Saturday, October 31, 2020
जिंदगी भर की चाल नहीं बदल सकते
Tuesday, October 27, 2020
जाति न पूछो साधु की।
Monday, October 26, 2020
आदमी की खोपड़ी कभी भरी नहीं है
Wednesday, October 21, 2020
सदगुरु तो चाहिए ही
Saturday, October 17, 2020
तुम्हारे परमात्मा तुम हो
Thursday, September 17, 2020
क्या वाकई जमाना खराब आ गया
Saturday, August 22, 2020
पश्चाताप व्यर्थ है
Monday, August 3, 2020
शराब एक असर अनेक
Saturday, April 4, 2020
तुम्हे राम ही नहीं रावण से भी सीखना है
रामायण को किसी एक धर्म की धार्मिक पुस्तक समझना ठीक वैसा ही होगा जैसे कि विद्यालय में पढाएं जाने वाले इतिहास, समाज शास्त्र, नैतिक शिक्षा, विज्ञान, भूगोल, गणित, अर्थशास्त्र, और राजनीति शास्त्र के सारे ज्ञान को किताबी ज्ञान समझ कर सिर्फ परीक्षा पास कर लेना और भूल जाना ।
ऐसा सदैव होता है कि एक फिल्म को एकबार देखने के बाद फिर वह अच्छी नहीं लगती और दूसरी फिल्म देखने की इच्छा होती है, परन्तु ऐसा कभी कभी होता है कि हजार हजार बार देखी, पढ़ी और सुनी सुनाई कहानी को फिर फिर से देखने सुनने पर भी मन ना भरता हो और हर बार उसकी बातों पर आचरण करने का मन बहुत करता हो परंतु ऐसा कर पाने में मनुष्य अपने को हमेशा ही असमर्थ पाता हो।
साधारण लोग जब फिल्मे देखते हैं तो नायक का अनुसरण करने में असमर्थ होते हैं, वे समझते हैं कि ऐसे उच्च आदर्श सिर्फ कहानियों में हो सकते हैं, हकीकत में नहीं, परन्तु हर कहानी अपना प्रभाव मनुष्य पर छोडती जरूर है, खासकर किशोर एवं युवाओं पर।
तो आपने देखा होगा कि अधिकांश युवा फिल्म के खलनायक का अनुसरण करते हैं, ऐसा कर पाना आसान भी है, और उन्हें लोगों के सामने कुछ विशिष्ट बनाता है, तो ये हो रहा है ।
परन्तु क्या कारण है कि वे ही लोग रामायण के खलनायक रावण का अनुसरण करने में भी अपने को असमर्थ पाते हैं, क्या है ऐसा इस कथा के पात्रों में ?
वो नायक "राम" कैसा होगा जिसका शत्रु, खलनायक रावण ब्रम्हज्ञानी, चक्रवर्ती सम्राट, वीरों का वीर, कुशल राजनीतिज्ञ, नैतिकता से भरपूर, अजेय, अजित और शिव का महाभक्त हो ।
कोई कर सकता है उसका भी अनुसरण जो सिर्फ भगवान के द्वारा ही मारा जा सका।
तो मैं ये बताना चाहता हूं कि वो राम कैसे होंगे जिनको रावण ने भी अपनी मृत्यु के लिए चुना, रावण उतना ही आदरणीय है जितने राम, उसने सीता का हरण तो किया परन्तु अपनी सबसे सुंदर अशोक वाटिका में अच्छी तरह सुरक्षा में एक वीर की तरह युद्ध से जीतने के लिए राम की धरोहर के रूप में रखा।
आजकल तो लोग मौका पाते ही बलात्कर कर देते हैं, उन्हें रावण से सीखने की जरूरत है, और इसीलिए रामायण देखने की जरूरत है ।
राम और उनसे संबंधित जितने भी पात्र रामायण में हैं उन सभी ने अपने अपने कार्यो द्वारा महान आदर्श स्थापित किए हैं, लेख बहुत लंबा होगा, इसलिए मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता, परन्तु फिर भी यह जरूर कहता हूं कि राम तो अवर्णीनीय हैं ही, वरन् दशरथ, कैकेई,लक्ष्मण, भरत, हनुमान, जामवंत, विभीषण और रावण एक एक की व्याख्या करने का अवसर मिले तो एक एक और इतनी ही रामायण अलग से लिखी जा सकती हैं, ये आश्चर्य और अनुभव की पराकाष्ठा ही है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन सबकी बातों को इतनी सुन्दरता से एक काव्य संग्रह में बांध दिया ।धन्य हैं वे।
परन्तु आज दुर्भाग्य से कुछ लोग जो आधुनिकीकरण में जी रहे हैं वे न सिर्फ खुद रामायण को उपहास की वस्तु, काल्पनिक कहानी समझते हैं बल्कि अपने बच्चों को भी इससे अछूता रख रहे हैं, मुझे उन लोगों पर तरस आता है कि वे अपने लिए उस दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जो भारत की संस्कृति में कभी रही ही नहीं ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्म गुरु।
Wednesday, March 25, 2020
भारतीय संस्कृति के पीछे गहरा विज्ञान है
[24/03, 12:18 pm] ravifilmspro@gmail.com: आजकल सोशल मीडिया पर मंदिर,वो भगवानों पर बहुत से मजाक चल रहे हैं इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह आर्टिकल।
[24/03, 12:19 pm] ravifilmspro@gmail.com: ये सही है कि भगवान मंदिरों में नहीं है, मूर्तियों में नहीं है, ना मस्जिद में ना चर्च में है, और साधारण लोग जिस रूप में भगवान को मानते हैं या मनवाया गया है वैसा भी कुछ नहीं है । मगर उसका अस्तित्व है । और वह इन्सानों के भीतर ही है, अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे कहां देखते हैं, कहां ढूंढते हैं ।
मगर कर्मकांड के पाखंडियों ने लोगों के दिलो-दिमाग में भगवान के डर को ठूंस ठूंस कर भर दिया है और सारी नैतिकता को भगवान नाम के शब्द से जोड़ दिया है, जबकि भगवान एक शब्द है, मनुष्य की चेतना के सर्वोच्च शिखर का, भगवान एक शब्द है मनुष्य की सर्वशक्तिमान सकारात्मक ऊर्जा का, भगवान एक शब्द है, भौतिक शरीर के बजाय आंतरिक और आत्मिक चिंतन का, भगवान एक नाम है योग में समाधी का, जिसे परब्रह्म कहा जाता है।
ये और बात है कि सभी लोग भगवान को इस तरीके से जानने में समर्थ नहीं होते हैं, और वे लोग भी जिन्हें महात्मा कहा गया ।
तो फिर साधारण इंसान को कोई सहारा चाहिए जिससे वह अप्रत्यक्ष रूप से अपने मन को एकाग्र कर सके, और और अपने भीतर सकारात्मकता का निर्माण कर सके, इसके लिए अगर आपके पास कोई दूसरी विधि नहीं है तो तब तक यही उचित है कि आप भगवान के नाम पर किसी मूर्ति के सामने नतमस्तक हो सकें, झुक सकें । नहीं तो दुनिया में और कोई है ऐसा जिसके सामने आदमी झुक जाना मंजूर करें, वो भी आदमी ?
आदमी भगवान के अलावा किसी और के सामने झुकने को ना कभी राजी हुआ है ना हो सकेगा ।
यद्यपि हमारी सारी धार्मिक किताबें पंडितों की जागीर रही हैं, फिर भी मनुष्य की नैतिकता में उन किताबों का बढ़ा योगदान है, भगवान के डर से ही सही, वरना विद्यालय का नैतिक शास्त्र किसी को भी याद नहीं रहता ।
भारत की संस्कृति क्या है ? वे मान्यताएं ही हैं जो हम मानते हैं, वे क्रियाएं हैं जो हम करते हैं, वे अभिव्यक्तियां हैं जो हम व्यक्त करते हैं, वे धारणाएं हैं जिन्हें हम धारण करते हैं, और जो धारण किया जाए वह धर्म है ।
तो क्या आप अभी कुछ धारण करते हैं ? आप कहेंगे नहीं क्योंकि में तो धर्म को मानता ही नहीं ।
लेकिन आप अभी बहुत सी गलत चीजें धारण करने लगे हैं, जो हमारे धर्म का हिस्सा नहीं थीं।
जैसे कि हाथ जोड़कर नमस्कार करने की जगह हाथ मिलाना, हग करना । और फिर बात यहीं नहीं रुकेगी.....
तो हम वो नहीं कर रहे जो हमारा धर्म है । तो धर्म की हानी हो रही है, और पांच हजार साल पहले श्री कृष्ण ने कहा था, "जब जब धर्म की हानि होती है तब तब पापियों का नाश करने ओर धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं।
तो कृष्ण का कोरोना अवतार है । इसलिए वे पाखंडी भी भयभीत है जो भगवान का धंधा करते रहे हैं । भगवान किसी को क्यो बचाएं ?
कोनसा महान कार्य किया है किसी ने खासकर धार्मिकों ने, कर्मकांड के पाखंडियों ने, बल्कि उन्हें ही तो सजा देने का ये उपाय किया गया है।
भारत की संस्कृति, मूल्यों, व मान्यताओं के पीछे गहरा विज्ञान है, जिसने अंग्रेज़ो को भी हाथ जुड़वाकर आज ये साबित कर दिखाया है ।
शायद यही आखिरी संदेश है प्रकृति का दुनिया के लिए कि सुधर जाओ, अगली बार आदमी से आदमी में नहीं, हवा में फैलने वाला वायरस भी आ सकता है ।
रवि शाक्य
संगीत एवं आध्यात्म गुरु।
Saturday, January 18, 2020
पथराव व नारेबाजी का खेल
इस पीढ़ी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आज हम सारी सुविधाओं के साथ जी रहे हैं, ख़ास तौर पर ये बात युवाओं को पता होना चाहिए।
अगर हम एक पीढ़ी पहले देखें, तो आपके पास गूगल, स्मार्टफोन आदि कुछ भी नहीं थे। तो क्या युवा बेरोजगार थे !
बिल्कुल नहीं, उनके पास बहुत काम होता था। खेती का, घर के काम आदि । उनका बचपन मेहनत के साथ गुजारता था, जो उन्हें व्यस्त तो रखता ही था बल्कि मेहनती और आत्मनिर्भर भी बनाता था । मगर आज तो बच्चे घर का काम करें, तो पिछड़ा पन समझा जाता है, ओर पूर्ण एशो-आराम दैना स्टेटस सिंबल बन गया है। दुर्भाग्य से आज के मां बाप अपने बच्चों को ऐसा जीवन देना चाह रहे हैं कि उन्हें कुछ भी नहीं करना पड़े, वे उनके लिए सारी सुविधाएं जुटाकर मरना चाहते हैं।
आपके मां बाप ने आपके लिए क्या ऐसा ही किया था ? अगर नहीं तो क्या आप कुछ नहीं कर पाए ? नहीं, आप इतना कैसे कर पाए कि अपने बच्चों की जिंदगी सुरक्षित करने में लगे हैं, आपको तो बस रोजी-रोटी के लिए संघर्ष ही करना चाहिए था ।
तो क्या आप सोचते हैं कि आपके बच्चे बिल्कुल नकारा हैं, वे खुद कुछ नहीं कर पाएंगे ?
युवावस्था में जब ऊर्जा अपने चरम पर होती है और उर्जा बाहर फूट पड़ना चाहती हो और हम उन्हें मोबाइल रुपी झुनझुना थमा देते हैं, तो वे क्या करेंगे ? कोई यूनिवर्सिटी में बजाएगा, कोई शाहीन बाग में, फिर उससे भी संतुष्ट नहीं होगा तो पत्थर उठाएगा, सवाल ये नहीं है कि किस पर फेंकना है, बस ऊर्जा को बाहर निकालना है । और कोई रास्ता भी तो नहीं है,
आपको शायद याद हो जब हम छोटे थे तो नदी किनारे पर पूरी ताक़त से पत्थर फेंक कर प्रतियोगिता करते थे । वे हमारे खेल हुआ करते थे । आज के युवाओं को वह मोका नहीं मिला, तो वे अभी वही खेल खेल रहे हैं। पहले निशाना नदी पहाड़ और पेड़ होते थे, आज निशाना इन्सान हैं। कुछ काम भी तो नहीं है ।
बैठे बैठे क्या करें करना है कुछ काम,
शुरू करो पथराव ही, लैकर धर्म का नाम ।
क्योंकि अंताक्षरी तो पुरानी पीढ़ी की है, उसमें आधुनिकता कम पिछड़ा पन ज्यादा लगता है। और फिर चिंता भी कुछ नहीं, बैठे बिठाए खाने को मिलता हो तो कोई बेवकूफ ही होगा जो काम के बारे में सोचेगा, और एक दिन काम पर ना जाने से कल की रोटी की चिंता सताती हो, तो भी कोई बेवकूफ ही होगा जिसको नारेबाजी करने में मजा आएगा।
तो फिर कौन हैं वे लोग जो महीने भर काम पर जाने के बजाय एक जगह बैठे हैं ? कहां से आती है रोटी ? कौन भेजता है इनको, देस की चिंता क्या सिर्फ साधन-संपन्न लोगों को ही होती है ?
गरीब सिर्फ बोट देने जा सकता है, हां, वो जा सकता है, क्योंकि उस दिन छुट्टी होती है ।
आज भी जिन घरों के बच्चे बचपन से घर का राशन लाना, नल से पानी भरना, मां बाप के काम में मदद करना, जैसे काम करते रहे हैं उनकी ऊर्जा का सही उपयोग हो चुका है, और वो ऐसी जगहों पर कभी दिखाई नहीं दैगे ।
पं. रवि शाक्य,
संगीत एवं आध्यात्म गुरु
Friday, January 17, 2020
The kings blindness,
All the wars that have taken place in the world, all due to a blind king like Dhritarashtra of Mahabharata. In three thousand years, about five thousand wars are found in history, that is more than one war took place every day, and in the days which did not take place, it must have been prepared for wars.
If Mahatma Gandhi had not been the Raashtrapita of the country but the President or Prime Minister, then the basic problems of today would have been some different or less, the geography of India would have been different. Because, he had right looking eyes, but then he might not have been a Mahatma, all Mahatmas have fine eyes, but Mahatma would not have been king, Gandhi must have been forced into the hands of blind Dhritarashtra like Bhishma Pitamah. I think if someone is a humanist, then he should think only about the good of man, family and society, and if he wants power, he should do politics,and think politics. A humanist should not think about politics, and a politician should not think about socialism,
Otherwise, society enters politics and politics in society, and then conflict is inevitable.
All the wars in the world are the result of the ambition of a blind king. It is not only about the country but also of the individuals, when power in the family also changes in ambition then conflict and exploitation only results.
Ravi Shakya,
Real Music and Spirituality mentor.
Wednesday, January 15, 2020
असली आनंद
कभी कभी बेवकूफ भी हो जाना चाहिए, बेवकूफ के पास कोई ईगो नहीं होता, और जहां ईगो नहीं होता वहां सिर्फ आनंद और शांति होती है। बाहरी ज्ञान सूचनाएं मात्र हैं, उनका ज्ञान से कोई संबंध नहीं है, उनसे आपके अहंकार की तृप्ति होती है, भीतर का आनंद ज्ञानी होने में नहीं, अहंकार त्यागने और भीतर की खोज में है, और खोज की इच्छा भी न हो, कुछ भी पाने की इच्छा भी ख़त्म हो जाए, खोज ही आनंद बन जाए, फिर कुछ शेष न रह जाए पाने को, अपना भी पता न हो, बस आनंद है और कुछ नहीं।इसी अवस्था को समाधि कहते हैं।
Professor Ravi Shakya,
Music and sprituality mentor
सारी दुनिया आपकी है
जब हम पैदा हुए थे तब भागते नहीं थे, कोई दौड़, कोई आकांक्षा, कोई लालच, कोई महत्त्वाकांक्षा, कोई माया जाल नहीं था,
फिर भी हमारे शरीर में रोज बदलाव होते थे, ठीक वैसे ही जैसे पेड़ पौधे में होते हैं, यही प्रकृति का नियम है, इसे सहज स्वीकार करना होगा । आप इस क्षण भी वही नहीं हैं जो एक क्षण पहले थे, हर क्षण बदलते हैं, दुनिया की सभी भौतिक चीजों हर क्षण बदलती है, ये प्राकृतिक है, इसलिए सस्वीकार्य होना चाहिए,
अच्छा ही होता सबकुछ, अगर जीवन में हम प्राकृतिक होते ।
मगर....
हम पैदा होने के ठीक बाद से ही सूचना और जानकारियों से भरने लगे, यही बाधा हो गई नैसर्गिक जीवन में,
ये सूचनाएं सब बाहरी हैं, भीतर का कोई सम्बन्ध नहीं है इनसे, में कहता हूं आप एक बार अपने आंतरिक जगत में यात्रा करने में समर्थ हो जाएं, और आप पाएंगे कि कुछ भी बदला नहीं है, सब कुछ ठीक है, कोई आपसे दूर नहीं, सारी दुनियां आपकी है, सारा ब्रह्माण्ड अपना मुखौटा उतार कर आपके सामने प्रस्तुत हो जाएगा ।
Ravi Shakya,
Music and sprituality mentor.
प्रर्याप्त बहाने हो सकते हैं ।
दुनिया का कोई भी व्यक्ति आज जो भी है, चाहे जो भी हो, में,आप या कोई और, हम उसके बारे में उसकी वर्तमान स्थिति के आधार पर ही राय कायम कर लेते हैं इतना ही देख पाते हैं कि वो अभी क्या है, ये कोई नहीं देखता कि उसका ये आज, कहां से शुरू हुआ था, जिसका शायद सही मेहनताना उसे आज भी नहीं मिल रहा। मगर हम बड़े बेसब्रे लोग हैं, हम जानना नहीं चाहते बल्कि तुरंत ही अपना मत व्यक्त कर देते हैं।
हमें नहीं पता कि उसने कितने साज मिलाए, और कितने गीत गाए,
और आज वो जो है वो कोई महीने, साल, दो साल का परिणाम नहीं है, उसकी पूरी जिंदगी ही लगी है उसमें। आप ये कह सकते हैं कि सभी लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है हमने भी बहुत किया है।
माफ़ कीजिए !!! मगर ये पूरी तरह सच नहीं है। आप ये कभी जान ही नहीं पाएंगे कि आपकी मजबूरियां उतनी बड़ी कभी नहीं रही हैं जितनी उस आदमी की रही होंगी जिसके बारे में आप आज किसी नतीजे पर पहुंचने जा रहे हैं।
में चाहूंगा कि आप इतनी जल्दबाजी न करें ।
उफ्फ!.......
क्या आप भी उस स्कूल में पढ़े हैं, जो गांव में एक कमरे, और एक चबूतरे का होता है यदि हां, तो आपके पास अंग्रेजी नहीं बोल पाने का अच्छा बहाना हो सकता है।
मगर एक दूसरा बच्चा भी उसी जगह पढ़ता है, इतना ही नहीं, उस चबूतरे को, उसे दूर से गोबर और नदी से पानी लाकर लीपना और पोतना भी पढ़ता है । हां, पहले ऐसा ही होता था,! तो''' वह बच्चा अभी अंग्रेजी स्कूलो में पढाता है । कैसे ???
वही बच्चा महज १७ साल की उम्र में 4 राज्यो के राज्यपालों द्वारा संगीत निर्देशन के लिए सम्मानित होता है। १८ साल की उम्र में मुख्यमंत्री से भी सम्मानित होता है।
१२ साल की छोटी उम्र में क्योकि वह हारमोनियम नहीं खरीद सकता है, वह झोपड़ी में रहता है। उसके माता-पिता पढ़ें लिखे नहीं है, वह एक डॉक्टर के क्लीनिक में काम करके 150 रुपए महीने कमाता है, जिससे वह 70 रुपए महीने में संगीत की ट्यूशन लेकर संगीत सीखता है । क्योंकि वह हारमोनियम नहीं खरीद सकता है, तो वह दिमाग लगाता है और एक वाद्य यंत्र "बेन्जो" खुद बना लेता है,
आपको आश्चर्य होगा मगर ये सच है! और ना जाने कहां कहां से कैसे कैसे संगीत सीखता है, अगर कोई बड़ा गुरु उसे नहीं सिखाता है तो वह उसके घर के बाहर खड़े रहकर सुनता है।
नहीं , आप इतना नहीं कर सकते। बल्कि आप इनमें से बहुत सारी चीज़ें नहीं कर सकते।
क्या उसके पास नहीं सीख पाने के लिए प्रर्याप्त बहाने नहीं थे ?
कह सकता था वो सारी बातें जो आज हर कोई कहता है, वो सारे बहाने जो हर कोई बनाता है ?
ये कोई कहानी नहीं किसी के जीवन की गंभीर सच्चाई है।
तो आज की बात करते हैं, आज क्या हो सकता है उसकी कला का मूल्य ?
क्या कोई दे सकता है उसका मूल्य ?
और कला का क्या कोई मूल्य हो भी सकता है,
नहीं,
कोई उसका मूल्य कभी नहीं दे सकता, इतनी किसी की सामर्थ्य नहीं है, आप सिर्फ गुरु दक्षिणा ही दे सकते हैं, मूल्य नहीं । और मुझे अफसोस है कि आज ये कहानी कुछ लोगों को झूठ लग सकती है।
बाहरहाल !
आपके पास पर्याप्त बहाने हो सकते हैं। क्योकि आपको सिर्फ शौक है, दीवानगी नहीं।
ध्यान रहे दीवानगी और शौक में उतना ही अंतर है जितना कि एक शानदार जीत और पूर्ण पराजय में।
क्योंकि शौक को छोड़ा भी जा सकता है, मगर दीवानगी जीवन का गौरव पूर्ण अंत है। वह एक युद्ध में उतरे योद्धा की तरह ही है जो जीते जी लक्ष्य को पीठ नहीं दिखाता । योद्धा या तो जीतता है या मृत्यु का वरण करता है।
तो, वह बच्चा संगीत का दीवाना था।
और उस बच्चे का नाम है .....
रवि शाक्य !
हां, वो मैं ही हूं !
Professor Ravi Shakya
(Real music & spirituality mentor)
कुछ खास बातें
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: जीवन में 2 चीजें एक साथ नहीं चल सकती हैं। आपका फोकस तय होना चाहिए। अगर आप बिजनेस कर रहे हैं तो सिर्फ बिजनेस करें। मेडिटेशन कर रहे हैं तो मेडिटेशन। नहीं तो बिजनेस में मेडिटेशन आ जाएगा और मेडिटेशन मे बिजनेस। आप पर लोग हंसेंगे।
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: अनुशासन और कंट्रोल जरूरी बिजनेस में असफलता के चलते आपको आया हार्ट अटैक यह बताया है कि आपका अनुशासन और कंट्रोल दोनों ठीक नहीं है। भला कैसे हो सकता है कि घाटा बिजनेस में हो रहा है और असर शरीर पर पड़ रहा है। दरअसल बीमारी असफलता छिपाने के बहाने से जयादा
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: सवाल यह नहीं है कि आप कितना सीखते हैं। वड़ा सवाल यह है कि आप कितना भूलते हैं। कुछ नया करने के लिए पुराने को भुलाना बेहद जरूरी है।
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: किसी से किसी तरह की प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत नहीं है। आप जैसे हैं खुद में पूरे हैं। खुद को स्वीकार करिए। मतलब आप यूनीक होंगे, तभी आपकी पूछ होगी।
[15/01, 10:44 am] ravifilmspro@gmail.com: आप दुखी हैं तो अपनी वजह से, आप सुखी हैं तो भी अपनी वजह से। आपकी सफलता और असफलता को कोई उत्तरदायी नहीं है। अपनी अपना स्वर्ग हैं और आप ही अपना नर्क हैं ।
Professor Ravi Shakya music and sprituality mentor
आप वही सुनते हैं जो आप सुनना चाहते हैं
मैंने सुना है:
दो आदमी भीड़-भाड़ वाले बाजार में फुटपाथ पर साथ-साथ चल रहे थे। अचानक एक ने कहा, "सुनो झींगुर की मधुर आवाज" लेकिन दूसरे ने नहीं सुना। उसने अपने साथी से पूछा इतने लोग और ट्रेफिक के बीच उसे झींगुर की आवाज का कैसे पता चला। पहले व्यक्ति ने खुद को प्रकृति की आवाजें सुनने में प्रशिक्षित किया था, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
इसके बजाय उसने अपने जेब से एक सिक्का निकाला और फुटपाथ पर गिरा दिया। अचानक एक दर्जन से अधिक लोग सिक्के को टकटकी लगा कर देख रहे थे।
"हमें वही सुनाई पड़ता है", वह बोला, "जो हम सुनना चाहते हैं"।
यहां ऐसे लोग हैं जो जमीन पर गिरे सिक्के की आवाज ही सुन सकते हैं--यही उनका एक मात्र संगीत है। बेचारे लोग, वे सोचते हैं कि वे धनी हैं, लेकिन वे गरीब लोग हैं, जिनका सारा संगीत सिक्के के जमीन पर गिरने की आवाज मात्र है। बहुत गरीब लोग...भूखे। उन्हें नहीं पता कि जीवन में कितना कुछ होता है। उन्हें अनंत संभावनाओं के बारे में कुछ पता नहीं, उन्हें नहीं पता कि वे अनंत धुनों से घिरे हुए हैं--बहु आयामी समृद्धियां। तुम वही सुनते हो जो सुनना चाहते हो।
जिस तरफ जाइए, है खोखले लफ़्ज़ों का हुजूम ।
कौन समझे यहां, आवाज की गहराई को ।।
Prof. Ravi shakya
Real music and sprichuality mentor.
Wednesday, January 1, 2020
नया वर्ष या आप ?
बीते हुए कल को भुलाना मुश्किल है, परन्तु कल की याद में आज को जीना, न केवल वर्तमान की हत्या कर देने जैसा है, बल्कि जीवन की हत्या कर देने जैसा है। ये ऐसा ही है जैसे कि जीवन को उसकी समग्रता में जीने के बजाय खंड खंड, तुकडों में जीना, फिर भी अगर कल को यादगार बनाना है तो आप उन चीजों को याद कर सकते हैं जिन्हे आप गलतियां मानते हैं और जो कि सुधारी जा सकती हैं, कुछ चीजें, जैसे आपने अपने साथ क्या किया ? हां...अपने ही साथ, दूसरे की बात महत्वहीन है। दूसरों के साथ कुछ होता ही नहीं, आप जो भी करते हैं उसका परिणाम आपको ही मिलता है।
इस लिए में कहता हूं कि आप जो कुछ भी अपने साथ करते हैं।
यदि आप अपने साथ आनंद पूर्ण और न्यायपूर्ण रहते हैं तो बाकि सब अपने आप ही ठीक होगा। और निश्चित ही आपने कुछ चीजें बहुत शानदार की होंगी, आप उनको याद रख सकते हैं इससे आपको ऊर्जा व प्रेरणा मिलती रहेगी।
तो, इस नए साल में आप यह कर सकते हैं, कि वर्तमान को आनंद पूर्ण बनाएं, अपने साथ न्याय करें, भविष्य को ईश्वर पर छोड़ दें, आपका हर दिन एक नया साल जैसा होगा, और मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है कि ऐसा ही हो ।
और भी कुछ बातें हैं उनके विस्तार में जाना होगा...
तो इसी शुभकामना के साथ आप सभी के भीतर विराजमान परमात्मा को प्रणाम करता हूं। नमो बुद्धाय
Ravi Shakya
Music and sprituality mentor