होता वहां सिर्फ आनंद और शांति होती है। बाहरी ज्ञान सूचनाएं मात्र हैं, उनका ज्ञान से कोई संबंध नहीं है, उनसे आपके अहंकार की तृप्ति होती है, भीतर का आनंद ज्ञानी होने में नहीं, अहंकार त्यागने और भीतर की खोज में है, और खोज की इच्छा भी न हो, कुछ भी पाने की इच्छा भी ख़त्म हो जाए, खोज ही आनंद बन जाए, फिर कुछ शेष न रह जाए पाने को, अपना भी पता न हो, बस आनंद है और कुछ नहीं।इसी अवस्था को समाधि कहते हैं।
Professor Ravi Shakya,
Music and sprituality mentor

सारी दुनिया आपकी है

जब हम पैदा हुए थे तब भागते नहीं थे, कोई दौड़, कोई आकांक्षा, कोई लालच, कोई महत्त्वाकांक्षा, कोई माया जाल नहीं था,
फिर भी हमारे शरीर में रोज बदलाव होते थे, ठीक वैसे ही जैसे पेड़ पौधे में होते हैं, यही प्रकृति का नियम है, इसे सहज स्वीकार करना होगा । आप इस क्षण भी वही नहीं हैं जो एक क्षण पहले थे, हर क्षण बदलते हैं, दुनिया की सभी भौतिक चीजों हर क्षण बदलती है, ये प्राकृतिक  है, इसलिए सस्वीकार्य होना चाहिए, 
अच्छा ही होता सबकुछ,  अगर  जीवन में हम  प्राकृतिक होते ।
मगर....
हम पैदा होने के ठीक बाद से ही सूचना और जानकारियों से भरने लगे, यही बाधा हो गई नैसर्गिक जीवन में,
ये सूचनाएं सब बाहरी हैं, भीतर का कोई सम्बन्ध नहीं है इनसे, में कहता हूं आप एक बार अपने आंतरिक जगत में यात्रा करने में समर्थ हो जाएं, और आप पाएंगे कि कुछ भी बदला नहीं है, सब कुछ ठीक है, कोई आपसे दूर नहीं, सारी दुनियां आपकी है, सारा ब्रह्माण्ड अपना मुखौटा उतार कर आपके सामने प्रस्तुत हो जाएगा ।
Ravi Shakya,
Music and sprituality mentor.

प्रर्याप्त बहाने हो सकते हैं ।

दुनिया का कोई भी व्यक्ति आज जो भी है, चाहे जो भी हो, में,आप या कोई और,  हम उसके बारे में उसकी वर्तमान स्थिति के आधार पर ही राय कायम कर लेते हैं इतना ही देख पाते हैं कि वो अभी क्या है, ये कोई नहीं देखता कि उसका ये आज, कहां से शुरू हुआ था,  जिसका शायद सही मेहनताना उसे आज भी नहीं मिल रहा। मगर हम बड़े बेसब्रे लोग हैं, हम जानना नहीं चाहते बल्कि तुरंत ही अपना मत व्यक्त कर देते हैं। 

हमें नहीं पता कि उसने कितने साज मिलाए, और कितने गीत गाए, 
और आज वो जो है वो कोई महीने, साल, दो साल का परिणाम नहीं है, उसकी पूरी जिंदगी ही लगी है उसमें। आप ये कह सकते हैं कि सभी लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है हमने भी बहुत किया है।

माफ़ कीजिए !!! मगर ये पूरी तरह सच नहीं है। आप ये कभी जान ही नहीं पाएंगे कि आपकी मजबूरियां उतनी बड़ी कभी नहीं रही हैं जितनी उस आदमी की रही होंगी जिसके बारे में आप आज किसी नतीजे पर पहुंचने जा रहे हैं।

में चाहूंगा कि आप इतनी जल्दबाजी न करें । 

उफ्फ!.......

क्या आप भी उस स्कूल में पढ़े हैं, जो गांव में एक कमरे, और एक चबूतरे का होता है यदि हां, तो आपके पास अंग्रेजी नहीं बोल पाने का अच्छा बहाना हो सकता है। 

मगर एक दूसरा बच्चा भी उसी जगह पढ़ता है, इतना ही नहीं, उस चबूतरे को, उसे दूर से गोबर और नदी से पानी लाकर लीपना और पोतना भी पढ़ता है । हां, पहले ऐसा ही होता था,! तो''' वह बच्चा अभी अंग्रेजी स्कूलो में पढाता है । कैसे ???  

वही बच्चा महज १७ साल की उम्र में 4 राज्यो के राज्यपालों द्वारा संगीत निर्देशन के लिए सम्मानित होता है। १८ साल की उम्र में मुख्यमंत्री से भी सम्मानित होता है।  

१२ साल की छोटी उम्र में क्योकि वह हारमोनियम नहीं खरीद सकता है, वह झोपड़ी में रहता है। उसके माता-पिता पढ़ें लिखे नहीं है, वह एक डॉक्टर के क्लीनिक में काम करके 150 रुपए महीने कमाता है, जिससे वह 70 रुपए महीने में संगीत की ट्यूशन लेकर संगीत सीखता है । क्योंकि वह हारमोनियम नहीं खरीद सकता है, तो वह दिमाग लगाता है और एक वाद्य यंत्र "बेन्जो" खुद बना लेता है, 

आपको आश्चर्य होगा मगर ये सच है! और ना जाने कहां कहां से कैसे कैसे संगीत सीखता है, अगर कोई बड़ा गुरु उसे नहीं सिखाता है तो वह उसके घर के बाहर खड़े रहकर सुनता है। 

नहीं , आप इतना नहीं कर सकते। बल्कि आप इनमें से बहुत सारी चीज़ें नहीं कर सकते।

क्या उसके पास नहीं सीख पाने के लिए प्रर्याप्त बहाने नहीं थे ? 

कह सकता था वो सारी बातें जो आज हर कोई कहता है, वो सारे बहाने जो हर कोई बनाता है ? 

ये कोई कहानी नहीं किसी के जीवन की गंभीर सच्चाई है।

तो आज की बात करते हैं,  आज क्या हो सकता है उसकी कला का मूल्य ?
क्या कोई दे सकता है उसका मूल्य ?
और कला का क्या कोई मूल्य हो भी सकता है,
नहीं,

कोई उसका मूल्य कभी नहीं दे सकता, इतनी किसी की सामर्थ्य नहीं है, आप सिर्फ गुरु दक्षिणा ही दे सकते हैं, मूल्य नहीं । और मुझे अफसोस है कि आज ये कहानी कुछ लोगों को झूठ लग सकती है।

बाहरहाल ! 

 आपके पास पर्याप्त बहाने हो सकते हैं। क्योकि आपको सिर्फ शौक है, दीवानगी नहीं। 

ध्यान रहे दीवानगी और शौक में उतना ही अंतर है जितना कि एक शानदार जीत और पूर्ण पराजय में।

 क्योंकि शौक को छोड़ा भी जा सकता है, मगर दीवानगी जीवन का गौरव पूर्ण अंत है। वह एक युद्ध में उतरे योद्धा की तरह ही है जो जीते जी लक्ष्य को पीठ नहीं दिखाता । योद्धा या तो जीतता है या मृत्यु का वरण करता है। 

तो, वह बच्चा संगीत का दीवाना था।

और उस बच्चे का नाम है .....

रवि शाक्य !  

हां,  वो मैं ही हूं !

Professor Ravi Shakya

(Real music & spirituality mentor)

कुछ खास बातें

[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: जीवन में 2 चीजें एक साथ नहीं चल सकती हैं। आपका फोकस तय होना चाहिए। अगर आप बिजनेस कर रहे हैं तो सिर्फ बिजनेस करें। मेडिटेशन कर रहे हैं तो मेडिटेशन। नहीं तो बिजनेस में मेडिटेशन आ जाएगा और मेडिटेशन मे बिजनेस। आप पर लोग हंसेंगे।   
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: अनुशासन और कंट्रोल जरूरी  बिजनेस में असफलता के चलते आपको आया हार्ट अटैक यह बताया है कि आपका अनुशासन और कंट्रोल दोनों ठीक नहीं है। भला कैसे हो सकता है कि घाटा बिजनेस में हो रहा है और असर शरीर पर पड़ रहा है। दरअसल बीमारी असफलता छिपाने के बहाने से जयादा
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: सवाल यह नहीं है कि आप कितना सीखते हैं। वड़ा सवाल यह है कि आप कितना भूलते हैं। कुछ नया करने के लिए पुराने को भुलाना बेहद जरूरी है। 
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: किसी से किसी तरह की प्रतिस्‍पर्धा करने की जरूरत नहीं है। आप जैसे हैं खुद में पूरे हैं। खुद को स्‍वीकार करिए। मतलब आप यूनीक होंगे, तभी आपकी पूछ होगी।  
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: आप दुखी हैं तो अपनी वजह से, आप सुखी हैं तो भी अपनी वजह से। आपकी सफलता और असफलता को कोई उत्‍तरदायी नहीं है। अपनी अपना स्‍वर्ग हैं और आप ही अपना नर्क हैं ।
Professor Ravi Shakya music and sprituality mentor

आप वही सुनते हैं जो आप सुनना चाहते हैं


मैंने सुना है:
दो आदमी भीड़-भाड़ वाले बाजार में फुटपाथ पर साथ-साथ चल रहे थे। अचानक एक ने कहा, "सुनो झींगुर की मधुर आवाज" लेकिन दूसरे ने नहीं सुना। उसने अपने साथी से पूछा इतने लोग और ट्रेफिक के बीच उसे झींगुर की आवाज का कैसे पता चला। पहले व्यक्ति ने खुद को प्रकृति की आवाजें सुनने में प्रशिक्षित किया था, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।

इसके बजाय उसने अपने जेब से एक सिक्का निकाला और फुटपाथ पर गिरा दिया। अचानक एक दर्जन से अधिक लोग सिक्के  को टकटकी लगा कर देख रहे थे।

"हमें वही सुनाई पड़ता है", वह बोला, "जो हम सुनना चाहते हैं"।

यहां ऐसे लोग हैं जो जमीन पर गिरे सिक्के की आवाज ही सुन सकते हैं--यही उनका एक मात्र संगीत है। बेचारे लोग, वे सोचते हैं कि वे धनी हैं, लेकिन वे गरीब लोग हैं, जिनका सारा संगीत सिक्के के जमीन पर गिरने की आवाज मात्र है। बहुत गरीब लोग...भूखे। उन्हें नहीं पता कि जीवन में कितना कुछ होता है। उन्हें अनंत संभावनाओं के बारे में कुछ पता नहीं, उन्हें नहीं पता कि वे अनंत धुनों से घिरे हुए हैं--बहु आयामी समृद्धियां। तुम वही सुनते हो जो सुनना चाहते हो।

जिस तरफ जाइए, है खोखले लफ़्ज़ों का हुजूम ।

कौन समझे यहां, आवाज की गहराई को ।।

Prof. Ravi shakya

Real music and sprichuality mentor.

Wednesday, January 1, 2020

नया वर्ष या आप ?

बीते हुए कल को भुलाना मुश्किल है, परन्तु कल की याद में आज को जीना, न केवल वर्तमान की हत्या कर देने जैसा है, बल्कि जीवन की हत्या कर देने जैसा है। ये ऐसा ही है जैसे कि जीवन को उसकी समग्रता में जीने के बजाय खंड खंड, तुकडों में जीना, फिर भी अगर कल को यादगार बनाना है तो आप उन चीजों को याद कर सकते हैं जिन्हे आप गलतियां मानते हैं और जो कि सुधारी जा सकती हैं, कुछ चीजें, जैसे आपने अपने साथ क्या किया ? हां...अपने ही साथ, दूसरे की बात महत्वहीन है। दूसरों के साथ कुछ होता ही नहीं, आप जो भी करते हैं उसका परिणाम आपको ही मिलता है। 

इस लिए में कहता हूं कि आप जो कुछ भी अपने साथ करते हैं।

यदि आप अपने साथ आनंद पूर्ण और न्यायपूर्ण रहते हैं तो बाकि सब अपने आप ही ठीक होगा। और निश्चित ही आपने कुछ चीजें बहुत शानदार की होंगी, आप उनको याद रख सकते हैं इससे आपको ऊर्जा व प्रेरणा मिलती रहेगी। 
तो,  इस नए साल में आप यह कर सकते हैं, कि वर्तमान को आनंद पूर्ण बनाएं, अपने साथ न्याय करें, भविष्य को ईश्वर पर छोड़ दें, आपका हर दिन एक नया साल जैसा होगा, और मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है कि ऐसा ही हो ।
और भी कुछ बातें हैं उनके विस्तार में जाना होगा...
तो इसी शुभकामना के साथ आप सभी के भीतर विराजमान परमात्मा को प्रणाम करता हूं। नमो बुद्धाय 
Ravi Shakya
Music and sprituality mentor